अखिलेश ने तय किया अपने पहले ‘उम्मीदवार’ का नाम, जानिए यूपी की ’80 सीटों’ का समीकरण

सपा-बसपा का गठबंधन हो चुका है और सीटें भी तय हो चुकी हैं. अब कुछ बचा है तो वो है की कौन सा नेता किस सीट से चुनाव लड़ेगा. दोनों पार्टियों के पास सिर्फ 38-38 सीटें ही हैं. और अखिलेश-माया दोनों यही चाहेंगे की ज़मीनी नेता को मैदान में उतारा जाए. जो जनता में लोकप्रिय हो. ताकि जीत में कोई रोड़ा न फंसे.

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akhilesh yadav and mayawati

बस इसी बात को ध्यान में रखते हुए सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने अपना मन बना लिया है. ख़बर ये आ रही है की अखिलेश अपनी पत्नी डिंपल यादव को कन्नौज से चुनाव लड़ा सकते हैं. हालाँकि डिंपल यादव अभी भी कन्नौज से ही सांसद हैं. और अखिलेश भी अपने लिए नई सीट खोज रहे हैं. हालांकि उन्हें बुंदेलखंड, पूर्वांचल और पश्चिमी यूपी में कई सीटों से चुनाव लड़ने का ऑफर मिल रहा है.

आपको याद होगा कि यूपी विधानसभा चुनाव हारने के बाद अखिलेश ने साफ़ कहा था कि अब से अगला चुनाव डिंपल यादव नहीं लड़ेंगी. अपने पिता मुलायम सिंह यादव के लिए भी अखिलेश ने कहा था कि नेताजी मुलायम सिंह यादव लोकसभा का चुनाव मैनपुरी से लड़ेंगे. अब मुलायम कहाँ से लड़ेंगे इसका तो पता नहीं मगर डिम्पल को चुनाव में उतार कर अखिलेश अपनी कही बात को झूठा साबित कर देंगे. मगर सत्ता की चाभी हांसिल करने लिए सब कुछ जायज़ है.

सपा-बसपा के गठबंधन के बाद यूपी में कितनी रैलियां करनी हैं इसपर भी लगभग बात फ़ाइनल हो चुकी है. सूत्रों के मुताबिक बसपा सुप्रीमों मायावती और सपा सुप्रीमों अखिलेश यादव 18 साझा रैलियां करेंगे. इन 18 रैलियों में वे दोनों साथ रहेंगे. बाकी अलग अलग कितनी रैली करेंगे इसपर अभी कुछ कहा नहीं जा सकता.

सपा-बसपा मिलकर एक बार बीजेपी को बड़ा नुक्सान पहुंचा चुके हैं. गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा सीट पर हुए उपचुनाव में बसपा ने सपा उम्मीदवार को वोट देने की अपील की थी. वहीं, कैराना लोकसभा उपचुनाव में रालोद उम्मीदवार को सपा-बसपा और कांग्रेस ने समर्थन दिया. जिससे तीनों जगहों पर बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा था.

2014 के लोकसभा चुनाव की स्थिति- कुल सीटें: 80

पार्टी                           सीटें                    वोट शेयर
भाजपा+                       73                       42.6%
सपा                             05                        22.3%
बसपा                           00                       19.8%
कांग्रेस                          02                        7.5%

अब इस हिसाब से सपा-बसपा के पास 41.11% वोटर्स हैं. इसलिए मायावती और अखिलेश दोनों ये सोच रहे हैं की इतने वोटों के साथ बीजेपी को हरा देंगे. वैसे ये आंकड़े पलट भी सकते हैं. क्युकी सपा के वोटर्स यादव हैं. मगर अब वो बात नहीं रह गई है जो बात मुलायम सिंह यादव में थी. इसी तरह मायावती के वोटर्स जाटव वर्ग के लोग हैं. उनमें भी अब वो बात नहीं रही. चुनावी माहौल काफी बदल चुका है.

