नरेंद्र गिरी (Narendra Giri) की मौत की पूरी कहानी..

महंत नरेंन्द्र गिरी

दोस्तों भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरी (Narendra Giri) प्रयागराज में अपने कमरे में झूलते हुए पाए गए..उनकी मौत कैसे हुई..ये राज गहराता जा रहा है..अखिलेश यादव भी आनन फानन में प्रयागराज पहुंच गए..और मामले की जांच हाईकोर्ट के सिटिंग जज से कराने की मांग की है…ये हत्या है या आत्म हत्या आज हम आपको प्वांट टू प्वांट पूरी कहानी बताने जा रहे हैं..जिनको पूरी कहानी नहीं मालूम वो 3 मिनट का पूरा वीडियो देखें सब कुछ पता चल जाएगा..चलिए शुरू से शुरू करते हैं..

दोस्तों..दोपहर 1 बजे महंत ने शिष्‍यों के साथ भोजन किया..फिर दोपहर साढ़े तीन बजे तक वो रोज आराम करते थे.. शाम 5 बजे तक महंत अपने कमरे से बाहर नहीं आए तो शिष्‍यों का माथा ठनका। दावा है कि चिंता होने पर दरवाजा तोड़ा गया..भीतर महंत का शव पंखे से झूल रहा था। इसी वक्‍त शाम करीब 5.20 बजे एक शिष्‍य बबलू ने पुलिस को महंत नरेंद्र गिरि के आत्‍महत्‍या करने की सूचना दी..बाघम्‍बरी मठ तक पुलिस के पहुंचने से पहले ही महंत के शव को पंखे से उतारकर बिस्‍तर पर रखा गया..रिपोर्ट्स के अनुसार, महंत के विश्राम पर जाने से पहले किसी शिष्‍य ने उनको परेशान हालत में नहीं देखा..पुलिस ने मठ का मेन गेट बंद कर तलाशी शुरू की। शव के पास से ही सूइसाइड नोट बरामद हुआ..

महंत नरेंद्र गिरी (Narendra Giri) के शव के पास से मिले कथित ‘सूइसाइड नोट’ में योग गुरु स्‍वामी आनंद गिरि, लेटे हनुमान मंदिर के मुख्‍य पुजारी आद्या तिवारी और उनके बेटे संदीप तिवारी को वजह बताया गया है। नोट में लिखी ज्‍यादातर बातें मठ, मंदिर और गद्दी के उत्‍तराधिकार से जुड़ी हैं। अपने उत्‍तराधिकारी के रूप में महंत ने किसी बलवीर नाम के शिष्‍य का जिक्र किया है। चिट्ठी में लिखा है कि ‘मैं सम्‍मान के बिना नहीं रह सकता। डिप्रेशन में हूं। मैं क्‍या करूं, कैसे रहूं। आनंद गिरि के कारण मेरी बहुत बदनामी हुई। किस किस को सफाई दें। इससे अच्‍छा है कि दुनिया से चले जाएं। चंद शिष्‍यों को छोड़कर सभी ने मेरा बहुत ध्‍यान रखा। मेरे शिष्‍यों का ध्‍यान रखिएगा।’

पुलिस लाश के पास से कई पन्‍नों का सूइसाइड नोट मिलने की बात कह रही है..लेकिन पेच यहीं पर उलझ जाता है..सेवादारों का कहना है कि महंत (Narendra Giri) दो लाइन भी खुद से नहीं लिखते थे। जब भी उन्‍हें कुछ लिखवाना होता तो किसी शिष्‍य को बुला लेते थे।

ऐसे में सात-आठ पन्‍नों का सूइसाइड नोट उन्‍होंने कब और कैसे लिखा, यह किसी की समझ में नहीं आ रहा। महंत को लिखते हुए भी काफी कम लोगों ने लिखा। कुछ सेवादारों ने कहा कि सूइसाडइ नोट की पूरी जांच होनी चाहिए। पुलिस फोरेंसिक एक्‍सपर्ट्स से जांच कराने को कह रही है..दोस्तो जिस नायलॉन की रस्सी पर उनका शव झूलता हुआ मिला..ये रस्सी महंत नरेंद्र गिरी ने कपड़े सुखाने के लिए खुद ही मंगाई थी..इसकी भी जांच की जा रही है..

