मुलायम सिंह यादव की संपूर्ण कहानी, हमला हुआ तो कैसे चलाया तेज दिमाग
AUTOBIOGRAPHY OF MULAYAM SINGH YADAV- मुलायम सिंह यादव के जीवन संघर्ष की पूरी कहानी आपको उल्टा सुनाई जा रही है..शुरूआत प्रधानमंत्री का ख्वाब टूटने से होगी. और अंत मुलायम के मुख्यमंत्री बनने पर होगा.

मुलायम के प्रधानमंत्री बनने पर अपनों ने लगाया था ब्रेक
इटावा का एक यादव खानदान जिसकी निगाहें लखनऊ और दिल्ली दोनों पर रहीं. एक नौजवान ने यूपी और दिल्ली दोनों पर राज करने का सपना पाला था. यूपी पर तीन बार राज किया और दिल्ली का सुल्तान बनने-बनते रह गया. बात मुलायम सिंह यादव की हो रही है.
उस रात मुलायम सिंह को 102 डिग्री बुखार था. केंद्र में संयुक्त मोर्चा सरकार के दौरान मार्क्सवादी नेता हरकिशन सिंह सुरजीत मुलायम के पास एक खास संदेश लेकर पहुंचे. कहा कि आपका नाम प्रधानमंत्री के लिए तय कर लिया गया है. लेकिन मुलायम के वर्तमान समधी लालू प्रसाद यादव ने भांजी मार दी. लालू ने मुलायम के प्रधानमंत्री बनने पर आपत्ति जता दी
मुलायम दिल्ली की गद्दी पर काबिज होने चाहते थे. दिल्ली की गददी तो नहीं मिली लेकिन एक बार रक्षा रहकर केंद्रीय मंत्री रह चुके हैं. कहते हैं आज भी मुलायम को अपने कार्यकर्ताओं को नाम से बुलाते हैं. और उनके बाल बच्चों को भी पहचानते हैं. मुलायम सिंह यादव अपने स्ट्रगल टाइम पर एक जीप से चलते थे. और प्रचार करते करते जहां भी रात हो जाती थी वहीं के ढ़ाबे पर सो जाते थे. सुबह वहीं से आगे प्रचार पर निकल जाते थे. मुलायम सिंह इतने जमीनी नेता थे कि उनको कार्यकर्ताओं के नाम उनके परिवार के बारे में सब कुछ जानते थे.
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किसान परिवार का बेटा रोटी खोज रहा था लेकिन हाथ सिंहासन लग गया
इटावा में सैफई का एक किसान परिवार. जिसके लिए घर की रोजी रोटी ढंग से चल जाए वही काफी था. लेकिन एक दिन वो यूपी के 25 करोड़ लोगों का राजा बन गया. मुलायम के पिताजी का नाम सुघर सिंह और माता का नाम मूर्ति देवी है. मुलायम सिंह ने आगरा विश्वविद्यालय से एम.ए और जैन इन्टर कालेज जो कि मैनपुरी के करहल में है . वहां से बी0 टी0 की पढ़ाई की. इसके बाद करहल के इंटर कॉलेज में कुछ दिनों तक अंग्रेजी के मास्टर भी रहे.
पांच भाइयों में तीसरे नंबर के मुलायम सिंह की दो शादियां हुई हैं. पहली शादी मालती देवी के साथ हुई. मालती देवी के साथ शादी में रहते हुए ही मुलायम ने साधना गुप्ता से भी विवाह किया. अखिलेश यादव मालती देवी के बेटे हैं. जबकि प्रतीक यादव दूसरी पत्नी साधना के बेटे हैं. हम आपको मुलायम के परिवार में नहीं उलझाएंगे क्योंकि ये किस्सा गरीब किसान के बेटे धरती पुत्र मुलायम के संघर्ष का है.
किस्मत का सिक्का जब चलता है तो फकीर भी राजा बन जाता है. और मुलायम की किस्मत उनका पता पूछते हुए सैफई तक पहुंच गई. एक मंच पर कविता पाठ हो रहा था. और एक पुलिस वाला कवियो को कविता पढ़ने से रोक रहा था. और मुलायम ने उस पुलिसवाले को उठाकर मंच पर ही पटक दिया. और यहीं से मुलायम ने राजनीतिक कुश्ती की नींव पड़ती है.
