बीजेपी (BJP) अपनी सरकार जाने का रिस्क क्यों ले रही है ? दाल में बहुत कुछ काला है..

ऐसी कौन सी कसम खा रखी है..और किसके आगे क्या गिरवी रख दिया है कि किसानों का वोट खिसका जा रहा है..किसान बीजेपी (BJP) के खिलाफ प्रचार करने के लिए उतर आए हैं..लेकिन बीजेपी सरकार किसान कानूनों पर टस से मस होने को तैयार नहीं है..इसका सबसे बड़ा खमियाजा यूपी की योगी सरकार को भुगतना पड़ेगा..दोस्तों किसान कहते हैं कि उद्योगपतियों से डील करने के बाद सरकार ये तीन कानून लेकर आई है और डील हो चुकी है सरकार फंस चुकी है..
इसीलिए बीजेपी सरकार पीछे हटने को तैयार नहीं है..क्योंकि चुनाव में पैसा उद्योगपति ही लगाएंगे..वर्ना सोचिए जो बीजेपी (BJP) सरकार मच्छरों के भुनभनाने तक का श्रेय ले लेती हो..जो बीजपी सरकार सेना की कार्रवाईयों तक का श्रेय ले लेती हो..जो बीजेपी सरकार वैज्ञानिकों की खोज और अनुसंधान तक का श्रेय ले लेती हो..किसानों से दूर क्यों भाग रही है..जबकि इससे नुकसान बीजेपी सरकार का ही है..खास तौर पर 2022 में योगी आदित्यनाथ का..
मुजफ्फरनगर में किसानों का जो अथाह सैलाब आया था..ये सब ऐसे ही तो नहीं आया होगा..बीजेपी (BJP)के पास अब इतना ही बचा है कि वो इन किसानों को असली बताए नकली बताए..पाकिस्तानी खालिस्तानी बताए..इससे ज्यादा लाभ बीजेपी को नहीं होने वाला..एक तर्क और है कि ये वाले नकली किसान हैं..असली किसान खेतों में हैं..एक सच बात बताऊं दोस्तों सरकारें चाहती ही यही हैं कि किसान खेत से सिर उठाकर आगे ना देख पाए उसके मुंह में जुबान ना आने पाए..जुबान आ जाएगी तो सब राकेश टिकैत की तरह बोलने लगेंगे..और अगर सब बोलने लगे..और अगर सबको अपनी फसलों के ठीक दाम चाहिए होंगे..
तो इस देश की सरकारों ने जो अब तक किसानों को नो प्रॉफिट नो लॉस वाला काठ का उल्लू बनाकर रखा है वो उल्लू तो डाल से उड़ जाएगा..इसलिए हमारे देश की सरकारों (BJP) को मुंह खोलने वाले और बोलने वाले किसान नहीं चाहिए..अगर किसान बोल पाता तो बोलता कि सदियों से उसका गेहूं..20 रूपए के ऊपर क्यों नहीं बढ़ पाया..
सदियों से उसे आलू टमाटर आम जैसी तमाम फसलें मंडियों में फेंककर क्यों आनी पड़ती हैं..जितना मंडी तक जाने का भाड़ा लगता है उतने की ही फसल बिकती है..ये दुर्गति किसानों की सिर्फ भारत में ही है…आप बता दीजिए देश का कोई ऐसा सिंगल धंधा जहां आपके माल की कीमत खरीदने वाला तय करता हो..एक भी ऐसा व्यापार नहीं पाएंगे..लेकिन किसान टमाटर उगाता है..वो कितने का बिकेगा उसके रेट खरीदने वाला लगाता है..
सरकारें यही तो चाहती हैं..देश कहां पहुंच गया..नेता कहां पहुंच गए..सरकारी नौकरों की सैलरी कहां पहुंच गई..प्रॉपर्टी के दाम आसमान छू गए..लेकिन किसान की फसल पर अठन्नी चवन्नी और रूपईया से ज्यादा महंगाई नहीं आती..जो दवाई जो खाद जो डीएपी..जो ट्रैक्टर..जो डीजल किसान इस्तेमाल करता है उसके दाम 100-100 गुना बढ़ गए लेकिन किसान की फसल माटी मोल..इस देश में अगर सबसे ज्यादा शोषण किसी धंधे में है तो वो किसानी है..
बीजेपी के नेता कहते हैं अरे किसान तो खेतों में काम कर रहा है..काम नहीं कर रहा है जिंदगी काट रहा है..जब फसलों में काम नहीं होता तो किसान मजदूरी करने निकल जाता है..कोई ईटा गारा का काम करता है कोई भट्टों पर काम करता है कोई शहरों में पुताई करता है..आप असली नकली बताते हैं..किसानों की लाइफ अगर आपने इतनी ही लैविश बना दी होती तो आज भी किसानों की ये हालत नहीं होती..आपको 6 हजार की भीख नहीं देनी पड़ती..
मैं प्रज्ञा मिश्रा किसानों की बेटी होने के नाते ये मांग करती हूं..कि सरकार एमएसपी नहीं एमआरपी भी तय करे..किसान दान धर्म करने के लिए ही पैदा हुआ है क्या..गाली खाकर देश को रोटी खिलाने का ठेका लिया है क्या..हम किसानों को अब और भगवान नहीं बनना हमें भगवान बनाकर सरकारों ने हमें कच्चे घरों में रहना हमारी मजबूरी बना दी..अरे नहीं बनना है ऐसा भगवान जहां केवल चुनावी भाषणों में ही इज्जत मिलती हो…
बैंकों से सरकारी दफ्तरों से धक्के देकर भगाया जाता हो..नहीं बनना है ऐसा किसान..देश में अपने हक और अधिकार के लिए बोलना पड़ेगा मुंह खोलना पड़ेगा..तीनों किसान कानूनों के लिए सरकार जिस तरह से अड़ी हुई है..यूपी में अपनी सरकार का नुकसान कराने को तैयार है..उससे लगता हो यही है कि दाल में बहुत कुछ काला है..सरकार नहीं इन कानूनों का कोई और रखवाला है…
Disclamer- उपर्योक्त लेख लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार द्वारा लिखा गया है. लेख में सुचनाओं के साथ उनके निजी विचारों का भी मिश्रण है. सूचना वरिष्ठ पत्रकार के द्वारा लिखी गई है. जिसको ज्यों का त्यों प्रस्तुत किया गया है. लेक में विचार और विचारधारा लेखक की अपनी है. लेख का मक्सद किसी व्यक्ति धर्म जाति संप्रदाय या दल को ठेस पहुंचाने का नहीं है. लेख में प्रस्तुत राय और नजरिया लेखक का अपना है.