आजमगढ़ में इसलिए हारे अखिलेश, पहले से लिखी हुई थी हार की स्क्रिप्ट..Analysis By Pragya

आजमगढ़ और रामपुर लोकसभा उपचुनाव में बीजेपी की जीत हुई..लेकिन मजेदार बात ये है कि समाजवादी पार्टी अपनी हार का जिम्मेदार बसपा को बता रही है..सपा कहती है कि वो बसपा की वजह से हार (Why Akhilesh Yadav Lost in Azamgarh) गए..तो भइया क्या चाहते हो..बसपा चुनाव लड़ना बंद कर दे..बसपा के लोग राजनीति करना छोड़ दें..बसपा वाले सब संन्यास लेकर घर बैठ जाएं..यूपी में आपके और बीजेपी के अवाला सब राजनीति करना छोड़ दें..सपा के नेता गजब-गजब बहाना बनाते हैं कि हम बसपा की वजह से हार गए..आरे भाई बसपा को जिम्मेदार बताने वाली समाजवादी पार्टी अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष से क्यों नहीं कहती कि हम आपकी वजह से हार गए..
आपने भरे चुनाव में पार्टी को लावारिस छोड़ दिया..आप अपनी छोड़ी हुई आजमगढ़ सीट पर प्रचार करने नहीं गए..आप रामपुर प्रचार करने नहीं गए..आपने चुनाव को सीरियस नहीं लिया..अगर डिंपल यादव आजमगढ़ (Why Akhilesh Yadav Lost in Azamgarh) से चुनाव लड़तीं तो क्या तब भी अखिलेश यादव आजमगढ़ चुनाव प्रचार करने नहीं जाते..एक पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के लिए उसका हर प्रत्याशी उसका अपना प्रत्याशी है..कोई भी प्रत्याशी जीतेगा तो पार्टी की संख्य़ा में ही जुड़ेगा..खैर मुद्दा ये नहीं है..मुद्दा ये है कि आजमगढ़ समाजवादी पार्टी क्यों हारी..
सपा कहती है कि बसपा के गुड्डू जमाली की वजह से सपा हार गई..लेकिन ऐसा बिल्कुल ऐसा नहीं है…शुतुर्मुर्ग की तरह गर्दन रेत में ही गाड़े रखिए तो अलग बात है लेकिन अगर आप सच्चाई स्वीकार करने का जिगरा रखते हैं..तो ये आंकड़े देखिए..बसपा के शाह आलम को इस उपचुनाव में मिले हैं..2 लाख 66 हजार वोट…पिछली बार यानी 2014 में जब ये मुलायम सिंह यादव के सामने लड़े थे तो मिले थे..2 लाख 67 हजार वोट..यानी इस बार तो बसपा को इस बार एक हजार वोट कम मिले…
फिर भी सपा हार गई..2019 में सपा बसपा गठबंधन में लड़ी थी..तो अखिलेश को मिले थे 6 लाख वोट तो उसका कम्पैरिजन करना बेकार है..2014 में जब मुलायम सिंह यादव चुनाव (Why Akhilesh Yadav Lost in Azamgarh) लड़े थे..तो उनको मिले थे 3 लाख 40 हजार वोट..बसपा को तब भी इतने ही वोट मिले थे..जिनते अब मिले हैं..लेकिन अब सपा के धर्मेंद्र को मिले हैं.. 3 लाख चार हजार वोट..निरहुआ 3 लाख 12 हजार वोट के साथ जीत गए हैं..
तो समाजवादी पार्टी अपनी हार का ठीकरा बसपा पर फोड़ना बंद करे…जितना वोट पिछली बार जितना बसपा के गुड्डू जमाली के पास था..उससे एक हजार वोट कम ही मिला है..फिर भी सपा हार गई..दोस्तों ये तो हुई आंकड़ों की बात अब सुनिए..जमीनी बात…आजमगढ़ में अगर अखिलेश यादव डिंपल यादव (Why Akhilesh Yadav Lost in Azamgarh) को लड़ते तो सीट बच सकती थी..क्योंकि आजमगढ़ के यादवों को डिंपल के भीतर अखिलेश का अक्स दिख सकता था..धर्मेंद्र यादव के भीतर आजमगढ़ के यादवों को अपनापन दिखाई नहीं दिया..आजमगढ़ के यादवों ने धर्मेंद्र यादव की जगह दिनेश लाल यादव निरहुआ को अपने ज्यादा करीब पाया..आजमगढ़ में चुनाव सपा बीजेपी का तो था ही लेकिन उससे ज्यादा दो यादवों का चुनाव था..
अगली बात ये है कि आजमगढ़ के यादवों ने इस बार मन बना लिया था..कि अकिलेश यादव को तो मौका दे दिया..अब दूसरे यादव निरहुआ को भी मौका दिया जाए जो बेचारा इतने सालों से आजमगढ़ में लगा हुआ है..हार के बाद भी आजमगढ़ से नाता नहीं तोड़ा है..इसलिए आजमगढ़ में 10 के 10 विधायक सपा के होने के बाद भी सपा बुरी तरह से हार गई..