अपने गुरू नत्थूराम से मुलायम की मुलाकात
जसवंतनगर से विधायक और मुलायम के पहले राजनीतिक गुरू नत्थूराम ने मुलायम को अखाड़े में ही देखा. एक पहलवान धोबीपछाड़ दांव से अपने से दोगुने उम्र के पहलवानों को चित कर रहा था. कुश्ती में ईनाम मिल जाते थे लेकिन घर नहीं चला था. 1965 में मुलायम करहल के एक स्कूल में अंग्रेजी पढ़ाने लगे. मुलायम मास्टरी के साथ साथ समाजवादी आंदोलनों में हिस्सा लेते. नत्थूराम का स्वास्थ्य खराब हुआ तो उन्होंने मुलायम को जसवंत नगर से चुनाव लड़ा दिया. राजनीति की पहली ही फाइट में मुलायम ने अपने विरोधी लाखन सिंह को धूल चंटा दी.
पहले किसानी. फिर पहलवानी. फिर मास्टरी. फिर नेतागिरी. फिर विधायकी. और फिर यूपी की सियासत का सबसे बड़ा सुल्तान. मुलायम ने कभी सोचा नहीं था कि ये भी होगा. यूपी के सियासी समीकरणों को उंगली पर नचाने वाले मुलायम सिंह यादव चोटी नहीं बाधते. लेकिन राजनीति में चालें चाणक्य जैसी ही चलते हैं. शतरंज में उतनी चालें नहीं हैं जितने सियासी दांव मुलायम सिंह जानते हैं.
मुलायम की जाति और मंत्रालय को जोड़कर उड़ाया गया मजाक
जैसे अखिलेश यूपी के सबसे कम उम्र के मुख्यमंत्री बने थे वैसे ही. 1967 में 28 साल की उम्र में मुलायम राज्य के सबसे छोटे एमएलए बने. 26 जून 1975 को देश में आपातकाल लग गया. मुलायम ने 19 महीने इटावा की जेल में काटे. इमजेंसी के बाद जब जनता पार्टी का गठन हुआ और देश में चुनाव हुआ मुलायम चुनाव लड़े और जीते. उत्तर प्रदेश में जनता पार्टी की सरकार में राम नरेश यादव सीएम बने और मुलायम सिंह पहली बार सहकारिता मंत्री बनाए गए.
लोगों ने खूब मजाक बनाया कि मुलायम को उनकी जीति के हिसाब से गाय-भैंस वाला मंत्रालय दिया गया है. लेकिन मुलायम ने सहकारी बैंको और सहकारी क्षेत्र इतना काम किया कि एक मिसाल बन गई जिस मंत्रालयम पर लोग हंसते थे बाद में उसे पूजने लगे. मुलायम सिंह सरकारिता मंत्री बनाए गए थे. जिसमें पशुपालन. खेती से जुड़े कुछ काम और कॉपरेटिव बैंकों के संचालन जैसे काम आते हैं. लोगों की हंसी की परवाह ना करते हुए इसी मंत्रालय से अपने पूरे परिवार को सेट किया. शिवपाल को कॉपरेटिव बैंक में पद दिलाया फिर देखते ही देखते पूरा यादव खानदान कहीं ना कहीं फिट हो गया.
मुलायम हमले में बाल-बाल बच गए थे
मुलायम सिंह यादव के साथ उनका परिवार भी मुलायम के पीछे पीछे चलता गया. फिर एक दिन देश में वीपी सिंह सरकार के दौरान. एक शादी से लौट रहे मुलायम पर जानलेवा हमला हुआ. कहते हैं मुलायम की सूझबूझ से ही मुलायम उस हमले से बच पाए थे. हुआ ऐसा था कि मुलायम अपने समर्थकों के साथ जीप में रात के वक्त एक बारात से लौट रहे थे. तभी उनकी गाड़ी पर गोलियां बरसने लगीं. कहते हैं मुलायम की जीप पलट गई. सूखे नाले में चिल्ल पुकार मच गई. मुलायम समझ गए कि उनकी हत्या की साजिश रची गई है. मुलायम ने अपने साथ साथ दूसरों की जान बचाने की. तुरंत एक योजना बनाई. मुलायम ने अपने समर्थकों से कहा कि वो जोर जोर से चिल्लाएं कि नेता जी मर गए नेता जी को गोली लग गई. नेता जी नहीं रहे. और जब सूखे नाले में छिपे समर्थकों ने ऐसा करना शुरू किया तो हमलावरों को लगा कि मुलायम सच में मारे गए और अपने शिकार को मरा हुआ समझकर हमलावरों ने गोलियां बरसानी बंद कर दीं और लौट गए.
