राजनीतिक मामलों में CBI की रफ्तार धीमी क्यों हो जाती है ? अधिकारियों को सजा दिलाती है ? पढ़िए पूरा विश्लेषण
देश में जब भी कोई बड़ा घोटाला होता है. जब भी कहीं सरकारी भ्रष्टाचार की बातें उठती हैं, तो जांच के लिए सबसे पहला नाम जहन में सीबीआई (CBI) का आता है. भ्रष्टाचार और घूसखोरी ही नहीं बल्कि राजनीतिक (Political) और बड़े आपराधिक (Criminal) मामले भी सीबीआई (CBI) को ही सौंपे जाते हैं. एक आम हिन्दुस्तानी ये मानता है कि अगर किसी मामले की जांच का जिम्मा सीबीआई को सौंप दिया गया तो फिर गुनहेगार बच नहीं सकते. उनका सलाखों के पीछे जाना तय है.

सीबीआई के पास हाईप्रोफाइल केसों की लिस्ट
अगस्ता वेस्टलैंड वीवीआईपी हेलीकॉप्टर (Helicopter) डील केस
हवाला और मनी लॉन्ड्रिंग में मीट कारोबारी मोइन कुरैशी (Moin Qureshi) का केस
बैंक (bank) घोटाले के आरोपी और भगोड़े विजय माल्या (Vijay Mallya) का केस
बहुचर्चित कोयला (Coal) घोटाले की जांच
भारतीय चिकित्सा परिषद रिश्वत का मामला
इलाहाबाद हाईकोर्ट (High Court) के जस्टिस एस एन शुक्ला का मामला
कोयला (Coal) खानों के आवंटन का मामला
दिल्ली में राजनेताओं (Politicians) को रिश्वत देने वाले शख्स को पकड़ने का केस
स्टर्लिंग बायोटेक मनी लॉन्ड्रिंग केस
रॉबर्ट वाड्रा (Robert Vadra) का जमीन आवंटन घोटाला
एयरसेल-मैक्सिस घोटाला
सीबीआई (CBI) के रडार पर देश के कई बड़े राजनेता (Politicians) और व्यापारी हैं. और यही वजह है कि सीबीआई के भीतर महज एक हलचल से देश में सियासी गलियारों में भूचाल खड़ा हो गया .
1941 से अबतक के 77 साल के सफर में सीबीआई (CBI) ने कई उतार-चढ़ान देखे. कभी सीबीआई की साख पर सवाल उठे है तो कभी सीबीआई की कार्यप्रणाली सवालों के घेरे में रही है. लेकिन इसके बावजूद सबसे बड़ा सच ये है कि सीबीआई में साल दर साल भ्रष्टाचार, आर्थिक और विशेष अपराध (crime) से जुड़े मामलों को दर्ज करने की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है. इतना ही नहीं सीबीआई का सीना चौड़ा करने वाली बात ये है कि सीबीआई के पास दर्जनों मामलों में आरोपियों (accused) को सजा दिलाने की दर में भी बढ़ोत्तरी हो रही है.
आकंड़े ये बताने के लिए काफी है कि सीबीआई के पास जितने मामले जांच के लिए आते है उनमें ज्यादातर में आरोपियों को सजा दिलाई जाती है.
साल 2013 में सीबीआई 68.62 प्रतिशत मामलों में आरोपियों को दोषी करार कराने में सफल रही
साल 2012 में आरोपियों को दोषी करार कराने की दर 67 प्रतिशत रही थी
अबतक के सफर में सीबीआई के पास कौन-कौन सी बड़ी उपलब्धियां हैं ?
बिहार के बहुचर्चित चारा घोटाले की जांच का जिम्मा पटना हाईकोर्ट (Patna High Court) के आदेश पर सीबीआई को 1996 में दिया गया था. पूरे राज्य में फैले इस घोटाले (Scandal) की जड़ों तक पहुंचने में सीबीआई को सालों लगे. लेकिन सीबीआई ने हार नहीं मानी. और इसी का नतीजा था कि दो दशकों की जांच और अदालत में जिरह के बाद बिहार के तत्कालीन सीएम और आरजेडी के मुखिया लालू प्रसाद यादव (Lalu Prasad Yadav) को सजा सुनाई गई.
सीबीआई ने हरियाणा के टीचर भर्ती घोटाले में पूर्व सीएम ओम प्रकाश चौटाला और उनके बेटे अजय चौटाला (Ajay Chautala) को भी 10-10 साल की सजाई सुनवाई.
आरोपियों को सज़ा दिलाने का प्रतिशत भले ही सीबीआई का शान बढ़ा रहा हो लेकिन एक कड़वी सच्चाई ये भी है कि अगर चंद मामलों को छोड़ दे तो ज्यादातर हाई प्रोफाइल मामले में सीबीआई के हाथों से आरोपी बच निकलते हैं.
2014 के चुनाव से पहले टू जी स्पेक्ट्रम घोटाले से देश की सियासत (politics) में भूचाल आ गया था. 2010 में सीएजी की रिपोर्ट में खुलासा हुआ था कि इस घोटाले से सरकारी खजाने को एक लाख 76 हजार करोड़ रुपये का चूना लगा गया. तत्कालीन टेलीकॉम मंत्री ए. राजा और डीएमके नेता कनिमोझी (Kanimozhi) पर घोटाले (Scandal) में शामिल होने के आरोप लगे. मामला गर्माया तो इसकी जांच सीबीआई को सौंपी गई. लेकिन सालों की जांच पड़ताल और अदालती कार्यवाही के बाद सभी आरोपी बरी हो गए.
टूजी घोटाले के जैसा ही हाल सीबीआई की बोफोर्स तोप के सौदे की जांच में भी हुआ. राजीव गांधी की सरकार में बोफोर्स तोप सौदा एक बड़ा मुद्दा बन गया था. इस मामले की जांच भी सीबीआई को सौंपी गई. लेकिन नतीजा सिफर, ना कोई आरोपी पकड़ा गया. ना कोई दोषी साबित हुआ.
साफ है जब केस सरकारी अफसरों (Government officers) और कर्मचारियों से जुड़े भ्रष्टाचार के होते हैं तो सीबीआई बेहद तेजी से काम करती है. और आरोपियों को उनके अंजाम तक भी पहुंचाती है. लेकिन जहां सीबीआई के लपेटे में सियासतदान आते हैं तो ना केवल सीबीआई की जांच की रफ्तार धीमी पड़ जाती है बल्कि जांच किसी अंजाम तक पहुंचने से पहले ही रास्ता भटक जाती है. और जिसका नतीजा अदालत के फैसलों में नजर आता है.
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