मुलायम (Mulayam Singh Yadav) ने कैसे बानाई समाजवादी पार्टी जानिए यहां पर..

1960 दशक था..उस समय देश में लहर थी..समाजवाद की..और डॅाक्टर राम मनोहर लोहिया समाजवाद के सबसे बड़े संस्थापक थे..और इसी समय में उत्तर प्रदेश के एक छोटे गांव सैफई के आस-पास समाजवादियों की कई रैलियां होती थी..औऱ उस समय मुलायम सिंह की उमर होगी 15 साल और 15 साल के मुलायम सिंह (Mulayam Singh Yadav) समाजवदियों की कई रैलियों में हिस्सा लेते थे..समाजवादी के सिदध्ातों को सुनते..वहां पर अमीरों और गरीबों में समानता की बात की जाती..और इस तरह से मुलायम सिंह यादव के दिल में समादवादियों ने अपनी जगह बना ली..
यूपी के इटावा जिले का एक पिछड़ा हुआ गंवा सैफई इस गांव का एक लड़का अखाड़े में तेजी से पहलवानी के दावंपेच सीख रहा था..बहुत ही साधारण परिवार का बेटा मुलायम सिंह (Mulayam Singh Yadav) कुश्ती को अपना भविष्य मानता था..मुलायम के पिता किसान थे..मुलायम को उनते पिता अपने सामने कसरत करवाते थे..और जब अखाड़े में मुलायम अपने से ज्यादा बड़े पहलवान को गिराते तो उनके पिता का सीना गर्व से चौड़ा हो जाता..उस समय सिंचाई के दाम बहुत बढ़ गए थे..उस वजह से राज्य के किसानों में बहुत गुस्सा था..और डॅा राम मनोहर लोहिया ने उत्तर प्रदेश में कांग्रेस सरकार के खिलाफ मुहिम छेड़ दी थी..
लोहिया के भाषणों से मुलयाम सिंह (Mulayam Singh Yadav) यादव बहुत ज्यादा प्रभावित थे..और उन्होने नहर रेट आंदोलन में सबसे आगे थे..लेकिन कांग्रेस सरकार ने इस बढ़ते आंदोलन को दबाने के लिए राम मनोहर लोहिया के साथ-साथ कई बड़े नेताओं को गिरफ्तार कर लिया था..मुलायम सिंह यादव भी गिरफ्तार हुए..
और जब मुलायम सिंह (Mulayam Singh Yadav) जेल से अपने गांव वापस आए तो पूरे गांव ने उनका स्वागत किया..और फिर हुआ ये कि कुश्ती के साथ-साथ समाजवादी आंदोलन में भी मुलायम की दिलच्सपी बढ़ने लगी..औऱ फिर मुलायम आगे की टीचिंग की पढाई करने के लिए शिकोहाबाद गए..मुलयाम सिंह की शादी बचपन में ही हो गई थी..इसलिए अपना घर चलाने के लिए मुलायम सिंह करहल के जैन इण्टर कॅालेज में अंग्रेजी पढाने लगे थे..
मास्टरी के साथ-साथ मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh Yadav) दंगल लड़ते और समाजवादियों कि रैलियों में जाते..वहां पर कोई उन्हें मास्टर जी कहता तो कोई नेता जी कहता..एक समय आया जब मैनपुरी में एक दंगल हुआ और वहां पर जसवंत नगर के विधायक नथ्थू सिंह की नजर मुलायम सिंह पर पड़ी और जैसे ही मुलायम अखाड़े में आए और अपने से बड़े पहलवान को तुरंत ही पस्त कर दिया..और वहां से मुलायम सिंह यादव नथ्थू सिंह के चहेते बन गए और नथ्थू सिंह ने मुलायम को राजनीति में अपना शार्गिद बना लिया..
