मुस्लिमों की चूड़ी टाइट करनी थी.. चूड़ियां तोड़नी नहीं थीं : संपादकीय व्यंग्य

मैं आपसे सवाल कर रही हूं हां हां आपसे..फिल्म स्टारों का घर तोड़े जाने को छोड़ दीजिए..तो क्या आपने अब से पहले इतिहास में कभी ऐसा देखा था कि अतिक्रमण हटाने के सामान्य से सरकारी काम को टीवी पर दिखाने के लिए..मीडिया का सारा पत्रकार बुल्डोजरों पर चढ़ गया हो..क्या अब से पहले कभी हुआ था कि टीवी मीडिया की एंकर एंकराओं ने स्टूडियो छोड़कर अतिक्रमण हटाओ अभियान को टीवी पर दिखाने के लिए दौड़ लगा दी हो..क्या आपने अब से पहले कभी ऐसा देखा था कि पीड़ितों को छोड़ पूरा टीवी मीडिया बुलडोजर के पक्ष में खड़े होकर सरकार की भाषा बोला हो.. (The handcart of the poor was broken.The gum was broken.)
जब भी अतिक्रमण हटाने में सरकारों ने तोड़ फोड़ की है..तब तब मीडिया ने पीड़ितों की तरफ खड़े होकर ये बताया है कि गरीब का ठेला तोड़ दिया गया..गुमटी तोड़ दी गई..इसे नोटिस देकर हटवाया जा सकता था..एनउंसमेंट करके एक बार बताया जा सकता था..कि सड़क पर अतिक्रमण अवैध है हटा लो वर्ना तोड़ दिया जाएगा..नष्ट कर देना निर्माण से बहुत आसान है..तो एक बात साफ है कि ये अतिक्रमण हटाने की सामान्य कार्रवाई नहीं थी..ये मुसलमानों से से शोभा यात्रा के दिन हुई घटना का बदला था.. (The handcart of the poor was broken.The gum was broken.)
हनुमन जयंती पर जो हुआ..उसका बदला लेने के लिए कानून को आड़ बनाकर सरकार को बुलडोजर लेकर उतरना पड़ा..रोती औरत ने कहा मत तोड़ो सरकार नहीं मानी..लोगों ने कहा मत तोड़ो सरकार नहीं मानी..सुप्रीम कोर्ट तक ने कह दिया..सरकार फिर भी नहीं मानी..जो तोड़ना था वो तोड़कर ही रूके..इस इलाके से जुलूस पर पथराव हुआ था..ठीक है..लेकिन इस रोती औरत ने कितने पत्थर चलाए थे..चलिए ये औरत मुसलमान है..इसने तो रॉकेट लॉन्च करने की भी ट्रेनिंग ले रखी होगी…लेकिन अपनी टूटी दुकान से फ्रूटी बीनते इस बच्चे ने कितने पत्थर चलाए होंगे..चलिए इनकी छोड़िए मोटा मोटी ये बताईये..कि दंगाई बताकर देश के जिन हिस्सों में जितने मुसलमानों के घर गिरा दिए गए.. (The handcart of the poor was broken.The gum was broken.)
उनके घर की बूढ़ी माओं का क्या दोष है..घर की बहुओं का क्या दोष है..घर के बच्चों का क्या दोष है..जिसने पत्थर मारे हैं..उनके घर वालों से छत छीनकर उनकी घर की औरतों को सड़क पर बिठा दिया जाएगा क्या…क्य ये भारत वर्ष का न्याय है..क्या ये है हमारा भारत..जो अपराध करेगा उसका घर तोड़ दिया जाएगा..क्या उस घर में केवल अपराधी ही रहता था..क्या एक आदमी के अपराध करने से पूरा घर अपराधी मान लिया जाएगा..किसी भी चीज की अति ठीक नहीं होती..स्वर्ग और नर्क सब यहीं उसी धरती पर है (The handcart of the poor was broken.The gum was broken.)
