जजों ने डाली सरकार की नाक में नकेल, तिलमिला उठे मोदी के कानून मंत्री
देश में एक ही शक्ति बची है जो सरकार के आगे अब तक घुटनों के बल नहीं बैठी है और वो है..सुप्रीम कोर्ट ( supreme court ) ..सरकार सुप्रीम कोर्ट ( supreme court ) की नाक में 2014 से नकेल डालने के लिए रस्सी लिए घूम रही है लेकिन सुप्रीम कोर्ट अपने मुंह में लगाम लगाकर सरकारी तांगा खीचना अब तक स्वीकार नहीं किया है..दोस्तों सरकार चाहती है कि न्यायपालिक यानी सुप्रीम कोर्ट के जज सरकारी मामलों में ज्यादा चौधरी ना बनें..और जज चाहते हैं कि सरकार..न्यायपालिका की चौधरी बनने की कोशिश ना करे ।
सरकार और सुप्रीम कोर्ट के बीच छिड़ी हुई जंग
देश में सरकार और सुप्रीम कोर्ट के बीच जंग छिड़ी हुई है कि कौन किसको चलाएगा..आज इसी जंग को आसान भाषा में समझेंगे..और जानेंगे कि सुप्रीम कोर्ट ( supreme court ) को सरकार से बड़ा होना चाहिए..या फिर राष्ट्रवादी अमृत काल में अब सरकार को सुप्रीम कोर्ट से बड़ा हो जाना चाहिए.. चलिए दोस्तों शुरू से शुरू करते हैं..चैनल को सब्सक्राइब और पेज को फॉलो करते चलिए .दोस्तों वीडियो की शुरुआत भारत देश के कानून मंत्री किरण रिजुजू के कल से उस धमकी भरे बयान से करेंगे.. जो उन्होंने जजो को दी है..और जो सिटिंग जजों के लिए भी चेतावनी मानी जा सकती है ।
ये बोले भारत के कानून मंत्री
भारत के कानून मंत्री ने धमकी भरे अंदाज में कहा कि “कुछ रिटायर जज हैं..शायद तीन या चार..उनमें से कुछ एक्टिविस्ट हैं..जो भारत विरोधी गैंग का हिस्सा हैं…ये लोग ऐसी कोशिश कर रहे हैं कि भारतीय न्यायपालिका विपक्षी दल की भूमिका निभाएं…एंकर ने पूछा.- सरकार ने ‘टुकड़े-टुकड़े गैंग’ के खिलाफ क्या उपाय किए है…इस पर रिजिजू ने कहा.. ‘कार्रवाई की जाएगी, कानून के अनुसार कार्रवाई की जा रही है…
एजेंसियां कानून के प्रावधानों के अनुसार कार्रवाई करेंगी…कोई भी नहीं बचेगा…चिंता मत कीजिए, कोई नहीं बचेगा…जिन्होंने देश के खिलाफ काम किया है…उन्हें इसके लिए कीमत चुकानी होगी”
सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज..जिन्होंने जिंदगी भर कानून की किबातें चाटीं हैं..आईपीसी की धाराओं के बीच जिनकी जवानी कट गई…दफाईं धाराएं..और अनुच्छेद जिनकी रगों में बहती हैं..वो जज भारत देश के कानून मंत्री के हिसाब से..भारत विरोधी गिरोह का हिस्सा हैं..देश के कानून मंत्री ने एलएलबी किया है..वकील हैं..कानून की जानकारी रखते हैं..तो फिर प्रवचन क्यों बांच रहे हैं..अगर जज भारत विरोधी गिरोह का हिस्सा हैं तो उनको देश द्रोही क्यों नहीं घोषित कर देते..जेल में क्यों नहीं डालते..
मुकदमा क्यों नहीं चलाते..शायद इसलिए क्योंकि सत्ता की देश द्रोह की परिभाषा अंबेडकर के कानून से मैच नहीं खाती..सत्ता के हिसाब से सरकार के कामों पर सवाल उठाना..मोदी जी से सवाल करना..हिंदुत्व की बात ना करना..देश विरोधी होना है
क्यों खिसियाई हुई है सरकार ?
सरकार सुप्रीम कोर्ट से और जजों से इतना खिसियाई हुई क्यों है..इसको समझना चाहते हैं तो अब जो मैं आपको बताने जा रही हूं उसको ध्यान से सुनिए.. साल था 2014 नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री बने थे…नरेंद्र मोदी 2014 में ही नेशनल ज्यूडिशियल अप्वाइंटमेंट कमीशन यानी NJSC नाम का कानून लेकर आते हैं
इसमें सरकार ने कहा कि चीफ़ जस्टिस, सुप्रीम कोर्ट ( supreme court ) और हाई कोर्ट में जजों की नियुक्ति अब खुद जज नहीं करेंगे..कॉलेजियम सिस्टम से जजों कि नियुक्ति नहीं होगी..NJSC कमेटी के छह लोग जजों की नियुक्ति करेंगे..इसमें चीफ़ जस्टिस ऑफ़ इंडिया..केंद्रीय क़ानून मंत्री..सुप्रीम कोर्ट के दो वरिष्ठतम जस्टिस..दो विशेषज्ञ होंगे..संसद को अधिकार दिया गया कि वो भविष्य में सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के जजों की नियुक्ति से जुड़े नियम बना सकता है या उनमें फेरबदल कर सकता है..