कांग्रेस गठबंधन में नहीं है मायावती-अखिलेश यादव कोई भी कांग्रेस को अपने साथ शामिल करने के लिए तैयार नहीं है. कांग्रेस के बड़े नेता गुलाम नबी आज़ाद ने प्रेस कॉन्फ्रेंस करके ये ऐलान कर दिया है कि कांग्रेस पूरे 80 लोकसभा सीटों पर अकेले चुनाव लड़ेगी. मगर कांग्रेस के पास कई चुनौतियाँ हैं. क्युकी अखिलेश माया के मिलने के बाद उनके पास लगभग 40% वोट बैंक है. वहीँ सत्ताधारी बीजेपी के पास लगभग 60 प्रतिशत वोट बैंक है. अब ऐसे में कांग्रेस के पास कोई वोटर्स नहीं हैं. कांग्रेस के पास सिर्फ दो ही सीटें हैं और वो भी खुद सोनिया और राहुल गाँधी की जिसपर वो चुनाव लड़ते हैं.

अब गठबंधन के बाद दोनों पार्टियों की सीटें भी आधी हो गईं हैं. अब ऐसे में जहां एक पार्टी से पूरे 80 लोगों को टिकट मिलता मगर गठबंधन के बाद अब सिर्फ 38 नेताओं को ही टिकट मिलेगा. मतलब अब 42 नेताओं को टिकट किसी भी कीमत पर नहीं मिल सकता. यही बात सपा-बसपा दोनों पार्टियों में लागू होती है. अब ऐसे में उन 42 नेताओं का क्या होगा जो सालोँ से चुनाव की तैयारी में लगे हैं. सपा-बसपा दोनों के पास चुनौती है. कि अपने सभी नेताओं को खुश रखना होगा. अब कैसे रखें ये अखिलेश और मायावती को सोचना है.

पूर्व बसपा सांसद रीना चौधरी ने गठबंधन के एलान के तत्काल बाद ही पार्टी से इस्तीफा दे दिया था. साथ ही उन्होंने कहा था कि वो अपने अगले कदम की घोषणा भी जल्दी ही करेंगी. रीना ने कहा कि वो 2016 में बसपा में शामिल हुई थीं. तब उनसे कहा गया था की उन्हें आगामी लोकसभा चुनाव में मोहनलालगंज से टिकट देकर चुनाव लड़ाया जायेगा. तभी से रीना चुनाव की तैयारी करने लगीं थी. मगर अब गठबंधन के साथ ही बसपा में टिकटों की नीलामी भी शुरू हो गई है. और उनकी सीट किसी और को दी जा रही है.

एसपी-बीएसपी गठबंधन बीजेपी के लिए भले ही उपचुनाव में चुनौती बन चुके हैं. लेकिन लोकसभा चुनावों में उसे मोदी लहर का भरोसा है. वो गठबंधन को ज्यादा तूल नहीं देना चाहती. बीजेपी के इस कॉन्फिडेंस की वजह यूपी का पिछड़ा वोट बैंक है जिस पर उसकी नज़र है. क्युकी यूपी में 45% ओबीसी वोटर्स हैं. और बीजेपी उन्हीं को साधने में लगी है.

वहीं 18-20 फीसदी वाले सवर्ण वोट का झुकाव भी बीजेपी की तरफ हो सकता है. क्युकी सवर्णों को मोदी सरकार ने 10% का आरक्षण दे दिया है. जो लोकसभा के साथ-साथ राज्यों में भी पास होना शुरू हो चुका है. अब 45% पिछड़ा और 20% सवर्ण मिला लें तो बीजेपी के पास 65% वोट हो जाते हैं. वोटों की इसी गणित से बीजेपी उत्साहित है. और ऐसे में उसे लगता है कि मोदी लहर के साथ ये समीकरण फिट बैठ गए. तो एक बार फिर बाजी उसके हाथ होगी. मगर इसी सोच को सच बनाने के लिए बीजेपी को अपने सहयोगी पार्टियों का साथ देना होगा. उनके विचारों को समझना होगा.

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