अमेरिका की काॅर्नेल यूनिवर्सिटी UP के ‘महाराजगंज’ में दिखा रही है पोषण की राह

अमेरिका की काॅर्नेल यूनिवर्सिटी उत्तर प्रदेश के महाराजगंज में शकरकंद की खेती और सेवन को बढ़ावा देने का कार्यक्रम चला रही है. इसके जरिए किसानों को बताया जा रहा है कि खेती के तौर तरीकों में थोड़े बदलाव और आहार में विविधता लाकर पोषण को कितना बढ़ाया जा सकता है.

Cornell University of America is showing nutrition in Maharajganj of UP
Cornell University of America is showing nutrition in Maharajganj of UP

काॅर्नेल यूनिवर्सिटी और टाटा-काॅर्नेल इंस्टीट्यूट फाॅर ऐग्रीकल्चर एंड न्यूट्रीशन का एक कार्यक्रम है ’टेक्निकल असिस्टेंस एंड रिसर्च फाॅर इंडियन न्यूट्रिशन एंड ऐग्रीकल्चर’ (TARINA) इसी के तहत कार्यक्रम शुरु किया गया है जो यूपी के महाराजगंज के गांवों में शकरकंद को बढ़ावा देगा. उत्तर प्रदेश का एक स्थानीय एनजीओ ग्रामीण डैवलपमेंट सर्विसिस इस प्रोजेक्ट के जमीनी अमल के लिए मदद दे रहा है.

ये कार्यक्रम काफी खास हो गया है और पूरे देश में पोषण माह जारी है. स्वयं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी लोगों से इस पोषण माह में अपना योगदान देने का आग्रह किया है. ऐसे में काॅर्नेल यूनिवर्सिटी का शकरकंद संबंधी ये कार्यक्रम देश भर के लिए अनुकरणीय माॅडल बन सकता है.

अमेरिका की काॅर्नेल यूनिवर्सिटी द्वारा किए गए एक प्रयोग से ये पता लगा है कि अगर लक्ष्य बना कर काम किया जाए तो शकरकंद जैसी कम मशहूर सब्जी की पैदावार में वृद्धि की जा सकती है. इस प्रयोग में ये भी दर्शाया गया है कि शकरकंद में विटामिन ‘ए’ जैसे आवश्यक माइक्रोन्यूट्रिऐंट प्रचुर मात्रा में होते हैं. जिसके चलते ये सब्जी हर उम्र के व्यक्ति के लिए लाभदायक है.

मांओं और बच्चों के लिए भी ये फायदेमंद है. जो महिलाएं गर्भावस्था की अंतिम अवस्था में हैं और जो मांए शिशु को स्तनपान कराती हैं उनके लिए विटामिन ‘ए’ बेहद जरूरी होता है और ऐसे में शकरकंद इस जरूरत को बहुत अच्छे से पूरी कर सकता है. विटामिन ‘ए’ आंखों की दृष्टि, फेफड़ों और रोग प्रतिरोधक क्षमता को मजबूती देने का काम करता है.

इस कार्यक्रम के तहत स्थानीय किसानों और उनके परिवारों को शकरकंद उपजाने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा. काॅर्नेल यूनिवर्सिटी के विद्वान काफी समय से पोषण एवं स्वास्थ्य पर शकरकंद के सेवन के प्रभावों को बताते आ रहे हैं. टीसीआई के निदेशक प्रोफेसर प्रभु पिंगाली ने कहा कि TARINA किसानों के साथ मिलकर काम करता है, ये कार्यक्रम उन्हें शकरकंद से परिचित कराता है और उसकी खेती को बढ़ावा देता है. शकरकंद की फसल कुछ अन्य पारंपरिक फसलों के मुकाबले ज्यादा मजबूत होती है, इसमें मेहनत भी कम लगती है और पैदावार भी ज्यादा होती है.

इस कार्यक्रम के तहत घर-परिवारों तक पहुंच कर शकरकंद के सेवन को बढ़ावा देने का प्रयास भी किया जाता है. इसके लिए हम दिलचस्प तरीके आज़माते हैं जैसे शकरकंद के व्यंजन बनाने की विधियों का प्रदर्शन. इस तरह लोगों को इसके गुणों के बारे में पता लगता है और वे मांओं और बच्चों की खुराक में शकरकंद को शामिल करते हैं.

शकरकंद की खेती की अहमियत और सेहत पर इसके सकारात्मक प्रभाव के बारे में जागरुकता बढ़ाने के लिए जानकारी देने वाले कार्यक्रमों की एक श्रृंखला आरम्भ की है. इन कार्यक्रमों में बताया जाता है कि शकरकंद को उगाना कितना आसान है. TCI-TARINA की एक विद्वान केटी मर्केल ने उत्तर प्रदेश में शकरकंद को लेकर अनुसंधान किया है, उन्होंने कहा, शकरकंद को लोग स्वीकार करें और ये उनकी संस्कृति का हिस्सा बन सके इसके लिए हमने व्यंजन विधियों की कई प्रतियोगिताएं आयोजित कीं हैं. महिलाओं को ये पहल बहुत पसंद आई और उन्होंने शकरकंद को पकाने-खाने की कई रचनात्मक विधियां पेश कीं हैं.

माइक्रोन्यूट्रिऐंट्स की कमी दूर करने और सेहत सुधारने के लिए आहार में विविधता बहुत अहम है. इस तरह के कार्यक्रम महत्वपूर्ण आंकड़े उपलब्ध कराते हैं जिनसे ये समझने में मदद मिलती है कि किसान कोई फसल उगाने और परिवार कोई खाद्य पदार्थ चुनने का फैसला क्यों और कैसे करते हैं.