NITISH KUMAR ने कब-कब मारी है पलटी और क्यों? जानिए पूरा इतिहास

By UltaChashmaUC | January 26, 2024

बिहार की राजनीति कब कौन सा रूप ले ले, इसका अंदाजा कोई नहीं लगा सकता है और इस उलट फेर में जो पलटू राम की भूमिका निभाते रहे हैं वो हैं नीतीश कुमार। नितीश कुमार पट्टी मारने में वर्ल्ड रिकॉर्ड बना सकते हैं ।वो कब दोस्त के दुश्मन बन जाए और कब दुश्मन के दोस्त, इसके कयास लगाना ही अपने आप में बेइमानी होगी। क्योंकि जिस हिसाब से नीतीश के रूख बदलते हैं उतनी तेजी से तो हवा भी अपना रूख नहीं बदलता होगा। ऐसा इसलिए कह रहे हैं क्योंकि अब एक बार फिर बिहार की राजनीति में खेला हो सकता है। कयास लगाए जा रहे हैं कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार एक बार फिर से पलटी मारने वाले हैं और बीजेपी के साथ सरकार बनाने वाले हैं।

NDA से 17 साल पुराना नाता तोड़ लिया
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जिन्हें 10 साल पहले 'सुशासन बाबू' के नाम से जाना जाता था। वहीं अब इधर उधर के चक्कर में 'पलटू राम' बन गए है। जब भी नीतीश राजनीति में असहज हुए तब-तब उन्होंने अपना सियासी पार्टनर बदला है। अब कहानी बिल्कुल शुरू से शुरू करते हैं। बात है साल 2005 की, जब नीतीश पर लोगों ने भरोसा जताया था। 2005 से 2012 तक सब कुछ ठीक ठाक था, नीतीश ने भी सब की उम्मीदों पर खरे उतरने की पूरी कोशिश की। साल 2012 में जब नरेंद्र मोदी का नाम प्रधानमंत्री उम्मीदवार के नाम पर आया तब साल 2013 में नीतीश कुमार ने NDA से 17 साल पुराना नाता तोड़ लिया। और यहीं से उन्होंने अपनी सियासत में 'पलटनीति' को अपना सबसे मजबूत अस्त्र और शस्त्र बना लिया। NDA से नाता तोड़ने के बाद नीतीश को अपने बड़े भाई लालू यादव की याद आई। जिसके बाद करण-अर्जुन की जोड़ी बनकर।। लालू-नीतीश सत्ता को संभालने लगे। हालांकि करण-अर्जुन की जोड़ी भी टूट गई और नीतीश बीजेपी में वापस चले गए!

मोदी के नाम से अलग हुए थे बीजेपी से
इतना ही नहीं , फिर साल 2013 में जब बीजेपी ने लोकसभा चुनाव 2014 के लिए नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया तो ये बात नीतीश कुमार को रास नहीं आई और उन्होंने बीजेपी का दामन छोड़ दिया। उसके बाद 2014 के लोकसभा चुनाव में ही नीतीश कुमार बीजेपी के खिलाफ बिहार में चुनाव लड़े थे और उन्हें केवल 2 सीटें मिली थी। जिसके बाद इस हार का सदमा नीतीश सह नहीं पाए और उन्होंने सीएम की कुर्सी से इस्तीफा दे दिया। और नीतीश ने सीएम की कुर्सी अपनी सरकार के मंत्री और दलित नेता जीतन राम मांझी को सौंप दी और वे खुद बिहार विधानसभा चुनाव 2015 की तैयारी में जुट गए।
कहानी का अगला पड़ाव 2015 के लोकसभा चुनाव से शुरू होता है जब नीतीश कुमार ने आरजेडी और कांग्रेस के साथ मिलकर महागठबंधन बनाया। इस महागठबंधन के साथ नीतीश ने लोकसभा चुनाव में बीजेपी को धूल चटा दी और शानदार जश्न के साथ एक बार फिर बिहार की सत्ता पर कब्जा किया।। सत्ता में आने के साथ उन्होंने एक बार फिर बिहार की सीएम की कुर्सी अपने नाम कर लिए। धीरे-धीरे वक्त गुजर ही रहा था और उनकी सरकार को करीब दो साल पूरे होने वाले थे लेकिन उससे पहले ही महागठबंधन में दरार आने लगी। जहां एक ओर नीतीश कुमार ने साल 2017 में नोटबंदी और जीएसटी जैसे मुद्दों पर बीजेपी का समर्थन करने लगे। वहीं दूसरी ओर सीबीआई ने लालू यादव और तेजस्वी यादव संग उनके परिवार के कई सदस्यों के खिलाफ भ्रष्टाचार का मामला दर्ज हुआ। जिसकी आंच धीरे-धीरे नीतीश तक भी पहुंचने लगी।

