फेकने की भी हद होती है..गरीबी (Garibi) हटी क्या..

कहने को कोई कुछ भी कह दे..अमित शाह जी नेता हैं..इनकी बहुमत की सरकार है..ये कल को कह देंगे कि 2014 के बाद बैल दूध देने लगे हैं..ये कह देंगे..2014 के बाद पृथ्वी को चांद से रिप्लेस कर दिया गया है तो मानना पड़ेगा..नहीं मानकर कहां जाओगे..हौ कोई माई का लाल पैदा जो नहीं मानेगा..देखिए चिल्लाने से और खास तौर पर भाषमबाजी के वक्त चिल्लाने से झूठ सच नहीं हो जाता (Garibi)..समर्थकों को एक बार जरूर ताली पीटने का अवसर मिल जाता है..
मोटा भाई..अलग चिल्ला देते से आंकड़े वाकेड़े बदल जाते तो..दिल्ली में स्मॉग टॉवर की जगह झूठ रोको टावर लगाने पड़ते..जनसत्ता की ये रिपोर्ट देखिए..ये कहती है कि पिछले आठ साल के भीतर भारत में गरीब बहुत तेजी से बढ़े हैं..8 साल से भारत में ब्रिटिश राज तो चल नहीं रहा है..जो 7 करोड़ 60 लाख लोग गरीब हो गए..और अभी भी गरीबी (Garibi) का आंकड़ा बहुत तेजी से ऊपर जा रहा है…ठीक ये तो हो गई एक रिपोर्ट…इन्हीं रिपोर्टों का हवाला देकर पहले कांग्रेस को गरियाया जाता था..लेकिन जब से हमें 5 ट्रिलियन..और विश्वगुरू बनने का जुमाला सुनाया गया है तब से तब से हमारे सरकार समर्पित एंकर एंकराओं ने विदेशी रिसर्स रिपोर्टों को मानने से इंकार कर दिया है..
देखिए भारत में गरीबी की इस तरह की रिपोर्ट तैयार करने का गुर्दा किसी में है नहीं और जिनमें है उन्होंने अपनी-अपनी दुकानों पर अगरबत्ती सुलगा ली है..खैर दोस्तों अगर आप विदेशी रिपोर्ट नहीं मानते हैं..तो ये आपके सामने पेश है..शुद्ध भारतीय अपनी..निखालिस देसी..मेक इन इंडिया के तहत बनी नीति आयोग की ये रिपोर्ट..इस रिपोर्ट में भी लिखा गया है कि भारत के भीतर गरीबी (Garibi) के मामले में डबल इंजन वाली सरकारों का बहुत बुरा हाल है..
बिहार गरीबी (Garibi) में नंबर एक है..यूपी नंबर तीन पर है..और एमपी नंबर 4 पर है..इधर सब जगह डबल इंजन लगा हुआ है…खैर बाकियों की छोड़ दीजिए..यूपी हर चीज में नंबर वन है..चौराहों का कोई कोना नंबर वन हो जाने की होल्डिंगों से छूटा नहीं है..यहां तक कि अनपढ़ भी ये होल्डिंगें पढ़कर यूपी की साक्षरता दर बढ़ा रहे हैं..देखिए जिस राजा में नंबर वन होने के गुण होते हैं वो हो जाता है..सब नहीं हो पाते..ये भी नंबर वन होने का एक तरीका है..सुनिए..
सुना..है कोई माई का लाल..जो नंबर वन राह में रोड़ अटका सके..खैर..अमित शाह जी देश की गरीबी (Garibi) माईक पर जोर जोर से चिल्ला देने से नहीं घटती है..
मोटा भाई गीरीबी में भारत 9 साल पीछे जा चुका है.. हाल ये है कि हर चार में एक आदमी गरीब है..सुनने में तो यहां तक आ रहा है कि अब गरीबी के आंकड़े जारी ही नहीं किए जाएंगे..तो जब आंकड़े जारी ही नहीं किए जाएंगे…तो भारत से गरीबी भाषण बाजी सुनकर दुमदबाकर भाग खड़ी होगी..गरीबी (Garibi) की क्या मजाल जो भाषणों के सामने खड़ी हो सके..वो भी इतने सत्यवादी नेताओं के सामने..जो तुरंत दूरबीन निकाल लेते हैं…
मोटा भाई की इस दूरबीन वाली रंगारंग प्रस्तुती के बाद किसी ने कहा था कि अमित भाई झूठ बोल रहे हैं..उनके बदल में ही माफिया बैठा था..वो देख ही नहीं पाए..तो उन अनपढ़ जाहिलों को मैं बता देना चाहती हूं कि दूरबीन से दूर का दिखाई देता है..बगल में बैठने वाले को नेतागिरी में उत्तल दर्पण..और अवतल दर्पण से देखना पड़ता है..खैर दोस्तों कोई सरकार गरीबी (Garibi) नहीं भगा पाई लेकिन ये आंकड़े ना जारी करने वाली बात से यकीन हो जाता है कि अब गरीबी का भागना तय है..
जिस भारत देश में 100 रूपए का पेट्रोल है..200 रुपए किलो सरसों का तेल है..80 रूपए में सब्जी में खाया जाने वाला टमाटर है..उस देश में 50 रूपए रोज कमाने वाले को गरीब नहीं माना जाता है..शहर में 47 और गांव में 32 रुपए रोज खर्च करने वाला गरीब नहीं है..32 रूपए में क्या है क्या कोई बताएगा..लेकिन दोस्तों आंकोड़ों में गरीबी (Garibi) ऐसे ही खत्म होती है..दोस्तों एक बात सच है कि जिस मनरेगा को नरेंद्र मोदी गड्ढा खोदना कहते थे..कांग्रेस का पाप कहत थे..उसी नरेगा की वजह से देश में गरीबी का ग्राफ कम हुआ था..मोदी जी ने संसद में कांग्रेस को चिढ़ा तो दिया था लेकिन उस नरेगा जैसा कुछ दूसरा ला नहीं पाए..
मोदी जी जिसे गड्ढा खोदने का रोजगार कहते थे…8 साल बाद भी देश को गड्ढा खोदने से बचा नहीं पाए ना रोक पाए..यहां तक कि लोग गड्ढा खोदने को भी तरस गए..तो भाषण में नेता कुछ भी कहते हैं…लेकिन आपका नेता क्या कह रहा है..उसे सुनकर उससे सवाल पूछिए..जागरुक बनिए..
Disclamer- उपर्योक्त लेख लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार द्वारा लिखा गया है. लेख में सुचनाओं के साथ उनके निजी विचारों का भी मिश्रण है. सूचना वरिष्ठ पत्रकार के द्वारा लिखी गई है. जिसको ज्यों का त्यों प्रस्तुत किया गया है. लेक में विचार और विचारधारा लेखक की अपनी है. लेख का मक्सद किसी व्यक्ति धर्म जाति संप्रदाय या दल को ठेस पहुंचाने का नहीं है. लेख में प्रस्तुत राय और नजरिया लेखक का अपना है.