‘मेंटल’ ही मनमोहन सिंह को ‘एक्सीडेंटल’ बताते हैं, मनमोहन वो नहीं थे जो दिखाया गया…

‘द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर’  (The Accidental Prime Minister ) का ट्रेलर देखकर जो यंग जनरेशन मुंह पर हाथ रखकर हाव्व हाव्व की आवाजें निकाल रही है. जिनको ये सोचने पर मजबूर किया जा रहा है कि मनमोहन सिंह के 10 साल कूड़ा थे. कांग्रेस ने बहुत भ्रष्टाचार किए. कांग्रेसी देश लूटकर खा गए. वो ये जान लें कि सीएजी रिपोर्ट के मुताबिक कांग्रेस पर भ्रष्टाचार के तीन आरोप लगाए….

  • 2 जी घोटाला 
  •  कोयला घोटाला
  •  कॉमनवेल्थ गेम्स घोटाला

 

  •  2G घोटाले में तत्कालीन मंत्री ए राजा से लेकर कनीमोझी तक सब बरी हो गए
  •  कोयला घोटाले में किसी को कोई सजा नहीं हुई
  • कॉमनवेल्थ घोटाले में फैसला अभी तक आया नहीं है

तो जिसे सबसे बड़ा घोटालेबाज बताया गया था. 10 साल की कांग्रेस सरकार अब तक घोटालेबाज तो साबित हुई नहीं है. 2014 के लोकसभा चुनाव में मनमोहन सिंह को कमजोर पीएम कहा गया. मां बेटे की सरकार कहकर बीजेपी कांग्रेस पर हमलावर रही. लेकिन 2019 में तो ऐसा नहीं चलने वाला. मनमोहन सिंह को घेरने से इस बार वोट नहीं मिलने वाले. कांग्रेस को कटघरे में खड़ा करके 2019 नहीं लड़ा जा सकता. 2019 में खुद के 5 सालों का हिसाब देना होगा.

 

accidental prime minister
accidental prime minister

अपनी रैलियों और सोशल मीडिया में बीजेपी जनता के दिमाग में सवाल ठूंस देती है कि मोदी के सामने खड़ा होने वाला कांग्रेस का चेहरा कौन है ? इस सवाल के बदले जानकार एक और सवाल करते हैं कि 2004 में जब अटल बिहारी वाजपेयी का शाईनिंग इंडिया का नारा चल रहा था. जब सोनिया को इटली वाली औरत बताया जा रहा था. तब बीजेपी के सामने चेहरा कौन था. लेकिन बिना चेहरे के ही बीजेपी का साईनिंग इंडिया फेल हो गया था. कांग्रेस से मनमोहन सिंह ने 10 साल तक राज किया. लोकतंत्र की खूबसूरती ही यही है कि यहां सांसद चुने जाते हैं. एक चेहरा नहीं खैर..

संजय बारू ने जो किताब एक्सीडेंटल प्रधानमंत्री लिखी है. वो कितनी सच है इस पर भी सवाल हैं. तो पहले ये समझ लें कि बारू ने किताब लिखी है गीता नहीं बारू की किताब पर विवाद भी हैं. मनमोहन सिंह एक्सीडेंटल पीएम थे इसमें कोई दो राय नहीं लेकिन क्या खुफिया फाइलों तक संजय बारू की पहुंच थी. संजय बारू मनमोहन के मीडिया सलाहकार थे. और मीडिया वाले खुफिया फाइलों पर पहुंच जाते थे क्या. क्या बारू मनमोहन और सोनिया गांधी की पर्सनल टॉक का हिस्सा बनते थे ? अगर नहीं तो आप खुद सोचिए किताब कितनी सच्ची थी. लेकिन फिर से ये समझते चलिए कि मनमोहन सिंह रिमोट से ऑपरेट होते थे. ये बात सही है. वो नकारा थे बात सही नहीं है.

2004 में बीजेपी को बुरी तरह से हराने के बाद बारी आई कांग्रेस से प्रधानमंत्री दावेदार की. कांग्रेस में ह्त्याओं के इतिहास को देखते हुए सोनिया गांधी खुद प्रधानमंत्री नहीं बनना चाहती थीं. उनको तलाश थी एक ऐसे चेहरे की जो उनका विश्वस्त हो.

सामने आए दो नाम. प्रणव मुखर्जी और अर्जुन सिंह लेकिन इन दोनों में से किसी एक को पीएम बनाने पर पार्टी में गुटबाजी हो सकती थी इसलिए सोनिया ने चुना तीसरा इंसान जिसे पॉलिटिक्स की ज्यादा समझ नहीं थी लेकिन इकोनॉमिक्स का प्रकांड पंडित था. नाम था मनमोहन सिंह.

