NATIONAL MONETISATION PIPELINE: भारत की सरकारी कंपनियां बिकने जा रही हैं.. घर बेचकर घी कब तक पिया जा सकता है : संपादकीय व्यंग्य
NATIONAL MONETISATION PIPELINE: जब बेच रहे हैं तो शर्माना कैसा भईया..देखिए हाईवे बिक रहे हैं..रेलवे बिक रहा है..बिजली बनाने वाला तामझाम बिक रहा है..एनटीपीसी कोल इंडिया हाइड्रो पावर बिक रहा है..गैस सेक्टर (GAS SECTOR) में गेल (GAIL) बेक रहा है..इंडियन ऑयल और हिंदुस्तान पेट्रोलियम (HINDUSTAN PETROLIUM) की पाइपलाइन बिक रही है..बस मॉनसून सेल वाले बड़े बड़े पोस्टर चौराहों पर नहीं लगे हैं..बाकी सेल वैसी है..आईये आईये बोली लगाईये..

अपनी औकात पर सरकारी उपक्रम खरीद ले जाईए..अब काकोरी में परचून की दुकान वाले मइकू..तो गेल..रेलवे (RAILWAY)..हाईवे..गेल पेट्रोलियम..कंपनियां खरीद नहीं पाएंगे..देश में दो ही चार हैसियत वाले लोग हैं..वही खरीदेंगे..सरकार को इससे 6 लाख करोड़ मिल जाएंगे..कहते हैं बेच इसलिए रहे हैं क्योंकि सरकरी कंपिनयां घाटे में हैं..और हमारे देश के उद्योगपति घाटे की कंपनियां खरीदने के लिए लार टपका रहे हैं… MONETISATION
भारत (INDIA) में तो यही है कि आदमी अपनी बनी बनाई पुरखों की संपत्ति तभी बेचता है जब वो मजबूर होता है या फिर उससे संभाले नहीं संभलता..सरकार के मामले में तो सीधी सी बात है सरकार से हो नहीं पा रहा है..हो पाता तो सरकार खुद इन कंपनियों को चलाकर दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की कर लेती..सरकार संभाल नहीं पाई इसलिए बेच रही है..ये तो क्लियर हो गया..अब इस बिक्रीकरण
अपनी औकात पर सरकारी उपक्रम खरीद ले जाईए..अब काकोरी में परचून की दुकान वाले मइकू..तो गेल..रेलवे (RAILWAY)..हाईवे..गेल पेट्रोलियम..कंपनियां खरीद नहीं पाएंगे..देश में दो ही चार हैसियत वाले लोग हैं..वही खरीदेंगे..सरकार को इससे 6 लाख करोड़ मिल जाएंगे..कहते हैं बेच इसलिए रहे हैं क्योंकि सरकरी कंपिनयां घाटे में हैं..और हमारे देश के उद्योगपति घाटे की कंपनियां खरीदने के लिए लार टपका रहे हैं… MONETISATION को सरकार ने मॉनिटाइजेशन नाम दिया है..और इन सब कंपनियों को बेचने का नाम..
नेशनल मॉनेटाइजेशन पाइपलाइन प्रोग्राम (NATIONAL MONETISATION PIPELINE) (NMPP) रखा है…इसी नेशनल मॉनिटाइजेशन पाइपलाइन प्रोग्राम NMPP से सरकार उन सरकारी कंपियों की पहचान करेगी जिनको बेचा जा सकता है..और पैसा बनाया जा सकता है..सरकार ने तय किया है कि मौजूदा वित्त वर्ष में 88 हजार करोड़ रुपए और अगले चार सालों के अंदर करीब डेढ़ लाख करोड़ रुपए की संपत्ति को मॉनेटाइज किया जाएगा..फिर 6 लाख करोड़ के सरकारी उपक्रम मॉनिटाइज
अपनी औकात पर सरकारी उपक्रम खरीद ले जाईए..अब काकोरी में परचून की दुकान वाले मइकू..तो गेल..रेलवे (RAILWAY)..हाईवे..गेल पेट्रोलियम..कंपनियां खरीद नहीं पाएंगे..देश में दो ही चार हैसियत वाले लोग हैं..वही खरीदेंगे..सरकार को इससे 6 लाख करोड़ मिल जाएंगे..कहते हैं बेच इसलिए रहे हैं क्योंकि सरकरी कंपिनयां घाटे में हैं..और हमारे देश के उद्योगपति घाटे की कंपनियां खरीदने के लिए लार टपका रहे हैं… MONETISATION किए जाएंगे मतलब बेचे जाएंगे..जब कुछ बिकता है तो पैसे आते हैं..पैसे आते हैं तो..