1967 में जब विधानसभा के चुनाव आए तो विधायक नथ्थू सिंह ने अपनी जगह पर टिकट दे दिया..और अपने प्रचार के लिए मुलायम सिंह यादव अपने भाईयों के साथ..गांव-गांव के लिए निकल पड़े..मुकाबला था..कांग्रेस पार्टी के बड़े और दिग्गज नेता एडवोकेट लाखन सिंह के साथ था..
और मुलायम सिंह (Mulayam Singh Yadav) के विरोधी इस लड़ाई को हाथी और चूहे कि लड़ाई बता रहे थे..लेकिन हुआ ये की जैसे ही चुनाव के नतीजे सामने आए तो पता चला की राजनीति की पहली ही लड़ाई में मुलायम सिंह ने लाखनसिंह को धूल चटा दी थी..और मुलायम सिंह 28 साल की उम्र में राज्य के सबसे कम उम्र के एमएलए बने..
और मुलायम के घर में भी शादी के 16 साल बाद खुशियां लौटी..1 जुलाई 1973 को मुलायम के घर में बेटे अखिलेश ने जन्म लिया..और एक बार फिर से मुलायम सिंह यादव एक बार से जीत कर विधानसभा पहुंत गए..
साल 1975 में जय प्रकाश नायारण ने इंदिरा गांधी की सरकार को हटाने के लिए सम्पूर्ण क्रांति का नारा दिया था..और मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh Yadav) इस काम में जुट गए..और गांव-गांव में कांग्रेस सरकार के खिलाफ एकजुट करने लगे..औऱ जब 26 1975 को देश में एमजेंसी लगी तो अगले ही दिन मुलायम सिंह यादव गिरफ्तार हो गए..और मुलायम सिंह यादव ने इटावा की जेल में 19 महिने रहे..
जैसे ही एमजेंसी खत्म हुए और देश में चुनाव हुए..और सभी विपक्षी दलों ने मिलकर जनता पार्टी बना ली..मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh Yadav) लडे और जीत गए..देश और प्रदेश में जनता पार्टी की सरकार बनी..और मुलायम सिंह यादव को सहकारिया, पशुपालन, ग्रामउद्योग की जिम्मेदारी दी गई..
दोस्तों 10 साल की राजनीति करने के बाद मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh Yadav) जनता पार्टी की सरकार में मंत्री बने..लेकिन मुलायम सिंह यादव चाहते थे..सहकारिता वो चाहते थे..नौकरशाहों की लालफिता शाही निकलकर आम जनता के हाथ में चली जाए..और मुलायम सिंह यादव ने अपने इस आंदोलन के जरिए अपने परिवार को राजनीति में उतारा..
सबसे पहले मुलायम इटावा के सहकारी बैंको से जुड़े थे..और जब सहकारिता मंत्री बने तो अपने भाई शिवपाल यादव को सहकारिता आंदोलन में शामिल करवाया..और बाद में शिवपाल यादव इटावा से सहकारी बैंक के अध्यक्ष चुने गए..औऱ मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh Yadav) ने अपने चचेरे भाई रामगोपाल यादव को इटावा को बशेहर ब्लाॅक का अध्यक्ष बना दिया..
मुलायम के चचेरे भाई रामगोपाल यादव कॅालेज में फिजिक्स पढ़ाते थे..रामगोपाल यादव अपने परिवार में सबसे ज्यादा पढ़े लिखे थे इसलिए रणनीति बनाने और लिखा पढ़ी में मुलायम सिंह (Mulayam Singh Yadav) की मदद करते थे..और शिवपाल यादव विरोधियों के जो जानलेवा हमले से मुलायम सिंह को बचाते थे…औऱ रैलियों में सुरक्षा की जिम्मेदारी शिवपाल यादव की होती थी..
कुछ समय बाद एक दौर आया कि अब तक दुसरों की पार्टी से राजनीति कर रहे मुलायम सिंह को अब अपनी पार्टी की जरुरत थी..और 4 अक्टूबर 1992 को मुलायम सिंह ने लखनऊ के बेगम हजरत महल पार्क में समाजवादी पार्टी की स्थापना की..