9 अगस्त 2022 को फिर खेल हुआ
जिसके बाद माहौल को देखते हुए नीतीश ने लालू को मैसेज डाला कि तेजस्वी को पद से इस्तीफा देना चाहिए। मगर लालू नहीं माने और फिर नीतीश ने इस्तीफा दे दिया और महागठबंधन की सरकार एक बार फिर गिर गई। हालांकि कुछ ही घंटों में नीतीश बीजेपी के समर्थन में मुख्यमंत्री भी बन गए। वहीं सत्ता पलट का ये पूरा घटनाक्रम नाटकीय तरीके से पूरे 15 घंटे के भीतर हुआ। वहीं साल 2020 में बिहार विधानसभा चुनाव में एनडीए की वापसी हुई, मगर नीतीश कुमार की पार्टी तीसरे नंबर पर आई। हालांकि, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ही रहें। अब इसके पीछे हो सकता है कि पिछड़ी जाति के वोट बैंक की राजनीति हो। नीतीश कुमार चैन से कैसे बैठ सकते थे इस कहानी का नया अध्याय साल 2022 में शुरू होती है। जब नीतीश कुमार तीसरी बार ब्रेक के लिए तैयार थे। क्योंकि जेडीयू ने बीजेपी पर पार्टी तोड़ने की साजिश का आरोप लगाया था। जिसके बाद 15 अगस्त से पहले ही 9 अगस्त 2022 को फिर खेल हुआ। नीतीश ने ऐलान किया कि जदयू-भाजपा गठबंधन खत्म हो गया। जिसके बाद अगले दिन ही नीतीश आरजेडी के समर्थन में फिर से मुख्यमंत्री बने। हालांकि उस वक्त आरजेडी ने नीतीश के साथ किसी भी गठबंधन के लिए मना कर दिया था। वहीं तेजस्वी नीतीश से गले मिलकर काफी खुश थे।

एक और नया चैप्टर फिर से लिखने को बेताब हैं
बिहार की राजनीति की कहानी का एक और नया चैप्टर फिर से लिखने को बेताब है। क्योंकि अब चौथी बार फिर नीतीश कुमार सत्ता से पलटी मारने वाले हैं। अब देखना यही है कि अगर नीतीश इस बार फिर पलटनीति के पासे को फेंकते हैं तो ये उनका चौथीं बार इधर-उधर पलटना होगा। ये अलग बात है कि इन सब के बावजूद नीतीश को लेकर सभी पार्टियां उनकी एक उंगली के इशारे पर नाचने को मजबूर हैं। नीतीश की पलटनीति का जनता पर कितना असर होता है ये देखने वाली बात है। अब आने वाले लोक सभा चुनाव में देखना यही है कि आने वाले इस चुनाव में किसे फायदा होता है और किसे नुकसान। वैसे आपको क्या लगता है हमें कमेंट करके जरूर बताइएगा।
PUBLISHED BY- ARUN CHAURASIYA

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