अंग्रेजों की CBI का पूरा ‘इतिहास-भूगोल’ आसान भाषा में जनिए, ‘विशेष पुलिस प्रतिष्ठान’ कैसे बनी CBI ?
देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी (Agency). ऐसी जांच एजेंसी जिसके हाथ में राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े मामलों से लेकर अपराध (crime) और हजारों करोड़ की हेराफेरी के केस है. सीबीआई (CBI) के हाथों में अगस्ता वेस्टलैंड हेलीकाप्टर खरीद की जांच है. तो देश के बैंकों को हजारों करोड़ का चुना लगाकर विदेश भाग गए विजय माल्या (Vijay Mallya) और नीरव मोदी (Neerav Modi) जैसे भगोड़ों की जांच पड़ताल भी सीबीआई (CBI) कर रही है. मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया घूस कांड की जांच भी सीबीआई (CBI) कर रही है तो कोयला खदान आवंटन में घोटाले की जांच का जिम्मा भी सीबीआई (CBI) के कंधों पर है..

दूसरों के दफ्तरों पर छापा मारने वाली CBI को क्या हुआ ?
इतिहास गवाह है कि देश का हर बड़ा मामला सीबीआई (CBI) की चौखट तक पहुंचा है.. लेकिन देश के बड़े-बड़े मामलों की जांच कर झूठ का पर्दाफाश करने वाली देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी सीबीआई आज खुद जांच के दायरे में है. सीबीआई के दो सबसे बड़े अफसरों (Officers) के बीच वर्जस्व की ऐसी जंग छिड़ी की सीबीआई की साख पर सवाल खड़े हो गए. दूध का दूध और पानी का पानी करने वाली जांच एजेंसी खुद विवादों (Controversies) में फंस गई. सीबीआई के जो अफसर दूसरों के घरों और दफ्तरों पर छापे मारते थे अब उन्ही के दफ्तर पर छापे पड़ रहे है. अपराधियों को अदालत में सजा दिलाने वाले सीबीआई के अफसर अब एक दूसरे के खिलाफ कानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं.
आज सीबीआई सवालों के घेरे में है. सीबीआई के अधिकार, सीबीआई की ताकत, सीबीआई के राजनीतिक इस्तेमाल. और सीबीआई पर सरकार के प्रभाव को लेकर सवाल उठ रहे है. विपक्ष जहां आक्रमक है तो सरकार बैकफुट पर है. लेकिन ऐसा पहली बार नहीं हुआ है जब सीबीआई सवालों के घेरे में आई है. ये पहली बार नहीं हुआ है जब सरकार और विपक्ष सीबीआई (CBI) को लेकर आमने-सामने है. आजाद हिन्दुस्तान का इतिहास गवाह है कि सत्ताधारी दल पर अक्सर सीबीआई के दुरुपयोग के आरोप लगते रहे हैं.
CBI अंग्रेजों के जमाने में बनी थी
ये जानकर आपको हैरानी होगी कि हिन्दुस्तान (Hindustan) की सबसे बड़ी जांच एजेंसी सीबीआई की नींव आजाद भारत में नहीं बल्कि अग्रेजी हुकुमत के अधीन भारत में रखी गई थी.
केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो की उत्पत्ति भारत सरकार द्वारा सन् 1941 में स्थापित (Established) ‘विशेष पुलिस प्रतिष्ठान’ से हुई. उस वक्त विशेष पुलिस प्रतिष्ठान का काम दूसरे विश्व युद्ध में युद्ध और आपूर्ति विभाग में लेन-देन में घूसखोरी और भ्रष्टाचार (Corruption) के मामलों की जांच करना था. विशेष पुलिस प्रतिष्ठान का सुपरविजन युद्ध विभाग के जिम्मे था.
सीबीआई (CBI) का गठन किन हालात में हुआ और इसके गठन के पीछे क्या मकसद था?
दूसरा विश्व युद्ध खत्म हुआ तो तत्काल सरकारी विभागों में घूसखोरी और भ्रष्टाचार चरम पर था. ऐसे में एक केंद्रीय जांच एजेंसी की जरुरत महसूस की गई. और इसी का नतीजा था कि 1946 में दिल्ली विशेष पुलिस प्रतिष्ठान अधिनियम लागू किया गया. इस नए कानून के जरिये विशेष पुलिस प्रतिष्ठान को केंद्रीय गृह मंत्रालय के अधीन कर दिया गया. इसके साथ ही इसके कामकाज का क्षेत्र भी बढ़ा दिया गया. केंद्र सरकार के सारे विभागों के साथ-साथ संघ राज्य क्षेत्रों तक इसकी पहुंच हो गई. इसके साथ ही राज्य सरकार की सहमति से राज्यों में जांच पड़ताल का अधिकार भी विशेष पुलिस प्रतिष्ठान को दिया गया.