अब मोदी जी ने नियम कल्लू हलवाई के लिए बनाए होते तो वो बिचारा मान लेता..नियम सुप्रीम कोर्ट के जजों के लिए बनाए थे…वो भी मोदी जैसी पावर रखते हैं…इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने इस नेशनल ज्युडिशियल अप्वाइंटमेंट्स कमीशन अधिनियम को संविधान के छेड़छाड़ बताते हुए रद्द कर दिया
क्या कहता है अनुच्छेद 217 ?
जो मोदी सरकार के बने बनाए कानून को ना माने..सीधे रद्दी की टोकरी में डाल दे…बात बड़ी हो गई..दोस्तों संविधान का अनुच्छेद 217 कहता है कि राष्ट्रपति हाई कोर्ट के जजों की नियुक्ति के लिए चीफ़ जस्टिस ऑफ़ इंडिया, राज्य के राज्यपाल और हाई कोर्ट के चीफ़ जस्टिस से विचार-विमर्श करके निर्णय करेंगे…
जजों की नियुक्ति में सरकार का कोई दख़ल नहीं होना चाहिए..न ही ये ज़िम्मेदारी सरकार के पास होनी चाहिए..क्योंकि अपने फ़ायदे के लिए सरकार नहीं चाहेगी कि सही लोग नियुक्त किए जाएं..जब सरकारें ही जज नियुक्त करेंगी तो सरकार को चुनौती देने वाले जनहित के मुकदमों में न्याय की उम्मीद ही खत्म हो जाएगा..नौ नौकरी देगा..जज उसके लिए वफादारी तो दिखाएगा ही..सरकार का चुना हुआ व्यक्ति सरकार के फ़ैसले को ग़लत ठहराए कलयुग में ऐसा तो संभव नहीं है
सरकार कहती है कि अगर भारत के चीफ जस्टिस हर महत्वपूर्ण नियुक्ति पर ध्यान देंगे, तो न्यायिक काम कौन करेगा..यही सुप्रीम कोर्ट सरकार से कहता है कि हम अपनी नियुक्तियां देख लेंगे आप अपने काम पर ध्यान दीजिए..आप जज नियुक्त करेंगे तो लोगों के काम कौन करेगा..
इलेक्शन कमीशन का बॉस सरकार नहीं होगी
अब तक कहानी में थोड़ी नोकझोंक चल रही थी..लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने जैसे ही अप्रत्यक्ष तौर पर सरकारी कंट्रोल वाली स्वतंत्र सवैधानिक संस्था चुनाव आयोग के बार में फैसला सुनाया वैसे ही चुनाव ने बरईया के छत्ते में हाथ डाल दिया..यहीं से बीजेपी सुप्रीम कोर्ट पर भनभना गई..सुप्रीम कोर्ट ने एक एक फैसला सुनाया कि इलेक्शन कमीशन का मेन बॉस अब से केवल सरकार नहीं चुनेगी..
मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति एक पैनल करेगा. इस पैनल में प्रधानमंत्री, सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश और लोकसभा के नेता प्रतिपक्ष शामिल रहेंगे…यानी अब चुनाव आयोग का बॉस अब से प्रधानमंत्री जी का पसंदीदा आदमी नहीं होगा..कहने को चुनाव आयोग स्वतंत्र और संवैधानिक संस्था थी लेकिन स्वतंत्रका के एकौ गुण चुनाव आयोग के भीतर दिखाई नहीं देते थे..खास तौर पर चुनाव प्रचारों में
इस फैसले के बाद सरकार सुप्रीम कोर्ट से बुरी तरह से खीझ गई..और सुप्रीम कोर्ट में जजों की नियुक्ति से कोलेजियम सिस्टम हटाने पर फोकस्ड हो गई है..जब चुनाव आयोग में मोदी जी की मनमर्जी का मालिक नहीं बैठ सकता तो फिर सुप्रीम कोर्ट में भी जज ही जजों की नियुक्ति नहीं करेंगे..दोस्तों कॉलेजियम भारत के चीफ़ जस्टिस और सुप्रीम कोर्ट के चार वरिष्ठ जजों का एक समूह है…
ये पाच लोग मिलकर तय करते हैं कि सुप्रीम कोर्ट में कौन जज होगा. ये नियुक्तियाँ हाई कोर्ट से की जाती हैं और सीधे तौर पर भी किसी अनुभवी वकील को भी हाई कोर्ट का जज नियुक्त किया जा सकता है…हाई कोर्ट में जजों की नियुक्ति भी कॉलेजियम की सलाह से होती है जिसमें सुप्रीम कोर्ट के चीफ़ जस्टिस, हाई कोर्ट के चीफ़ जस्टिस और राज्य के राज्यपाल शामिल होते हैं
नेताओं के हस्तकक्षेप से लंका लग जाएगी
जजों की नियुक्ति में अगर नेताओं का हस्तकक्षेप होने लगेगा तो..न्याय की लंका लग जाएगा..क्योंकि न्यायपालिका के पास पावर है लेकिन पैसा कम है…सरकार के पास पावर सुप्रीम कोर्ट जैसे नहीं हैं..लेकन पैसा अथाह भरा है..जजों कि नियुक्ति में सरकारी हस्तकक्षे बढ़ेगा तो..जज और पार्टी के कार्यकर्ता में ज्यादा अंतर नहीं रह जाएगा..रंजन गोगोई का ही उदाहरण ले लीजिए..अयोध्या मामले पर फैसला सुनाने वाले सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस..रंजन गोगोई को रिटायर होने के चार महीने बाद ही 19 मार्च, 2020 को बीजेपी ने राज्यसभा भेज दिया..क्यों एक जज को राज्यसभा सांसद बना दिया गया..
