घोसी का घमासान, चौहान-राजभर-राय जाति का रहा है दबदबा! इस बार कौन मारेगा बाजी

By UltaChashmaUC | May 9, 2024

यूपी के पूर्वांचल के मऊ जिले की घोसी सीट जो अक्सर चुनावों के बीच बेहद गर्म सीट मानी जाती है। कभी मुख्तार अंसारी की वजह से तो कभी ओम प्रकाश राजभर, दारा सिंह चौहान और कल्पनाथ राय की वजह से। इन तीन अलग-अलग जातियों पर ही घोसी लोकसभा सीट का चुनाव परिणाम निर्धारित होता है। इसी क्रम में इस बार बीजेपी की तरफ से एनडीए गठबंधन में शामिल ओम प्रकाश राजभर की सुभासपा को ये सीट मिली है। ओपी राजभर ने घोसी सीट से इस बार अपने बेटे अरविंद राजभर को मैदान में उतारा है। वहीं सपा की तरफ से इस बार राजीव राय को टिकट मिला है, तो बसपा ने पूर्व सांसद बालकृष्ण चौहान को घोसी से अपना प्रत्याशी घोषित किया है। ऐसे में घोसी सीट राजभर-राय-चौहान को लेकर बेहद रोचक बन गई है। क्योंकि इस सीट का इतिहास रहा है कि यहां पर इन्हीं तीन जातियों के नेता पिछले 17 चुनावों में से 14 बार जीत कर संसद भवन पहुंचे हैं। जिसमें से बीजेपी को केवल एक बार 2014 में जीत मिली थी। उस वक्त मोदी लहर में हरिनारायण राजभर को जीत मिली थी। हां, एक और बात इस सीट से सपा, कांग्रेस, बसपा और बीजेपी हर पार्टी के नेता सांसद रह चुके हैं। ऐसे में इस बार किस पार्टी के नेता संसद भवन तक का सफर पूरा करेंगे ये देखने लायक है। मगर आज हम आपको इस सीट के जातीय समीकरण के साथ यहां के राजनीतिक इतिहास के बारे में बताएंगे।

घोसी की पांच विधानसभा सीटों पर किसका कब्जा?
घोसी लोकसभा सीट में पांच विधानसभा सीटें आती हैं। जिसमें घोसी, मधुबन, मुहम्मदाबाद-गोहना, मऊ सदर सीट और रसड़ा सीट आती है। इन सीटों की अगर बात करें तो इनमें से केवल मधुबन सीट पर बीजेपी का कब्जा है। वहीं सपा के पाले में घोसी और मुहम्मदाबाद-गोहना की सीट है। साथ ही मऊ सदर सीट से मुख्तार के बेटे अब्बास अंसारी को उतार कर सुभासपा ने इसे अपने पाले में कर लिया। वहीं, यूपी में रसड़ा अकेली सीट है जिसे बसपा ने पिछले विधानसभा चुनाव में जीता था। यानी कि दो पर सपा और एक-एक पर बीजेपी, सुभासपा और बसपा के विधायक घोसी सीट से जीत हासिल किए हुए हैं।

मऊ- घोसी में कपड़ों का कारोबार सबसे अधिक
मऊ जिले के घोसी लोकसभा सीट का एक अलग ही ऐतिहासिक इतिहास रहा है। इस सीट को बुनकरों का क्षेत्र भी कहा जाता है, क्योंकि मऊ और घोसी में कपड़ों का कारोबार सबसे अधिक होता है। मऊ शहर की मौउआली साड़ी देश और दुनिया में बेहद पसंद किया जाता है। मऊ की साड़ी को को लोग कई बार बनारसी साड़ी भी समझ लेते हैं। ये शहर तमसा नदी के तट पर बसा हुआ है। घोसी सीट पर जब पहली बार चुनाव हुआ तो यहां से कांग्रेस की तरफ से अलगू राय शास्त्री को जीत मिली थी। इसके बाद 1957 में दूसरी बार के चुनाव में उमराव सिंह भी कांग्रेस से चुनाव लड़कर जीत हासिल किए। साल 1957 के बाद घोसी सीट का आकलन बिगड़ना चालू हो गया। 1962 के चुनाव में यहां से पहली बार भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के जय बहादुर सिंह चुनाव जीत कर संसद में पहुंचे। 1962 के बाद साल 1967 में भी जयबहादुर ने बड़ी जीत हासिल की थी। इसके बाद 1968 और 1971 में उसी पार्टी से झारखंडे राय ने दो बार जीत हासिल की। साल 1977 में जनता पार्टी से शिवराम राय और 1980 में एक बार फिर से झारखंडे राय ने जीत हासिल की।

इन नेताओं को मिली घोसी से जीत
साल 1980 के बाद घोसी सीट पर एक बार फिर से कांग्रेस का दबदबा वापस आया। क्योंकि साल 1984 में कांग्रेस की तरफ से राजकुमार राय,  और 1989, 1991, में कांग्रेस की तरफ से ही कल्पनाथ राय ने जीत हासिल की है। साल 1996 में कल्पनाथ राय ने इसी सीट से निर्दलीय चुनाव लड़कर जीत हासिल की थी। तो वहीं, 1998 में आखिरी बार कल्पनाथ राय ने समता पार्टी से जीत हासिल की थी। साल 1999 में उनके निधन के बाद एक बार फिर इस सीट पर चुनाव हुआ जिसमें बसपा ने अपना परचम लहराया। 1999 में बसपा की तरफ से पहली बार बाल कृष्ण चौहान को जीत मिली। 2004 के चुनाव में समाजवादी पार्टी की तरफ से चंद्रदेव प्रसाद राजभर को जीत मिली। तो 2009 में बसपा की तरफ से दारा सिंह चौहान, 2014 में बीजेपी की तरफ से हरिनारायण राजभर और साल 2019 में बसपा की तरफ से अतुल राय ने जीत हासिल की थी। यानी की कुल मिलाकर जब यहां के राजनीतिक सफर को देखते हैं तो आपको पता चलता है कि पिछले 17 चुनावों में से 14 बार राय-चौहान और राजभर जाति के सांसद चुने गए हैं।

सबसे अधिक दलित मतदाता
वहीं, घोसी सीट के जातीय समीकरण की अगर बात करेंगे तो यहां पर सबसे ज्यादा दलित मतदाता है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक घोसी सीट पर अनुसूचित जाति के करीब 5 लाख वोटर्स हैं। तो वहीं लगभग 4 लाख तक मुस्लिम मतदाता हैं। साथ ही यादव वोटर्स ढाई लाख, चौहान 2 लाख 30000, राजभर करीब दो लाख हैं। इसके अलावा वैश्य, मौर्य और राजपूत एक-एक लाख हैं। इन समीकरण के अलावा ब्राह्मण, निषाद और भूमिहार मतदाताओं की संख्या भी लगभग एक-एक लाख बताई जाती है।

PUBLISHED BY- ARUN CHAURASIYA

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