जानिए कौन था यूपी का पहला माफिया हरिशंकर तिवारी जिसके लिए बना गैंगस्टर एक्ट
जिस बाहुबली हरिशंकर तिवारी ( Harishankar Tiwari ) को रोकने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार को पहली बार गैंग्स्टर एक्ट बनाना पड़ा..यूपी के इतिहास का वो पहला आदमी जो जेल से चुनाव लड़ा जीत गया..उन हरिशंकर तिवारी का निधन हो गया है दोस्तों इस वीडियो में हम आपको गोरखपुर के बाहुबली हरिशंकर तिवारी के वो वो कारनामे बताएंगे जिनको सुनकर आप सन्न रह जाएंगे ।
यूपी की राजनीति को बदलने वाला नाम
हरिशंकर तिवारी को पूर्वांचल ही नहीं पूरे उत्तर प्रदेश की राजनीति को बदलने वाला नाम माना जाता रहा है। उत्तर प्रदेश में बाहुबली राजनीति या कहें सियासत के अपराधीकरण की शुरूआत हरिशंकर तिवारी और वीरेंद्र शाही की अदावत से ही मानी जाती है। कहा जाता है कि उत्तर प्रदेश में पहली बार माफिया शब्द का इस्तेमाल भी पूर्वांचल के इसी बाहुबली के लिए किया गया ।
कौन है शिवशंकर ?
हरिशंकर तिवारी ( Harishankar Tiwari ) गोरखपुर के बड़हलगंज क्षेत्र के टांडा गांव के रहने वाले थे। बात 80 के दशक की है, जब छात्र राजनीति में दो युवाओं ने पूर्वांचल की राजनीति पर अपनी छाप छोड़नी शुरू की। एक थे वीरेंद्र शाही, जो ठाकुर लॉबी के अगुवा थे जिन्हें गोरक्षपीठ का समर्थन माना जाता था। दूसरी तरफ हरिशंकर तिवारी ब्राह्मणों का नेता बनकर उभरे। दोनों की अदावत ने देखते ही देखते पूरे क्षेत्र में ब्राह्मण-ठाकुर लामबंदी शुरू करा दी। दोनों ही अपराध की दुनिया में भी अपनी धाक जमाते गए और इसी के साथ शुरू हुआ गैंगवॉर का सिलसिला।
ऐसे शुरू हुआ था गैंगस्टर एक्ट
गोरखपुर उत्तर पूर्व रेलवे का मुख्यालय है। यहां से रेलवे का टेंडर हासिल करने के लिए माफियाओं में हाेड़ रहती थी। तिवारी और शाही गैंग ने इस होड़ में दुश्मनी की सारी हदें पीछे छोड़ दीं। स्थिति ये हुई कि गैंगवार की धमक लखनऊ तक सुनी जाने लगी थी। उत्तर प्रदेश में तब वीर बहादुर की सरकार हुआ करती थी। वह भी गोरखपुर के ही थे और कहा जाता है कि इन दोनों वीरेंद्र शाही और हरिशंकर तिवारी ( Harishankar Tiwari ) गैंग पर नियंत्रण के लिए ही यूपी में पहली बार गैंगस्टर एक्ट लागू किया गया। वहीं गैंगस्टर एक्ट जिसे आज आपे योगी सरकार के माफियाओं के खिलाफ एक्शन में आए दिन सुनते रहते हैं।
1985 में जेल गए थे हरिशंकर
पुलिस सख्ती करने लगी थी और हरिशंकर तिवारी ( Harishankar Tiwari ) पर कई केस लग चुके थे। लेकिन हरिशंकर तिवारी यहां रुकने वाले नहीं थे। 1985 में हरिशंकर तिवारी जेल में बंद थे। 80 के दशक में उनके खिलाफ हत्या की साजिश, किडनैपिंग, लूट, रंगदारी आदि के कई मुकदमे दर्ज हो चुके थे। लेकिन किसे पता था जेल से उत्तर प्रदेश की सियासत बदलने जा रही है। 1985 में हरिशंकर तिवारी ने जेल से ही निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़ा और जीत दर्ज कर सभी काे चौंका दिया। इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। इसके बाद तीन बार कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीता। नब्बे का दशक खत्म होते-होते हरिशंकर तिवारी पूर्वांचल में ब्राह्मणों का सबसे मजबूत चेहरा बन चुके थे। सरकार किसी की भी हो माना जाता था कि हरिशंकर तिवारी मंत्री बनेंगे ही।
वीरेंद्र शाही की हत्या में आया था नाम
90 के दशक में जब श्रीप्रकाश शुक्ला ने लखनऊ में वीरेंद्र शाही की सरेआम हत्या कर दी तो पहले अफवाहें यही उड़ी थीं कि हरिशंकर तिवारी ( Harishankar Tiwari ) ने शाही को मरवा दिया और श्री प्रकाश शुक्ला उनका ही आदमी है। लेकिन बाद में चीजें साफ हो गईं और पता चला कि श्रीप्रकाश शुक्ला खुद अपना गैंग चल रहा है।
‘पंडित जी’ को कैबिनेट में भी मिली थी जगह
वह 6 बार विधायक रहे और यूपी सरकार में 5 बार कैबिनेट मंत्री। यहां तक कि एक दिन के सीएम जगदंबिका पाल की कैबिनेट में भी हरिशंकर तिवारी का नाम शामिल था। कल्याण सिंह मुख्यमंत्री बने तो यहां भी ‘पंडित जी’ को कैबिनेट में जगह दी गई, यही नहीं राम प्रकाश गुप्ता, राजनाथ सिंह की सरकार के बाद मायावती और मुलायम सरकार में भी हरिशंकर तिवारी ( Harishankar Tiwari ) मंत्री रहे। वीरेंद्र शाही से अदावत के चलते हरिशंकर तिवारी की कभी भी गोरक्षपीठ से संबंध कभी अच्छे नहीं रहे। 2007 में चुनाव हारने के बाद हरिशंकर तिवारी राजनीति से दूर हो गए। उनके दोनों बेटे इस समय समाजवादी पार्टी में हैं ।