जब मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh Yadav) ने अपनी समाजवादी पार्टी बनाई तो अखिलेश यादव मैसूर में इंजिनिरिंग की पढ़ाई कर रहे थे..और इस बात का पता अखिलेश यादव को अखबार से पता चला..समाजवादी पार्टी बनने के 2 महिने बाद मुलायम सिंह को एक और मौका मिला..बाबरी मस्जिद के विवादित ढ़ंचे को गिराए जाने के दिन 6 दिसम्बर 1992 की शाम को ही कल्याण सिंह की सरकार को बर्खास्त कर दिया गया..औऱ इसी साल मुलायम सिंह के भाई राम गोपाल यादव राज्यसभा के लिए निर्वाचित हो गए..
4 दिसम्बर 1993 को मुलायम उत्तर प्रदेश के सीएम बने..लेकिन सरकार बनने के 6 महिने बाद ही बीएसपी ने अपना समर्थन वापस ले लिया..औऱ हुआ कि मुलायम के परिवार से उनकी दूसरी पीढ़ी राजनीति में उतरी..मुलायम सिंह (Mulayam Singh Yadav) के सबसे बड़े भाई रतन सिंह यादव के बेटे रणवीर सिंह यादव को सैफई बॅाक्ल के अध्यक्ष की कुर्सी पर बैठाया गया..
मुलायम सिंह यादव मैनपुरी से पहली बार चुनाव लड़कर पहली बार संसद पहुंचे..और देवगौड़ा की सरकार में रक्षा मंत्री बने..
मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh Yadav) फिर से उत्तर प्रदेश वापस लौटे और बेटे अखिलेश के लिए..राजनीति के लिए रास्ता खोला..अखिलेश यादव सिडनी से पढ़ाई करके वापस लौटे ही थे..कि मुलायम सिंह को उनके राजनीति की चिंता सताने लगी..1999 के लोकसभा उपचुनाव में मुलायम सिंह यादव कनौज और संभल से लड़े..और अपने पिता के चुनाव प्रचार के लिए अखिलेश यादव ने भाग लिया..इसी दौरान मुलायम सिंह यादव के साथी और वंशवाद के धुर्विरोधी जनेश्वर मिश्रा ने कहा कि ये बिल्कुल सही समय है अखिलेश यादव को राजनीति में उतारने का..

मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh Yadav) दोनों जगह से चुनाव जीत गए..और जब मुलायम ने कनौज की सीट खाली कर दी तब अखिलेश यादव को चुनाव लड़ाने की बातें होने लगी..और अखिलेश यादव को समाजवादी पार्टी में लाने का इससे अच्छा मौका और कोई नहीं हो सकता..जिस समय मुलायम सिंह अखिलेश को राजनीति मे उतारने के लिए सोच रहे थे..उस समय अखिलेश यादव अपनी पत्नी डिंपल के साथ देहरादून में थे..दोनों शांपिग कर रहे थे..और वैसे ही मुलायम का फोन आता है..मुलायम ने अखिलेश को वापस बुलाया..
अखिलेश यादव को हराने के लिए बीएसपी ने अपने कैडिडेट को भी मैदान में उतारा..लेकिन अखिलेश को पहली बार जीताने के लिए मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh Yadav) ने दिनरात एक कर दिए..और अखिलेश यादव भी वोट मांगने के लिए घर घर पहुंचे..और जैसे ही नतीजे सामने आए तो अखिलेश यादव ने बीएसपी के कैड़िडेट 58 हजार 725 वोट से हरा दिया था..और यही से समाजवादी पार्टी में अखिलेश यादव का सफर शुरु हुआ..अखिलेश यादव को बहुत बड़ी जिम्मेदारी सौपीं गई थी..