1947 में भारत आजाद हो गया. लेकिन दिल्ली विशेष पुलिस प्रतिष्ठान का ना नाम बदला. ना काम. सरकारी महकमों में धूसखोरी और भ्रष्टाचार से निपटने की ये सबसे अहम जांच एजेंसी बनी रही. लेकिन 1963 में विशेष पुलिस प्रतिष्ठान का नाम बदल गया.
इस तरह CBI नाम पड़ा
1 अप्रैल 1963 को केंद्रीय गृह मंत्रालय ने दिल्ली विशेष पुलिस प्रतिष्ठान नाम बदल दिया
इसका नाम अग्रेजी में Central Bureau of Investigation और हिंदी में ‘केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो’ कर दिया गया
शुरुआती दौर में केंद्र सरकार की इस एजेंसी के पास केंद्रीय कर्मचारियों के भ्रष्टाचार की जांच की ही जिम्मेदारी थी. लेकिन देश में सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों की स्थापना के साथ ही इनके कर्मचारियों को भी सीबीआई के अधीन लाया गया. 1969 में इंदिरा गांधी की सरकार ने बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया तो सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक और उनके कर्मचारी भी सीबीआई के रडार तले आ गए.
बढ़ता गया CBI पर जांच का बोझ
सीबीआई शुरु से ही भ्रष्टाचार के मामलों की जांच से जुड़ी रही लेकिन वक्त के साथ-साथ आपराधिक मामलों (Criminal cases) की जांच सीबीआई को सौंपने के चल भी बढ़ता गया. राजनीति से जुड़े मामले और ब्लाइंड मर्डर सीबीआई को सौंपे जाने लगे. अब तो आलम ये है कि सीबीआई कई रेप केस भी सुलझा रही है. और इसी का नतीजा है कि आज देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी मुकदमों के बोझ के तले दबी हुई है.
CBI डायरेक्टर कौन होता है कैसे चुना जाता है ?
सीबीआई को एक स्वतंत्र जांच एजेंसी का तमगा हासिल है. सीबीआई का मुखिया डायरेक्टर होता. जो इसके सभी कामकाज देखता है.सीबीआई निदेशक को सीवीसी अधिनियम 2003 के द्वारा निर्धारित प्रक्रिया के आधार पर चुना जाता है . सीबीआई डायरेक्टर का चयन देश के प्रधानमंत्री, सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष की आसपी सहमति से होता है. सीबीआई निदेशक 2 साल तक इस पद पर रहता है
कानून ने स्वतंत्र एजेंसी बनाया लेकिन CBI कठपुतली बनी रही
कानून में भले ही सीबीआई को स्वतंत्र एजेंसी बनाया गया है लेकिन ये सिक्के का महज एक पहलू है. तिहास गवाह है कि सरकारों पर सीबीआई के राजनीतिक (Political) इस्तेमाल के आरोप लगते रहे है. सत्ताधारी दलों ने अक्सर सीबीआई का इस्तेमाल अपने राजनैतिक विरोधियों को फसांने या फिर उनकी बोलती बंद करने के लिए किया. विपक्ष का हमेशा ये आरोप रहता है कि सरकार मुंह बंद करने के लिए सीबीआई का इस्तेमाल करती है. और यहीं कारण है कि आज भी अगर सीबीआई किसी नेता के ठिकानों पर छापेमारी करती है तो उसे सीधे-सीधे राजनीति से जोड़ दिया जाता है.
अदालत ने CBIको तोता कहा था
ऐसा नहीं कि सीबीआई पर राजनीति इस्तेमाल के आरोप सिर्फ सियासी गलियारों में ही गलते है. देश की सबसे बड़ी अदालत भी सीबीआई की कार्यप्रणाली पर सवाल उठा चुकी है. पांच साल पहले सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई की परिभाषा (definition) कुछ इस अंदाज में दी थी. सुप्रीम कोर्ट (Supreme court) ने कहा था कि
‘सीबीआई संस्था पिंजरे में बंद तोते की तरह है, जो उसका मालिक उसे सीखाता है वहीं वह बोलता है. सरकारों के साथ मालिक बदल जाता है… लेकिन तोता पिंजरे में ही रहता है. कुछ ऐसा ही हाल आज सीबीआई का है’
देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी की स्वतंत्रता (Freedom) और निषपक्षता कल भी सवालों के घेरे में थी. और आज भी सवालों के घेरे में है. बस बदले है तो सवाल उठाने वाले चेहरे. तब बीजेपी विपक्ष में रहकर सीबीआई को कठपुतली बताती थी आज कांग्रेस अपनी ही कठपुतली को कठपुतली बता रही है