लोकतंत्र में जनता अपने प्रतिनिधि का चुनाव करती है. वो पहले सांसद चुनती है. फिर सांसद अपना नेता चुनते हैं जिसे प्रधानमंत्री कहा जाता है. तो कांग्रेस की वापसी हो ही नहीं सकती क्योंकि उनके पास मोदी की टक्कर का चेहरा नहीं है सत्ता पक्ष का ये सोचना गलत है. विपक्ष वापसी कर सकता है. और पहले कर भी चुका है.

मनमोहन सिंह जिनको बीजेपी तुच्छ साबित करती है. उन्होंने मनरेगा जैसी योजना दी जिसने भारत के करोडों लोगों को रोजगार दिया. खाद्य सुरक्षा गारंटी कानून दिया. जिसने गरीबों के लिए दो वक्त की रोटी पक्की की.

जिस आधार कार्ड को बीजेपी हर चीज में जरूरी करती जा रही है वो आधार कार्ड भी मनमोहन का था. जिसका विरोध उस समय बीजेपी ने ही सबसे ज्यादा किया था. जिस जीएसटी को बीजेपी ने छाती पीटकर व्यापारियों पर लाद दी. उस जीएसटी का प्लान भी कांग्रेस का था लेकिन तब बीजेपी विरोध करती थी. अब उसे ही अपना लिया.

हालांकि दागियों को बचाने वाले बिल की कॉपी राहुल ने फाड़कर फेंक दी उसने मनमोहन सिंह की निर्णय लेने की क्षमता पर सवाल खड़े कर दिये. और गांधी परिवार के प्रधानमंत्री पर हावी होने की तस्वीर दुनिया को दिखा दी. दुनिया को पता चल गया कि मनमोहन पपेट पीएम हैं.

बात अगर रिमोट कंट्रोल पीएम की हो रही है तो मनमोहन की क्यों बीजेपी की वर्तमान सरकार भी तो नागपुर के इशारे पर चलती है. ऑर्डर तो बीजेपी को संघ से भी मिलते हैं. लेकिन मोदी जी मुखर हैं दहाड़ कर बोलते हैं तो वो रिमोट कंट्रोल्ड पीएम नहीं हो सकते.

 

बीजेपी की बहुमत की सरकार है. तब मोदी जी इतना कॉन्फीडेंस से बोलते हैं. उनकी टांग खींचने वाला सत्ता में कोई साझी दल नहीं है. तब मेकइन इंडिया स्किल इंडिया. और इस तरह की ना जाने कितनी योजनाएं बनाई हैं. जिनका मनरेगा की तरह जनता से सीधा जुड़ाव ही नहीं है.

मोदी सरकार को ये समझना चाहिए कि इस बार मनमोहन सिंह पर हमलावर होने से काम नहीं चलेगा. इस बार अपना रिपोर्ट कार्ड दिखाना होगा. बताना पड़ेगा कि जिस लोकपाल आंदोलन ने कांग्रेस की सरकार गिरा दी थी. बीजेपी के 5 साल बीतने के बाद भी लोकपाल की नियुक्ति क्यों नहीं हो पाई.

निर्भया कांड कांग्रेस के ताबूत में आखिरी कील था. बीजेपी सरकार में रेप के आंकड़े कितने नीचे रहे. ये बताना होगा. पकौड़ियों के अलावा देश में कितने रोजगार दिए ये बताना होगा.

2014 वो साल था जब अपनी बनियान में एक भी छेद नहीं था. छेद तो छोड़िए तब आपने बनियान पहनी ही नहीं थी. लेकिन इस बार दूसरे की बनियान के छेद गिनाने से पहले अपनी बनिया के छेद भी देखने पड़ेंगे मनमोहन के खिलाफ माहौल से बीजेपी को ज्यादा फायदा होने वाला नहीं है.

मौन रहने वाले मनमोहन सिंह प्रेस कॉन्फ्रेंस करके मोदी सरकार से पूछ चुके हैं कि अब तक जनता से किए कितने वादे पूरे कर चुके हैं. यहां तक कि मनमोहन सिंह ने ये भी कह दिया कि बीजेपी ने जनता से जो वादे किए वो पूरे करने नामुमकिन हैं. जीएसटी और नोटबंदी जैसे फैसले  सरकार को नुकसान पहुंचाएंगे.

 

web title- The Accidental Prime Minister