शरद पूर्णिमा: इस ख़ास तरीके से बनायें ‘खीर’ और लगाएं भोग, बरसेगा अमृत, जानें शुभ मुहूर्त, पूजा की विधि
आज 13 अक्टूबर रविवार को भारत में शरद पूर्णिमा मनाई जा रही है. इसे रास पूर्णिमा भी कहते हैं. ज्योतिष विज्ञान की मानें तो साल में केवल इसी दिन ही चंद्रमा सोलह कलाओं से पूर्ण होता है.

शरद पूर्णिमा क्यों और किस लिए होती है क्या आप जानते हैं ? आज हम इसी के बारे में आपको ख़ास जानकारी देने जा रहे हैं.
शरद पूर्णिमा की रात्रि को चंद्रमा की किरणों से सुधा यानी अमृत बरसता है. चंद्रमा सोलह कलाओं से पूर्ण होने के कारण इस रात चंद्रमा की रोशनी को पुष्टिवर्धक माना जाता है. इसलिए चन्द्रमा की चांदनी का लाभ लेने से वर्षभर मानसिक और शारीरिक रूप से स्वास्थ्य अच्छा रहता है. प्रसन्नता और सकारात्मकता भी बनी रहती है. क्युकी चंद्रमा की घटती और बढ़ती अवस्था से ही मानसिक और शारीरिक उतार-चढ़ाव आते हैं.
चंद्रमा मीन राशि और मंगल कन्या राशि में रहेगा. दोनों ग्रह आमने-सामने रहेंगे. वहीं मंगल, हस्त नक्षत्र में रहेगा, जो कि चंद्रमा के स्वामित्व वाला नक्षत्र है. इससे पहले ग्रहों की ऐसी स्थिति 14 अक्टूबर 1989 में बनी थी. इनके अलावा चंद्रमा पर बृहस्पति की दृष्टि भी पड़ने से गजकेसरी नाम का एक और शुभ योग भी बन रहा है.
माना जाता है कि आज के दिन देवी लक्ष्मी पृथ्वी का भ्रमण करती हैं और जो रात में जाग कर देवी लक्ष्मी की पूजा करता है उस पर माता लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं. और इस शरद पूर्णिमा पर महालक्ष्मी योग में देवी की पूजा करने का सौभाग्य 30 साल बाद मिल रहा है. महालक्ष्मी योग बनने से शरद पूर्णिमा पर खरीदारी और नए काम शुरू करना शुभ रहेगा. इस शुभ संयोग में प्रॉपर्टी, निवेश और महत्वपूर्ण लेन-देन करने से धन लाभ होने की संभावना और बढ़ जाएगी.
शरद पूर्णिमा के दिन शाम को खीर बनाकर रात को शुभ मुहूर्त में सभी देवी देवताओं को और फिर चंद्रमा को उस खीर का भोग लगाना चाहिए. इसके बाद चंद्रमा अर्ध्य देकर भोजन या फलाहार करना चाहिए. इसके बाद घर की छत पर या किसी खुले स्थान पर साफ जगह खीर रखें और वहीं चंद्रमा की रोशनी में बैठकर भजन-किर्तन करना चाहिए. इसके बाद अगले दिन सुबह जल्दी उठकर ब्रह्म मुहूर्त में उस खीर को प्रसाद के रूप में खाना चाहिए.
ग्रंथों के अनुसार आज के दिन बनाई जाने वाली खीर एक दिव्य औषधि होती है. इस खीर को गाय के दूध और गंगाजल के साथ अन्य पूर्ण सात्विक चीजों के साथ बनाना चाहिए. और अगर संभव हो तो ये खीर चांदी के बर्तन में बनाएं. चावल को हविष्य अन्न यानी देवताओं का भोजन बताया गया है. महालक्ष्मी भी चावल से प्रसन्न होती हैं. इसके साथ ही केसर, गाय का घी और अन्य तरह के सूखे मेवों का उपयोग भी इस खीर में करना चाहिए.
शरद पूर्णिमा की रात में सूई में धागा पिरोने का अभ्यास करने की भी परंपरा है. माना जाता है कि सूई में धागा डालने की कोशिश में चंद्रमा की ओर एकटक देखना पड़ता है. जिससे चंद्रमा की सीधी रोशनी आंखों में पड़ती है. इससे नेत्र ज्योति बढ़ती है.
शरद पूर्णिमा मुहूर्त
सुबह 8:05 से 11:50 तक
दोपहर 01:45 से 02:45 तक
शाम 06:05 से रात 10:25 तक
चंद्रमा पूजन का समय-
शाम 07:35 से रात 08:50 तक
मध्यरात्रि मुहूर्त-
रात 11:45 से 12:30 तक