अखिलेश यादव ने बीजेपी के ब्राह्मण कार्ड के सामने चला कुर्मी जाति का बड़ा दांव, यूपी की सियासत में होगा बड़ा उलटफेर?

By UltaChashmaUC | April 30, 2024

यूपी में अखिलेश यादव ने बीजेपी को हर एक मोर्चे पर घेरना शुरू कर दिया है। सपा मुखिया ने इस बार जिन प्रत्याशी को मैदान में उतारे हैं, वो बेहद तराशे हुए माने जा रहे हैं। यूपी में पिछड़ी जातियों में यादव समाज के बाद सबसे ज्यादा आबादी कुर्मी समाज की मानी जाती है। इसी समीकरण को साधने के लिए अखिलेश यादव किसी तरह का कोई कोर कसर नहीं छोड़ना चाहते।
अखिलेश ने यादव-मुस्लिम के साथ कुर्मियों को राजनीतिक तवज्जो देकर बीजेपी के खिलाफ जबरदस्त तरीके से जातीय चक्रव्यूह रचा है। सपा ने सूबे की 9 लोकसभा सीटों पर कुर्मी समुदाय के प्रत्याशी उतारे हैं, जो पार्टी में किसी एक समुदाय के सबसे ज्यादा उम्मीदवार हैं। साल 2014 हो या फिर 2019 दोनों ही लोकसभा चुनाव में अखिलेश यादव ने खूब सियासी प्रयोग किए। लेकिन सफलता किसी एक में भी न मिली।

पिछले चुनावों से अलग इस बार सपा का गणित
2024 के चुनाव में अखिलेश यादव ने पीडीए का नारा बुलंद किया है। सपा लगातार चुनावों में मुस्लिम-यादव कॉबिनेशन पर ही चुनाव लड़ती रही है, लेकिन इस बार यादव-मुस्लिम के साथ ही कुर्मियों को राजनीतिक तवज्जो देकर बड़ा खेल करने की कोशिश की है। वहीं बीजेपी ने अपने स्वर्ण खासकर ब्राह्मण वोट बैंक को साधे रखा है। इसके लिए सपा ने बीजेपी के ब्राह्मण कार्ड को काउंटर करने के लिए कुर्मी दांव चला है।

इन सीटों पर सपा ने कुर्मी उम्मीदवार उतार कर बीजेपी का खेल बिगाड़ने की पूरी कोशिश की है।
यूपी की 9 लोकसभा सीटों पर कुर्मी समुदाय के प्रत्याशी उतारे हैं।
1. लखीमपुर खीरी - उत्कर्ष वर्मा
2. बांदा - शिव शंकर पटेल
3. अंबेडकर नगर - लालजी वर्मा
4. बस्ती - राम प्रसाद चौधरी
5. प्रतापगढ़ - डॉ. एसपी सिंह पटेल
6. गोंडा - श्रेया वर्मा
7. पीलीभीत - भगवत सरन गंगवार
8. श्रावस्ती - राम शिरोमणि वर्मा
9. फतेहपुर - डॉ. अशोक पटेल
ये वो 9 सीटें हैं जहां से अखिलेश यादव ने कुर्मी समाज से अपना उम्मीदवार उतारा है। इन 9 सीटों में से पांच सीटें ऐसी हैं जिस पर बीजेपी ने ब्राह्मण समाज के उम्मीदवार घोषित किए हैं। जिसमें लखीमपुर खीरी सीट पर बीजेपी के अजय मिश्रा टेनी, अंबेडकरनगर में रितेश पांडेय, बस्ती सीट पर हरीश द्विवेदी, श्रावस्ती सीट पर साकेत मिश्रा और पीलीभीत सीट पर जितिन प्रसाद की सीटें शामिल है। इसके अलावा सपा ने बीजेपी के एक सीट पर ठाकुर, एक सीट पर मल्लाह और एक सीट पर वैश्य समुदाय के खिलाफ कुर्मी समुदाय के उम्मीदवार को उतारा है। सपा ने बांदा सीट पर भी कुर्मी दांव चला है, जहां बीजेपी ने भी कुर्मी समुदाय के प्रत्याशी को उतार रखा है।

"पीडीए" नारे के पीछे छिपा राज
पॉलिटिकल पंडितों की मानें तो कुर्मी वोटर्स के लिए पार्टी से ज्यादा उसके लिए अपने जाति के प्रति झुकाव दिखता है। जिस वजह से अखिलेश यादव ने इस बार यादव से ज्यादा कुर्मी कैंडिडेट दिए हैं और 24 की लड़ाई को ब्राह्मण बनाम कुर्मी की बनाने की पूरी कोशिश की है। 2019 में बीजेपी गठबंधन ने 51 फीसदी वोट हासिल किए थे। अखिलेश यादव को कम से कम ये तो समझ आ गया है कि करीब 27 से 28 फीसदी यादव-मुस्लिम वोटर्स के भरोसे वो लड़ाई में दिखाई तो दे सकते हैं, लेकिन चुनाव जीत नहीं सकते। इसलिए उन्होंने पीडीए का नारा दिया और अपने बेस वोटर का दायरा भी बढ़ाने की कोशिश की है।

80 सीटों में आठ सांसद कुर्मी समाज से
यूपी की सियासत में कहा जाता है कि पिछड़ी जातियों में कुर्मी करीब आठ फीसदी हैं। वहीं, प्रदेश में लोकसभा की करीब 35 सीटें ऐसी हैं जिस पर कुर्मी वोटर्स काफी हद तक जीत और हार तय करते हैं। यूपी की करीब 25 ऐसी सीटें हैं जहां पर कभी न कभी एक बार ही सही लेकिन कुर्मी सांसद चुने गए हैं। मौजूदा समय में 41 कुर्मी विधायक हैं, जिसमें से 27 बीजेपी से हैं, 13 सपा और एक कांग्रेस से हैं। साथ ही यूपी के 80 में से आठ सांसद भी कुर्मी समाज से ही आते हैं। उत्तर प्रदेश में कुर्मी समाज को पटेल, गंगवार, सचान, कटियार, निरंजन, चौधरी और वर्मा जैसे उपनाम से जाना जाता है।

PUBLISHED BY- ARUN CHAURASIYA

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