पार्टी के कर्मठ कार्यकर्ता मर गए थे क्या..या फिर रंजन गोगोई ही पार्टी के कर्मठ जुझारू और ईमानदार कार्यकर्ता थे…पार्टी के कार्यकर्ताओं की चप्पलें घिस जाती हैं..सांसद बनने में..जज साहब तुरंत सांसद बन गए..आज कल बिना किसी लाभ के कटी उंगली पर कोई दवाई तक नहीं लगाता..जज साहब सांसद बन गए
हैदराबाद मस्जिद कांड याद है ?
खैर ये दूसरा उदाहरण देखिए..18 मई 2007 को हैदराबाद मक्का मस्जिद में..रिमोट कंट्रोल के ज़रिये मस्जिद में जुमे की नमाज़ के दौरान विस्फोट किया गया..इस विस्फोट में नौ लोगों की मौत हो गई थी और 58 लोग घायल हुए थे…बाद में सीबीआई और राष्ट्रीय जांच एजेंसी ने विस्फोट के आरोप में लोकेश शर्मा और देवेंद्र गुप्ता समेत कट्टर हिदूवादी संगठन के लोग पकड़े गए. इन सभी हिंदू अभियुक्तों को बरी करने के पांच महीने बाद एनआईए की स्पेशल कोर्ट के जज रवींद्र रेड्डी भारतीय जनता पार्टी में शामिल होने को तैयार थे..ये कहानी बहुत मशहूर हुई…
दोस्तों जजों को अगर राजनीतिक लोग नौकरी पर रखने लगे..तो देश में न्याय का बंटाधार हो जाएगा..अभी 2019 में ही..दिल्ली हाई कोर्ट के पूर्व न्यायधीश मूलचंद गर्ग भी बीजेपी में शामिल हुए हैं..क्या जज रिटायर होने के बाद कोई और काम नहीं सकते..समाज सेवा नहीं कर सकते है..प्रोफेसर नहीं बन सकते..इतना नाम होता है इन लोगों का कोई और काम आसानी से मिल सकता है..मिल सकता है ।
जज बन गए बीजेपी नेता
राजनीतिक पेशे में वही जज जाते होंगे जिनके राजनीति में लिंक अच्छे रहते हों..जिनकी विचारधारा किसी पार्टी की विचारधारा हो..और जो किसी पार्टी की विचारधारा से प्रेरित है…उसके निर्णयों में भी विचारधारा का झुकाव तो होता ही होगा…अभी एक सुप्रीम कोर्ट से रिटायर्ड जज एस अब्दुल नज़ीर जिनकी पीठ ने नोटबंदी को सही ठहराया था..जो अयोध्या मामले के जज भी थे..वो आंध्र प्रदेश के राज्यपाल बनाए गए हैं..
इससे पहले नजीर साहब कर्नाटक उच्च न्यायालय में न्यायाधीश थे..जज साहब के डायमंड तो जड़े नहीं थे…कि राज्यपाल बनाने के लिए लाखों लोगों के बीच से बीजेपी चुन ले गई..राजनीतिक नजदीकियां रही होंगी तभी बनाए गए ना
दोस्तों देश का कोई भी संवैधानिक पिलन नहीं है जो सरकार के सामने सही बातों के लिए तठस्त खड़ा हो..एकलौता सुप्रीम कोर्ट है..उसके और सरकार के बीच भी संघर्ष है.. दो दोस्तों उम्मीद है आपको समझ में आया होगा कि सरकार और सुप्रीम कोर्ट में कौन बड़ा है..न्यापालिका के दबाओं..जजों को फैसलों के बाद मिल रहे फलों के बारे में जानने और सीखने को मिला होगा.