जब पहली बार मुलायम सिंह यादव बने मुख्यमंत्री
मुलायम वीपी सिंह के धुर विरोधी हो गए. हमले का आरोप मुलायम के सियासी विरोधी बलराम सिंह यादव पर लगा. चौधरी चरण सिंह मुलायम बहुत मानते थे यहां तक की मुलायम को अपना उत्तराधिकारी भी घोषित कर दिया था. मुलायम सिंह को सुरक्षा दिलाने के लिए चरण सिंह ने मुलायम को यूपी विधानपरिषद में विपक्ष का नेता बनवा दिया. 1987 में विदेश से पढ़ाई करके लौटे चौधरी चरण सिंह के बेटे आजीत सिंह और मुलायम सिंह के मतभेदों से लोकदल पार्टी टूट गई. मुलायम ने जनता पार्टी सहित 7 दलों को मिलाकर क्रांति मोर्चा बनाया. और यूपी की यात्रा पर निकल गए. जनता दल का गठन हुआ.. मुलायम यूपी में जनता दल के अध्यक्ष बने. 1989 का चुनाव मुलायम के नेतृत्व में लड़ा गया. मुलायम 5 दिसंबर 1989 को मुलायम पहली बार यूपी के मुख्यमंत्री बने.
1991 में मुलायम की सरकार गिर गई. बैसाखियों के सहारे चल रहे मुलायम को अब अपनी खुद की पार्टी की जरूरत हुई. 4 अक्टूबर 1992 में बेगम हजरत महल पार्क में समाजवादी पार्टी की स्थापना की गई. मायावती के गुरू काशीराम को साथ लेकर चुनाव लड़ने का मुलायम का दांव सही बैठा और यूपी में सपा बसपा गठबंधन की सरकार बनी.
6 दिसंबर 1992 में बाबरी मस्जिद ताजी ताजी गिराई गई थी. यूपी में बीजेपी की तरफ से मुख्यमंत्री रहे कल्याण सिंह सरकार गिरी और डेढ़ साल के राष्ट्रपति शासन के बाद विधानसभा चुनाव हुए, तो मुलायम सिंह ने कांशीराम के साथ दलित वोटों का समझौता किया. और कांशीराम को इटावा से संसद भिजवा कर यूपी में सपा और बसपा की मिली-जुली सरकार बनवा ली. और मुलायम दूसरी बार सीएम बने. और यहां से शुरू हुई उत्तर प्रदेश में एक नई सिसायत
नई सियासत का दौर तो ज़रूर शुरू हुआ लेकिन ये समझौता चल नहीं पाया. नतीजा हुआ 1995 का मीराबाई गेस्ट हाउस कांड. जिसमें मायावती के विधायकों को किड़नैप करने की कोशिश हुई. और कहते हैं मायावती के कपड़े भी फाड़े गए थे. इसके बाद तो मुलायम और मायावती में सियासी दुश्मनी शुरू हो गई.मायावती मुलायम से इतना नाराज हो गयीं कि उन्होंने पिछड़ों के बजाय सवर्ण हिंदुओं की राजनीति करने वाली बीजेपी की बांह थाम ली. नतीजा भी अनुकूल हुआ. मायावती सत्ता में आ गयीं और मुलायम सिंह के हाथ से यूपी की गद्दी फिसल गई.लेकिन मुलायम ने हार नहीं मानी थी.
मायावती बीजेपी के समर्थन पर 6-6 महीने की थ्योरी पर यूपी पर राज कर रही थीं. लेकिन 2003 में मुलायम और अमर की जोड़ी ने बड़ी सियासी चाली खुद बीजेपी के करीब हुए. बीजेपी ने अपने समर्थन से चल रही यूपी सरकार को गिर जाने दिया. मुलायम सिंह ने बीजेपी के अप्रत्यक्ष सयहोग से 2003 से 2007 तक यूपी पर राज किया. ये मुलायम सिंह के संघर्ष और सफलता की कहानी थी. मुलायम सिंह की प्रेम कहानी भी आपके सामने लाएंगे
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