लोग आनंद गिरी से नरेंद्र गिरी (Narendra Giri) से दुश्मनी की बातें कह रहे हैं..तो ये आनंद गिरी कौन हैं..और नरेंद्र गिरी से इनके क्या रिश्ते थे वो भी जल्दी जल्दी समझ लीजिए..

महंत नरेंद्र गिरी (Narendra Giri) के सबसे चहेते शिष्‍य हुआ करते थे आनंद गिरि..अगस्‍त, 2000 से आनंद गिरि महंत के संरक्षण में थे..गुरु के पास रहकर मठ और मंदिर का काम संभालने लगे..2014 में आनंद गिरि ने खुद को महंत नरेंद्र गिरी का उत्‍तराधिकारी बताना शुरू किया..तब महंत ने खुद कहा कि आनंद उनके उत्‍तराधिकारी नहीं, बल्कि शिष्‍य हैं.. 2021 आया और विवाद चरम पर पहुंच गया..मई में निरंजनी अखाड़ा ने परिवार से संपर्क रखने और गुरु के खिलाफ साजिश के आरोप में आनंद गिरि को निकाल दिया..

महंत ने उन्‍हें बाघम्‍बरी मठ और बड़े हनुमान मंदिर की व्‍यवस्‍था से भी दूर कर दिया..आनंद गिरि ने आरोप लगाया कि गुरु के भी परिवार से संबंध हैं। शिष्‍य का कहना था कि महंत ने अपने भाइयों, गनर और चहेते शिष्‍यों के नाम पर करोड़ों की संपत्ति खरीदी है..26 मई 2021 को गुरु और शिष्‍य की लखनऊ में मुलाकात हुई..आनंद गिरि ने बिना शर्त माफी मांगी और महंत ने उन्‍हें मठ आने की अनुमति दे दी..

आनंद गिरि ने ताजा घटनाक्रम के बाद कहा है कि उनका महंत नरेंद्र गिरी से कोई विवाद नहीं था.. आनंद गिरि ने कहा कि माफी मांगने के बाद गुरु से उनके संबंध ठीक हो गए थे..उन्‍होंने आरोप लगाया कि कुछ लोगों की मठ की संपत्ति पर नजर है। मुझे रास्‍ते से हटाने के लिए गुरु से विवाद करवाया गया था..

दोस्तों नरेंद्र गिरी (Narendra Giri) की मौत के पीछ शक की सूई केवल और केवल मठ और अकूत संपत्ति के इर्द गिर्द घूम रही है..दोस्तों बाघम्‍बरी मठ और निरंजनी अखाड़े की संपत्तियों को लेकर विवाद पुराना है। सैकड़ों बीघा जमीन बेचने, सेवादारों और उनके परिवार के नाम पर मकान खरीदने को लेकर बार-बार आरोप लगे। मठ के जरिए बड़े हनुमान मंदिर की देखरेख होती थी।

कानूनी लड़ाई के बाद महंत नरेंद्र गिरी ने निरंजनी अखाड़े से मठ को अलग करवा लिया। इसके बाद वह मठ और बड़े हनुमान मंदिर के पीठाधीश्‍वर बन गए।मई में महंत नरेंद्र गिरी और आनंद गिरि के बीच जो विवाद हुआ, ताजा घटनाक्रम पर उसके प्रभाव से इनकार नहीं किया जा सकता। मांडा और रायबरेली में निरंजनी अखाड़े की करोड़ों रुपये की भूमि बेचने पर भी विवाद हुआ..निरंजनी अखाड़े के मठ में दो महंत पहले भी संदिग्‍ध हालात में मृत पाए गए थे..

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