एक आदमी के कर्मों की सजा आप पूरे घर को नहीं दे सकते..हिंदुस्तान का संविधान ये नहीं कहता…बुलडोजर प्रथा मुस्लमानों के खिलाफ एकतरफा पक्षपाती कार्रवाई है..क्यों है वो भी बता देती हूं…देश के गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा टेनी के बेटे पर आरोप है कि जुलूस निकाल रहे किसानों को उसने अपनी गाड़ी से रौंदकर मार दिया..फिर से सुनिए जुलूस निकाल रहे किसानों को रौंदकर मार दिया..जुलूस पर पत्थर नहीं मारे..जुलूस वालों को ही रौंद डाला (The handcart of the poor was broken.The gum was broken.)
आशीष मिश्रा टेनी का घर क्यों नहीं गिराया गया..अजय मिश्रा टेनी के लड़के ने किसनों को मारा..तो उसका घर क्यों नहीं गिरा..वो ईंटे बीनते हुए क्यों टीवी पर नहीं दिखाई दिए..अजय मिश्रा टेनी के घर पर हिंदूवादी सीमेंट से बना है क्या..पत्थर मारने और बंदे मारने दोनों में अंतर होगा ना क्यों होता होगा ना आपही से पूछ रही हूं..तो फि बंदे मारने वाले के घर को आज के न्याय शास्त्र के हिसाब से बुलडोजर से नहीं..तोप से उड़ा देना चाहिए था कि नहीं..चाहिए था कि नहीं (The handcart of the poor was broken.The gum was broken.)
कानून के हिसाब से गलत हो रहा है..संविधान के हिसाब से गलत हो रहा है..इंसानियत के हिसाब से गलत हो रहा है..पूरा भारत जानता है गलत हो रहा है..मुसलमानों के लिए इतनी नफरत..इतनी घृणा..सरकार का इतना सौतेला व्यहवार..सबको सब दिखाई दे रहा है..कोई कुछ नहीं बोल रहा है..जैसे कभी इन गुप्ता जी को मजा आता होगा..लेकिन वैसे ही पिसे हैं जैसे गेहूं के साथ घुन पिस जाता है..कहते हैं 1977 से दुकान थी..कागज भी थे..फिर भी तोड़ दी..ये भाई साहब रजिस्ट्री लेकर खड़े हैं..कहते हैं..मेरा भी तोड़ डाला (The handcart of the poor was broken.The gum was broken.)
सरकारी जमीनों को कब्जे से छुड़वाईये..अतिक्रमण हटवाईये..लेकिन लड़ाई दंगा करने वालों का घर गिरा देना..न्याय नहीं है..बीवी बच्चों को सड़क पर बिठा देना न्याय नहीं है..परिवार को यातना देना न्याय नहीं है..हम आंख के बदले आंख निकाल लेने वाले देश नहीं हैं..हमारे देश में अपराधी को भी अपना वकील करने का अधिकार दिया जाता है..पत्थर फेंकने वाले को फांसी पर लटकाईये..लेकिन परिवारों के घर तोड़ देना..अवैध बताकर प्रधानमंत्री आवास वाला भी घर तोड़ देना..जो जेल में हैं..उनको भी मुस्लिमों से नफरत के पूर्वाग्रह के चलते दंगाई बता देना..देश को नफरत की भट्टी में झोकने जैसा है..हिंदू हिंदुस्तान के बाहर भी रहते हैं (The handcart of the poor was broken.The gum was broken.)
ऐसी बदले की कार्रवाईयां अरब देशों में रहकर देश के लिए कमाने वाले हिंदू भाईयों को असहज करती हैं..स्वर्ग नर्क सब इसी धरती पर हैं..हिंदुओं ने सरकार मुसलमानों की चूड़ी टाइट रखने के लिए चुनी है..चूड़ियां तोड़ देने के लिए नहीं..हिंदू वर्चस्वी है लेकिन हिंसक नहीं हैं..क्रूर नहीं है..इसीलिए कहती हूं..किसी भी चीज की अति ठीक नहीं..हिंदू राष्ट्र बनाने के दूसरे रास्ते भी हैं..घर गिराने से राष्ट्र हिंदू राष्ट्र बनने से पहले हिंसक राष्ट्र बनने की राह पर बढ़ जाएगा..जागिए..देश संविधान से चलेगा..शोषण से कोई संस्कृति कोई राष्ट्र शक्तिशाली नहीं हुआ है (The handcart of the poor was broken.The gum was broken.)