आजमगढ़ सीट से यादव और मुस्लिम में से ही चुने गए हैं सांसद, देखिए क्या कहता है जातीय समीकरण

By UltaChashmaUC | May 10, 2024

आजमगढ़ लोकसभा सीट जिसके चर्चे अक्सर यूपी की राजनीति में होते ही रहते हैं। पूर्वांचल की ये सीट बेहद गर्म मानी जाती है क्योंकि इसका ताल्लुक समाजवादी पार्टी से बेहद करीब का रहा है और इसे सपा का गढ़ भी कहा जाता है। इस सीट से मुलायम सिंह यादव से लेकर अखिलेश यादव सांसद रह चुके हैं। साल 2014 में जब देश में मोदी लहर था तब मुलायम सिंह यादव ने इस सीट से एक बड़ी जीत हासिल की थी। तो वहीं साल 2019 में अखिलेश यादव ने एक बार फिर से यहां पर परचम लहराया था। मगर अखिलेश के इस्तीफे के बाद ये सीट बीजेपी के पाले में चली गई। 2022 में हुए उपचुनाव में आजमगढ़ से दिनेश लाल यादव "निरहुआ" ने जीत हासिल की। मगर उनके जीत का कारण कहीं ना कहीं बसपा के प्रत्याशी गुड्डू जमाली रहे थे। आज के इस विश्लेषण में हम ये जानेंगे की आजमगढ़ की सियासत में जीत का फैसला किस आंकड़े पर होता है और इस बात पर भी चर्चा करेंगे की आखिर इस बार कौन इस सीट से बाजी मारेगा।

सबसे अधिक साढ़े तीन लाख यादव वोटर्स
आजमगढ़ से इस बार भाजपा ने सांसद दिनेश लाल यादव "निरहुआ" को एक बार फिर से प्रत्याशी बनाया है, तो वहीं सपा ने धर्मेंद्र यादव को मैदान में उतारा है। इनके अलावा बसपा ने सबसे पहले यहां से पार्टी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष भीम राजभर को टिकट दिया था, मगर बाद में बदल कर उनकी जगह शबीहा अंसारी को टिकट दे दिया। कुछ दिन बाद एक बार फिर से बसपा ने अपना प्रत्याशी बदला और आजमगढ़ से फाइनली मशहूद अहमद को टिकट देकर मैदान में उतार दिया। बता दें इस सीट पर मुकाबला बेहद रोचक है, क्योंकि पिछले उपचुनाव में बसपा के प्रत्याशी गुड्डु जमाली 2 लाख 66 हजार वोट पाकर सपा के हारने का करण बने थे, जोकि अब समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए हैं। हालांकि, उस उपचुनाव में निरहुआ ने मात्र 8 हजार वोटों से जीत हासिल की थी। ऐसे में जब गुड्डू जमाली के साथ आने के बाद सपा का आजमगढ़ सीट पर वापसी करना लगभग तय माना जा रहा है। उसका एक और फैक्टर आप समझिए, देखिए आजमगढ़ सीट से गुड्डू जमाली भले ही बसपी की तरफ से जीत हासिल ना कर सकें हो लेकिन उनका वोट परसेंटेज हर किसी को हैरान कर देता है। 2022 के चुनाव से पहले 2014 के चुनाव में जब मुलायम सिंह यादव ने जीत हासिल की थी तो गुड्डू ने लगभग ढाई लाख वोट हासिल किए थे। तो अब ये कहा जा रहा है कि वो वोट सपा के पाले में आती हुई दिख रही है। वैसे आपको बता दें कि आजमगढ़ में कुल 19 लाख मतदाता हैं, जिनमे सबसे अधिक साढ़े तीन लाख यादव वोटर्स हैं। इसके अलावा तीन लाख से ज्यादा मुसलमान और करीब तीन लाख ही दलित वोटर्स भी हैं।

आजमगढ़ की सभी पांच विधानसभा सीटों पर सपा का कब्जा
अब हम नेता जी मुलायम सिंह यादव के चुनावी रण में चलते हैं। देखिए, साल 2014 के लोकसभा चुनाव में आजमगढ़ सीट से मुलायम सिंह यादव का मुकाबला भाजपा के रमाकांत यादव से था। हालांकि, उस चुनाव में नेती जी  ने बड़ी जीत हासिल की थी, मगर वो नेता जो बीजेपी की तरफ से उस वक्त ताल ठोक रहे थे वो भी अब सपा के पाले में आ गए हैं। फिलहाल रमाकांत यादव  सपा से विधायक हैं। वहीं आप अगर इस लोकसभा सीट पर विधानसभा सीटों की बात करेंगे, तो आजमगढ़ लोकसभा क्षेत्र में पांच विधानसभा सीटें आती हैं। जहां की सभी पांच सीटों पर सपा का कब्जा है। जिसमें से गोपालपुर से सपा के नफीस अहमद, सगड़ी से हृदय नारायण पटेल, मुबारकपुर से अखिलेश यादव, आजमगढ़ सदर से दुर्गा प्रसाद यादव और मेहनगर से पूजा सरोज विधायक हैं। हालांकि, अब आप सोच रहे होंगे की उत्तर प्रदेश में तो दो बार से बीजेपी की सरकार है, मगर सच तो यही है कि बीजेपी ने आजमगढ़ के किले को अभी तक भेद नहीं पाई है।

यादव या मुस्लिम ही चुने गए हैं सांसद
अब हम थोड़ा अतीत में जाएंगे। आजमगढ़ की सीट के पीछे की जीत के फार्मूले को खोजने के लिए। देखिए, इस सीट का इतिहास रहा है कि यहां से हमेशा सांसद या तो यादव या फिर मुस्लिम ही चुने जाते रहे हैं। इसके लिए आपको साल 1971 में जाना पड़ेगा। जहां साल 1952 से लेकर 1971 तक लगातार पांच चुनावों में कांग्रेस का कब्जा रहा। इसके बाद 1977 में रामनरेश यादव ने जनता पार्टी की तरफ से जीत हासिल की। मगर साल 1978 में एक बार फिर से कांग्रेस ने वापसी की और मोहसिना किदवई को जीत मिली। मगर असल खेल शुरू होता है 1989 से जब पहली बार इस सीट से बसपा प्रत्याशी रामकृष्ण यादव ने जीत हासिल की। 1989 के बाद 1991 में चंद्रजीत यादव ने जनता दल की तरफ से सांसद चुने गए और फिर साल 1996 से समाजवादी पार्टी का दौर शुरू हुआ। 1996 में पहली बार सपा के प्रत्याशी रामाकांत यादव ने जीत हासिल की। फिर 1998 में अकबर अहमद बहुजन समाज पार्टी की तरफ से सांसद चुने गए और साल 1999 में रमाकांत यादव ने सपा की तरफ से ही अपना दबदबा फिर से कायम किया। इसके बाद साल 2004 में रमाकांत यादव ने पाला बदल कर बसपा की तरफ से एक बार फिर जीत हासिल की। साल 2009 में रामाकांत यादव ने बीजेपी का दामन थाम लिया और एक बार फिर से संसद भवन तक जा पहुंचे। मगर 2014 में मुलायम सिंह यादव ने उन्हें हराकर बड़ी जीत हासिल की। 2019 में अखिलेश यादव और 2022 के उपचुनाव में दिनेश लाल यादव ने बीजेपी की तरफ से जीत दर्ज की। यानी कुल मिलाकर अगर आप इस सीट का आकलन देखेंगे तो यहां से यादव और मुस्लिम के बीच से ही सांसद चुने जाते हैं।

PUBLISHED BY- ARUN CHAURASIYA

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