नोटबंदी हर बार नहीं की जा सकती..चुनाव शुरू छापों (Raid) का खेल शुरू..

दोस्तों समाजवादी पार्टी के नेताओं पर इनकम टैक्स विभाग के छापों (Raid) के साथ ही यूपी में चुनावों की शुरुआत हो गई है..दोस्तों पक्ष हो या विपक्ष चुनाव लड़ने के लिए चाहिए होता है पैसा और हर बार नोटबंदी तो हो नहीं सकती..लेकिन चुनाव से पहले छापेमारी हो सकती है..चुनाव से ठीक पहले इनकम टैक्स ने किसी उद्योगपति के घर छापा नहीं मारा बल्कि अखिलेश के मैसूर से कॉलेज फ्रेंड राजीव राय के मऊ वाले घर पर छापा मारा..राजीव राय के बैगलुरू में कई मेडिकल कॉलेज और इंजीनियरिंग कॉलेज चलते हैं..
दुबई में भी कॉलेज है..दूसरे हैं जैनेंद्र यादव जिनको आप नीटू के नाम से ज्यादा जानते हैं..इनके लखनऊ वाले घर पर छापा (Raid) मारा गया..नीटू अखिलेश के ओसडी भी रहे हैं..आगरा नोएडा और लखनऊ में रियल स्टेट का काम बताया जाता है..लखनऊ में भी जमीनें वगैरह हैं…तीसरे हैं.. मनोजी यादव मैनपुरी के रहने वाले हैं..आरसीएल ग्रुप के मैनेजिंग डायरेक्टर हैं..
पीडब्ल्यू डी में इनकी ठेकेदारी चलती है..इनकी 10-15 करोड़ की कंपनी है..कहते हैं पहले खाद वाद की दुकान थी..शिवपाल यादव के आशीर्वाद से ठीक ठाक ठेकेदार हो गए थे..अब भी ठीक ठाक ठेकेदार हैं..अखिलेश यादव के ओएसडी रहे गजेंद्र यादव के घर भी छापेमारी हुई..राजकाज से जुड़े लोग वैसे भी छोटे नहीं होते चाहे इधर के हों या उधर के हों..
दोस्तों मसला ये है कि चुनाव मुंह से तो लड़ा नहीं जा सकता..भाषण की आवाज लोगों तक तभी पहुंचेगी जब माईक लगेगा..माईक लगेगा तो पैसा लगेगा..चुनाव लड़ने के चाहिए पैसा..पैसे से बस चलती है..पैसे से मोटरसाईकिल चलती है…पैसे से टीवी चलती है..पैसे से उड़ उड़कर टीवी एंकर इंटरव्यू लेने आते हैं और वापस चले जाते हैं..पैसे से कैमरे चलते हैं..पैसे से स्टेज बनते हैं..पैसे से हेलीकॉप्टर उड़ते हैं…अब पैसा कहां से आएगा..पैसा फंडिंग से आएगा..फंड कौन करेगा..
जिसको भविष्य में नेताओं से लाभ लेना होगा..वो फंड करेगा…चुनाव लड़ा जाता है पैसे से..पानी में रहने वाली मछली के एक्योरियम का पानी निकाल देने पर मछली तड़पने लगती है..वैसे ही चुनाव के समय नेताओं की फंडिंग कट हो जाए तो आधा चुनाव ऐसे ही ढीला हो जाता है..बीजेपी वाले भाई लोग चुनाव लड़ते लड़वाते हैं..ये बात अच्छी तरह जानते हैं..
ऐसा भी नहीं है कि 5 साल की डबल इंजन की सरकार में विपक्षियों ने ही माल काट दिया..इसलिए विपक्षियों पर छापे पड़े..ये तो साफ है..ये पॉलिटिकल छापेमारी …आप इसे कानूनी प्रक्रिया कह सकते हैं…लेकिन टाइमिंग और सिर्फ सपा से जुड़े लोगों पर ही छापा मारना क्रोनोलॉजी को समझाता है…हालांकि यूपी में 22 हजार ऐसे लोग हैं जिन्होंने टैक्स रिटर्न भरा है..जिनपर आयकर विभाग छापा (Raid) डाल सकता है..बोला जा सकता है कि लाओ भाई हिसाब दो..तुम्हारे पिछले हिसाब किताब में गड़बड़ था..
अब आयकर विभाग की छापेमारी (Raid) अगर हम जैसे पत्रकारों के यहां तो ये हमारे लिए गर्व की बात होगी..थोड़ा बहुत नाम अलग से हो जएगा..लेकिन जिसके पास धन है उसके यहां जब छापेमारी होती है..तो धनवान वयक्ति सरकारी छापे की मंशा और उसके प्रॉसेस से प्रताड़ित तो हो ही जाता है..2017 में बीजेपी ने नोटबंदी करके सारी विपक्षी पार्टियों को दगा कारतूस साबित कर दिया था..इस बार अखिलश की सभाओं में आ रही भीड़ सत्ता पक्ष को परेशान कर रही है..मैं कानून में भरोसा रखने वाली रिपोर्टर हूं..मैं मानती हूं कि ये कानूनी प्रक्रिया का हिस्सा है..लेकिन सिर्फ सपाईयों के घर पर ही छापा पड़ना इसे पॉलिटिकल बना देता है..वैसे भी जनवरी के पहले हफ्ते से आचार संहिता लग जानी है तो छापे (Raid) वापे जल्दी निपटाने पड़ेंगे..
देश भर में 70 लोग सीबीआई की लिस्ट में हैं..यूपी के 8 लोगों के नाम हैं…जो उनकी जद में कभी आ सकते हैं..जांचें और संवैधानिक संस्थाओं को अपना काम करना चाहिए..लेकिन 5 साल सोते रहना फिर चुनाव के समय एक्टिव होना दिखाता है कि आप सच में सरकारों के तोते हैं..जब मालिक लोग पिंजरा खोलकर उड़ने को कहते हैं तभी आप उड़ते हैं..जिसके पते की पर्ची आपके मुंह में दबा दी जाती है..
आप उसी पते पर पहुंचते हो..बड़ी बड़ी संस्थाओं को इस छवि से बाहर निकलना चाहिए..लेकिन सबको पता है कोर्ट तक को पता है ये नहीं हो पाएगा..क्योंकि ये रवायत नई नहीं है..कांग्रेस से बीजपी तक सबका हथियार सीबीआई (Raid) ..आईडी..ईडी..वगैरह ही हैं…तो दोस्तों यूपी में चुनावी खेला शुरू हो चुका है..आगे आगे देखते जाईये होता है क्या..
Disclamer- उपर्योक्त लेख लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार द्वारा लिखा गया है. लेख में सुचनाओं के साथ उनके निजी विचारों का भी मिश्रण है. सूचना वरिष्ठ पत्रकार के द्वारा लिखी गई है. जिसको ज्यों का त्यों प्रस्तुत किया गया है. लेक में विचार और विचारधारा लेखक की अपनी है. लेख का मक्सद किसी व्यक्ति धर्म जाति संप्रदाय या दल को ठेस पहुंचाने का नहीं है. लेख में प्रस्तुत राय और नजरिया लेखक का अपना है.