दलितों की जमीनें बिकने में किसका फायदा, बीजेपी ने क्यों बदल दिए नियम
आज उत्तर प्रदेश में..दलितों की जमीनों को लेकर बीजेपी ( BJP ) सरकार ने बहुत बड़ा फैसला लिया है..दोस्तों अब दलितों की जमीन कोई भी खरीद सकता है..अब तक नियम ये था कि बिना डीएम की परमीशन के बिना यूपी में दलितों की जमीन कोई गैर दलित नहीं खरीद सकता था..दलित अपनी जमीन सिर्फ दलित को ही बेच सकता था..सरकार नियमों में ये बदलाव किसके मुनाफे के लिए कर रही है..
दलित की जमीनें बेचने से सरकार को क्या फायदा
दलित अपनी जमीनें बेचने लगेगा इससे सरकार को क्या फायदा होगा..क्या सरकार ने ये दलितों के फायदे के लिए किया..दलित अपनी बेच दे इसमें किसका इंटरेस्ट है..क्या दलितों की जमीनें बिकने से देश 5 ट्रिलियन इकोनॉमी बन जाएगा..दलितों के जमीन बेचेने के प्रॉसेस को सरकार ने आसान क्यों कर दिया.. दोस्तों ट्विटर पर एक यूजर ने दलितों की जमीन बेचने को आसान करने की खबर के बाद एक वीडियो शेयर किया..
दलितों की जमीनें अब बेशकीमती है
अब दलित आदिवासी लोग अपनी जमीन बेधड़क बिल्डरों को दे सकते हैं..जिसको मर्जी उसको जमीन बेच सकते हैं अब डीएम से परमीशन लेने की जरूरत नहीं है..एससी एसटी की जमीन कोई दूसरा व्यक्ति बिना परमीशन नहीं खरीद सकता था..ये कानून इसलिए लाना पड़ा था क्योंकि समाज के इस सबसे कमजोर वर्ग की जमीनें हथियाई जा रही थीं..कोई शराब पिलाकर जमीन अपने नाम करा लेता था..कोई कर्ज देकर जमीन छीन लेता था..कोई लालच देकर रोजी का एकमात्र विकल्प छीन लेता था..दलित सिर्फ दलित को ही जमीन बेच सकता था..ये नियम आने के बाद दलितों की जीमीनें अब तक बची हुई थीं..दलितों की जमीनें अब बेशकीमती हो चुकी हैं..
इन बेशकिमती जमीनों की बिक्री के नियम को बदलने पर मयंक नाम के व्यक्ति ने कहा बधाई हो, फ्री राशन के चक्कर में जमीन ही चली गई, बड़ी खुशी खुशी वोट डाला था बोल रहे थे की फ्री राशन मिल रहा है और क्या चाहिए..पहले पेंशन खत्म करी फिर सरकारी नौकरियां खत्म करी, फिर सरकारी कंपनियों को ही बेच दिया ताकि कोई नौकरी न मांगे अब जमीन भी छीन लेंगे। अमृतकाल है, मजे करो…ये देखिए..हंसराज मीणा ने कहा कि बहुजन समाज योगी आदित्यनाथ सरकार की इस सामंती व्यवस्था के खिलाफ बड़ा आंदोलन करे..
अब ज़मीन बेचने के लिए नहीं लेनी होगी मंजूरी
दोस्तो अब तक उत्तर प्रदेश जमींदार विनाश एवं भूमि व्यवस्था अधिनियम, 1950 के तहत दलित जाति के किसी भी व्यक्ति को अपनी खेती की जमीन किसी गैर दलित व्यक्ति को बेचने के लिए जिलाधिकारी से मंजूरी लेना जरूरी था..अब किसी की रोक टोक की जरूरत नहीं रह गई है..जब सरकारें कंपनियां बेच रही हैं..जब बेचने का मोटीवेशन ऊपर से आ ही रहा है तो दलित क्यों पुरखों की पूंजी बचाकर रखे !