प्रयागराज के कुंभ पर इसीलिए विदेशी रिसर्च करने आते हैं.. वाकई अजूबा ही तो है..
15 जनवरी से 4 मार्च, 2019 तक प्रयागराज में संगम तट पर पवित्र कुम्भ मेले का आयोजन हो रहा है. उत्तर प्रदेश की योगी सरकार पूरी तैयारी में जुटी हुई है. प्रयागराज की पवित्र धरती देश की समृद्ध सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक विरासत की पहचान रही है. प्रयागराज एकमात्र ऐसा पवित्र स्थल है, जहां देश की तीन पावन नदियां गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती मिलकर एक हो जाती हैं.

सुरक्षा के इंतजाम
प्रयागराज का कुंभ हिन्दू तीर्थयात्रियों और इतिहास के उत्साही शोधकर्ताओं के लिए एक खजाना है. यहाँ आकर सभी लोग प्राचीन मंदिरों, स्मारको तथा अनेक पर्यटक स्थलो को घूम कर आनन्दित हो जाते हैं. योगी सरकार ने यहाँ आने वाले श्रद्धालुओं और पर्यटकों के घूमने, स्नान करने और उनकी सुरक्षा के बेहतरीन इंतजाम किये हैं. कुंभ मेले में आने वाले लोग फ़ेमस जगह जैसे- हनुमान मंदिर, मनकामेश्वर, अशोक स्तम्भ और स्वराज भवन जैसे अनेक भवनों को जरूर घूमते हैं और फोटोज़ भी खींचते हैं.
चार स्पेशल बोट मंगवाईं
कुंभ में स्नान करने के लिए आने वाली श्रद्धालुओं की भीड़ को देखते हुए शासन ने सुरक्षा व्यवस्था भी सख़्त कर रखी है. किसी भी प्रकार की कोई अनहोनी न हो उससे निपटने के लिए पहली बार कुंभ में न्यूजीलैंड से चार विशेष प्रकार नाव मंगवाई गईं हैं. स्नान करते वक्त किसी के भी स्वास्थ्य को हानि हुई तो तुरंत ये विशेष नाव रेस्क्यू करेंगी और इलाज भी मुहैया कराएंगी. इसलिए इन नावों को सर्च ऑपरेशन रेस्क्यू बोट का नाम दिया गया है. इस बोट में 12 से 14 लोग आराम से बैठ सकते हैं. चारों नावों की कीमत एक करोड़ चालीख रुपए बताई जा रही है. यानि एक बोट की कीमत करीब 25 लाख रुपए है.
‘शोभायात्रा’
प्रयागराज कुंभ को विश्व का सबसे बड़ा धार्मिक मेला माना जाता है. इस बार कुंभ में पेशवाई को भी महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है. पेशवाई मतलब प्रवेशाई. ये एक तरह की ‘शोभायात्रा’ है. जो विश्व भर से आने वाले श्रद्धालुओं का स्वागत करने के लिए निकाली जाती है. इस शोभायात्रा में साधु-सन्त अपनी टोलियों के साथ बड़े धूम-धाम से हाथी, घोड़ों, बग्घी, बैण्ड बाजे के साथ नाचते गाते, परिक्रमा करते हुए कुम्भ में पहुँचते हैं. इस यात्रा को देखने के लिए भारी संख्या में श्रद्धालु एवं सेवादार की भीड़ लग जाती है. बड़ा ही रोमांचक माहौल हो जाता है.
समुंद्र मंथन
संगम नगरी में पर्यटन विभाग की तरफ से आने वाले श्रद्धालुओं के लिए सात एकड़ क्षेत्रफल में संस्कृति ग्राम बनाया गया है. यहाँ समुंद्र मंथन की एक झांकी लगाई जाएगी, जिसकी लम्बाई 125 फुट और चौड़ाई आठ फुट के करीब होगी. सबसे ख़ास ये है की झांकी दिखाने के लिए 110 फुट का विशालकाय सर्प बनाया गया है. और चारो कोने पर 15 फीट ऊंचाई वाले चार हाथी बना कर लगाए गए हैं. एक हाथी का वजन 800 किलो है. इसके साथ ही झांकी में बड़े-बड़े रुद्राक्ष के पेड़ भी लगाए गए हैं.
यात्रा का आरम्भ
प्रयागराज में आपकी यात्रा शंकर विमान मण्डपम से शुरू होगी. उसके बाद आप बड़े हनुमान जी के मंदिर पहुंचेंगे. फिर पतालपुरी मंदिर, अक्षयवट, इलाहाबाद फोर्ट के बाद रामघाट पर जाकर समाप्त होगी. भारी संख्या में आने वाले तीर्थयात्रियों, धार्मिक गुरूओं तथा राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय पर्यटको को उत्साहित करने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार लेजर प्रकाश एवं ध्वनि प्रदर्शन करने की तैयारी में है.
लग्जरी तंबू
कुंभ के दौरान प्रयागराज में सभी सुविधाओं से लैस एक छोटा शहर बस जाता है. अपने श्रद्धालुओं और मेहमानों के लिए कुछ इस तरह सज रहे हैं प्रयागराज के घाट और धार्मिक स्थल, जहां संतों के लिए सब सुविधाओं से युक्त कुटिया हैं तो श्रद्धालुओं के लिए लग्जरी तंबू भी हैं, जो किसी लग्जरी होटल से कम नहीं हैं.
प्रमुख स्नान
प्रयागराज के त्रिवेणी संगम के पवित्र जल में डुबकी लगाकर हर व्यक्ति अपने समस्त पापों को धो डालता है. स्वयं को और अपने पूर्वजों को पुनर्जन्म के चक्र से अवमुक्त कर देता है. फिर मोक्ष को प्राप्त हो जाता है.
पहला स्नान: मकर संक्रांति 15 जनवरी (माघ मास का प्रथम दिन, जब सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है)
दूसरा स्नान: पौष पूर्णिमा-21 जनवरी, इस दिन पूर्ण चन्द्र निकलता है. और इसी दिन से कुम्भ मेला की अनौपचारिक शुरूआत कर दी जाती है.
तीसरा स्नान: मौनी अमावस्या-4 फरवरी, इस दिन ग्रहों की स्थिति पवित्र नदी में स्नान करने वालों के लिए सर्वाधिक अनुकूल होती है.
चौथा स्नान: बसंत पंचमी-10 फरवरी, विद्या की देवी सरस्वती का दिवस ऋतु परिवर्तन का संकेत माना जाता है.
पांचवा स्नान: माघी पूर्णिमा-19 फरवरी, ये दिन गुरू बृहस्पति की पूजा से जुड़ा होता है.
छठां स्नान: महाशिवरात्रि-4 मार्च, ये अन्तिम स्नान है. तो भगवान शंकर से जुड़ा है. यहाँ आने वाला हर श्रद्धालु शिवरात्रि के व्रत और संगम स्नान से वंचित नहीं होना चाहता. मानना है की देवलोक के देवता भी इस दिन का इंतजार करते हैं.