कहते हैं..मॉनिटाइजेशन
अपनी औकात पर सरकारी उपक्रम खरीद ले जाईए..अब काकोरी में परचून की दुकान वाले मइकू..तो गेल..रेलवे (RAILWAY)..हाईवे..गेल पेट्रोलियम..कंपनियां खरीद नहीं पाएंगे..देश में दो ही चार हैसियत वाले लोग हैं..वही खरीदेंगे..सरकार को इससे 6 लाख करोड़ मिल जाएंगे..कहते हैं बेच इसलिए रहे हैं क्योंकि सरकरी कंपिनयां घाटे में हैं..और हमारे देश के उद्योगपति घाटे की कंपनियां खरीदने के लिए लार टपका रहे हैं… MONETISATION प्रोसेस में मालिकाना हक सरकार के पास ही रहेगा…10 साल बीस साल 50 साल 100 साल जितने भी समय के लिए बेचा जाएगा उसके बाद सरकार की बिकी हुई सरकारी कंपनी सरकार वापस ले सकती है..अब आप बोलेंगे कि इसको गिरवी रखना कहते हैं..तो भईया जो आपको समझना है समझ लो..सही बात ये है कि भाषणों में देश नहीं झुकना चाहिए..
दोस्तों कोई भी सरकार चाहती तो कोई भी सरकारी उपक्रम कभी नहीं बिकता..लेकिन होता ये है ये कि किसी कंपनी को गिरवी रखना हो बेचना हो..तो ये दिखाना जरूरी हो जाता है कि फलाना कंपनी का हाल बहुत बुरा है..अगर प्राइवेट कंपनी को दे दिया जाए तो वो इसे सही कर देगा..और प्राइवेट वाले ने तो पार्टी को चंदा ही इसलिए दिया होता है कि उसकी लार पहले से उस कंपनी पर टपक रही होती है..फिर क्या पहले कंपनी या सरकारी उपक्रम बर्बादी की कगार पर पहुंचा दिया जाता है फिर बेच दिया जाता है..
मैं कुछ गलत कह रही हूं तो बताईये..एक छोटा सा उदाहरण देती हूं..बीएसएनएल को बर्बाद किसने किया सरकार ने…याद करिए न वो दौर जब डोकोमो..यूनीनार..एयरसेल..जैसे भांति भांति के सिम मार्केट में आ गए थे..2017 में जब सब 4 जी लूट रहे थे..तो बीएसएनल को नीलामी में ही नहीं उतरने दिया गया..समझ रहे हैं.. 11 करोड़ कस्टमर वाले BSNL के हाथ पैर कौन बांधे रही सरकार डुबो किसने दिया सरकार ने..अब निपटा कौन देगा..सरकार…दोस्तों चलते हैं राम राम दुआ सलाम..
Disclamer- उपर्योक्त लेक लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार द्वारा लिखा गया है. लेख में सुचनाओं के साथ उनके निजी विचारों का भी मिश्रण है. सूचना वरिष्ठ पत्रकार के द्वारा लिखी गई है. जिसको ज्यों का त्यों प्रस्तुत किया गया है. लेक में विचार और विचारधारा लेखक की अपनी है. लेख का मक्सद किसी व्यक्ति धर्म जाति संप्रदाय या दल को ठेस पहुंचाने का नहीं है. लेख में प्रस्तुत राय और नजरिया लेखक का अपना है.