एक बात ये भी है जो आपको कोई नहीं बताएगा..आजमगढ़ में बड़े यादव नेताओं ने भी पूरे मन से धर्मेंद्र यादव को नहीं स्वीकारा..क्योंकि उनको अंदाजा था..कि अखिलेश नहीं लड़ेंगे तो डिंपल यादव लड़ेंगी..डिंपल लड़तीं तो बात दूसरी होती..लेकिन धर्मेंद्र यादव को आजमगढ़ के बड़े यादव नेताओं ने भी दिल से स्वीकार नहीं किया..क्योंकि जिस तरीके से अखिलेश यादव अपने परिवार से दूर हुए हैं..उस लिहाज से अखिलेश यादव के परिवार से आजमगढ़ (Why Akhilesh Yadav Lost in Azamgarh) में उनकी पत्नी के स्वागत की ही जगह बची थी..डिंपल के अलावा किसी और के बराबर आजमगढ़ के बड़े यादव नेता तो खुद अपने आप को देखते हैं..धर्मेंद्र यादव से बड़े यादव नेता आजमगढ़ में खुद मौजूद थे..
अखिलेश यादव ने अपनी ही पार्टी का चुनाव प्रचार नहीं किया..कुछ लोगों ने इसे परिवारिक वजह बताई..कुछ लोगों के बीच चर्चा थी कि आजमगढ़ और रामपुर में अखिलेश यादव का चुनाव प्रचार (Why Akhilesh Yadav Lost in Azamgarh) ना करना..आजमखान को जेल से बाहर निकालने की कीमत थी…वर्ना जब उपचुनाव में जब योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री होते हुए अपने कैंडीडेटों का प्रचार करने जा सकते हैं..तो अखिलेश यादव के पास तो योगी आदित्यनाथ से ज्यादा खाली समय होगा..फिर भी नहीं गए..
रामपुर में राजनीतिक जानकार पहले से कह रहे थे..कि रामपुर की सीट समाजवादी पार्टी हार जाएगी..क्यों हार जाएगी..इसके बारे में आप मुझसे बेहतर जानते हैं..क्योंकि कुछ चीजें केवल देखी जा सकती हैं..कही नहीं जा सकती हैं..जिस दिन आजमखान जेल से बाहर निकले थे..उसी दिन रामपुर की लोकसभा सीट पर हार का ठप्पा लग गया था..कुछ तो मजबूरियां रही होंगी साहब कोई बेवफा यूं ही नहीं होता..
समाजवादी पार्टी मुसीबत में थी..सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष देश को नया राष्ट्रपति देने की असंभव कोशिश में लगे थे..विपक्ष का उम्मीदवार राष्ट्रपति नहीं बनेगा ये तो पहले से तय है..लेकिन कैंडीडेड खड़ा (Why Akhilesh Yadav Lost in Azamgarh) करके भी विपक्ष कोई संदेश नहीं दे पाया..किसी कमजोर किसी गरीब..किसी संघर्षशील नेता..किसी पिछड़े किसी दलित को राष्ट्रपति का प्रत्याशी बनाने के बजाय..यशवंत सिन्हा को राष्ट्रपति प्रत्याशी बनाया है..बीजेपी ने राष्ट्रपति का उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू को बनाया है..मुर्मू आदिवासी समाज से आती हैं..पूरे देश में मैसेज गया कि बीजेपी में किसी को भी मौका मिल सकता है लेकिन विपक्ष में किसी को भी मौका नहीं मिल सकता..सगे संबंधी यार दोस्त और जमे हुए लोगों को ही जमाया जाएगा..
दोस्तों यूपी में लोकसभा उपचुनाव में सपा क्यों हारी उसकी जमीनी बातें मैंने लोकल नेताओं और पत्रकारों से बात करके तैयार की है..इसमें तमाम ऐसी बाते हैं..जिनको कहने का मेरे पास कोई (Why Akhilesh Yadav Lost in Azamgarh) आधार नहीं था..इसलिए मैंने उनको शामिल नहीं किया है..लेकिन वो बातें यहां बताई गई बातों से ज्यादा सच्ची लगती हैं..खैर दोस्तों जैसे अकेला आदमी कभी कंपनी का मालिक नहीं बन सकता..वैसे ही नेतागीरी में जो नेता बरगद बन जाता है फिर उसकी आदत में शुमार हो जाता है..अपने नीचे कोई दूसरा पेड़ ना उगने देना..कोई दूसरा पेड़ नहीं उगेगा..तो 80 लोकसभा और 403 विधानसभा सीटों पर नए पौधे कैसे तैयार होंगे..
Disclamer- उपर्योक्त लेख लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार द्वारा लिखा गया है. लेख में सुचनाओं के साथ उनके निजी विचारों का भी मिश्रण है. सूचना वरिष्ठ पत्रकार के द्वारा लिखी गई है. जिसको ज्यों का त्यों प्रस्तुत किया गया है. लेक में विचार और विचारधारा लेखक की अपनी है. लेख का मक्सद किसी व्यक्ति धर्म जाति संप्रदाय या दल को ठेस पहुंचाने का नहीं है. लेख में प्रस्तुत राय और नजरिया लेखक का अपना है.