चंद्रमा पर उतरना इतना आसान भी नहीं होगा, अंतरिक्ष में आएंगी ये बड़ी मुश्किलें-
इसरो के महत्वकांक्षी मून मिशन चंद्रयान- 2 ने दोपहर 2.43 बजे श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से उड़ान भर ली है. आज से 48वें दिन पर चंद्रयान-2 चांद की सतह पर पहुंच जायेगा.

चंद्रयान-2 जब चांद की कक्षा में प्रवेश करेगा तो पूरे देश के लिए वो पल उपलब्धि का जश्न मनाने वाला होगा. लेकिन इस मिशन में कई प्रकार की चुनौतियां भी आने वाली हैं जो कुछ इस प्रकार हैं-
क्या हैं मुश्किलें-
चंद्रमा की सतह पर उतरना किसी विमान के उतरने जैसा बिलकुल भी नहीं है. श्रीहरिकोटा से निकला बाहुबली रॉकेट का एक हिस्सा लैंडर विक्रम 6-7 सितंबर के आस-पास चंद्रमा की सतह पर उतरेगा. इसी दौरान कई तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है.
- धरती से चांद की दूरी करीब 3. 844 लाख किमी है. और इतने लंबे सफर के लिए सबसे जरूरी सही मार्ग (ट्रैजेक्टरी) का चुनाव करना है, क्योंकि सही ट्रैजेक्टरी से चंद्रयान-2 को धरती और चांद के रास्ते में आने वाली कई वस्तुओं की ग्रैविटी, सौर विकिरण और चांद के घूमने की गति का कम असर पड़ेगा.
- धरती और चांद की दूरी ज्यादा होने की वजह से रेडियो सिग्नल देरी से पहुंचेंगे. और देरी से जवाब भी मिलेगा. वहीं अंतरिक्ष में होने वाली आवाज भी इस रेडियो सिग्नल संचार में बाधा पहुचा सकती हैं.
- लगातार बदलती कक्षीय गतिविधियां भी चंद्रयान-2 को चांद की कक्षा में पहुंचाने पर बाधा पहुंचा सकती हैं. इसके लिए ज्यादा सटीकता की जरूरत होगी. इसमें काफी ईंधन भी खर्च होगा. सही कक्षा में पहुंचने पर ही तय जगह पर लैंडिंग हो पाएगी.
- चांद के चारों तरफ चक्कर लगाना भी चंद्रयान-2 के लिए आसान नहीं होगा. वो इसलिए क्योंकि चांद के चारों तरफ ग्रैविटी एक जैसी नहीं होती है. जिससे चंद्रयान-2 के इलेक्ट्रॉनिक्स सिस्टम पर भी असर पड़ सकता है.
- सबसे बड़ी चुनौती ये होगी कि चंद्रयान-2 के रोवर और लैंडर चंद्रमा पर सही जगह और आसानी के लैंड कर जायें. चांद पर रोवर और लैंडर को आराम से उतारने के लिए प्रोपल्शन सिस्टम और आनबोर्ड कंप्यूटर का काम मुख्य रूप से होगा. और ये सभी काम खुद-ब-खुद होंगे. इसको कोई कंट्रोल नहीं कर सकता है.
- अब चांद की सतह पर उतरने में क्या होगा ये भी जान लिजिये- जैसे ही लैंडर चांद की सतह पर अपना प्रोपल्शन सिस्टम आन करेगा, वहां तेजी से धूल उड़ेगी. और ये धूल उड़कर लैंडर के सोलर पैनल पर जमा हो सकती है, इससे बिजली आपूर्ति बाधित हो सकती है. ये भारत के लिए सबसे बड़ी चुनौती होगी. अगर ऐसा हुआ तो आनबोर्ड कंप्यूटर के सेंसरों पर भी असर पड़ सकता है.
- चंद्रयान-2 के चांद पर लैंड करने के बाद लैंडर और रोवर अपना काम शुरू करेंगे. इन दोनों का चांद पर एक दिन का काम पृथ्वी के 14 दिन के बराबर होगा. क्योंकि चांद का एक दिन या एक रात धरती के 14 दिन के बराबर होता है. जिसकी वजह से चांद की सतह पर तापमान तेजी से बदलता है. इसलिए लैंडर और रोवर के काम में बाधा आ सकती है.