यादवों का गढ़ ‘आजमगढ़’ सपा के लिए कितना मज़बूत है ? आसान नहीं अखिलेश की डगर , जानें इतिहास-
यूपी की सबसे बड़ी समाजवादी पार्टी के आज़मगढ़ का किला कितना मज़बूत है आज उसी को लेकर चर्चा हो रही है. भारत में लोकसभा चुनाव है और बस कुछ ही दिनों में मतदान शुरू होने वाले हैं. और आज़मगढ पर इसलिए सबकी नज़र है क्युकी यहाँ से खुद अखिलेश यादव ने चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है.

आजमगढ़ का इतिहास देखें तो यहाँ के मतदाताओं ने सपा और बसपा दो पार्टियों को जितना मौका दिया है उतना और किसी पार्टी को शायद ही मिला हो. 2019 का लोकसभा चुनाव बेहद ही रोमांचक होने वाला है. इसमें कोई दो राय नहीं है. आपको बतादें कि आजमगढ़ में यादव, मुस्लिम और दलित समुदाय की आबादी ज्यादा है. गैर-यादव ओबीसी की तादाद भी अच्छी खासी है.
आजमगढ़ को समाजवादियों का गढ़ माना जाता है और आजमगढ़ पूर्वी उत्तरप्रदेश का प्रमुख जिला भी है, जहां से समाजवादी पार्टी के संरक्षक मुलायम सिंह यादव सांसद हैं. यहाँ एक बड़ी ख़ास बात है कि आजमगढ़ में चुनाव कोई भी पार्टी लड़े लेकिन वर्चस्व सिर्फ यादवों का ही रहा है. आजमगढ़ में कुल मतदाताओं की संख्या 17 लाख 70 हजार 635 है. इसमें पुरुष मतदाता 9 लाख 62 हजार 890 और महिला मतदाता 8 लाख सात हजार 668 वहीं अन्य मतदाता 77 हैं.
कब-कब जीते यादव उम्मीदवार-
1952 में कांग्रेस के अलगू राय शास्त्री चुने गए.
1962 से 1971 तक कांग्रेस के यादव वंशी ही चुने गए.
1977 में जनता पार्टी के रामनरेश यादव सांसद चुने गये.
1978 के उपचुनाव में मोहसिना किदवई सांसद बनीं.
1980 में जनता पार्टी सेक्यूलर के चंद्रजीत यादव सांसद बने.
1989 में बसपा के रामकृष्ण यादव सांसद चुने गये.
2009 में भाजपा से रमाकांत यादव को जीत मिली.
2014 में मुलायम सिंह यादव जीतकर आये.
2019 के लोकसभा चुनाव में सपा-बसपा गठबंधन में दोनों ही पार्टियों को फायदा होने की संभावना जताई जा रही है. क्युकी 2014 के चुनाव में यहां से मुलायम सिंह यादव जीते थे, और दूसरे नंबर पर बीजेपी के रमाकांत यादव थे और तीसरा स्थान बसपा के शाह आलम उर्फ गुड्डू जमील का था. अब अगर देखा जाये तो इस बार शाह आलम के हिस्से में आने वाले वोट भी सपा के खाते में जा सकते हैं. और उनकी जीत आसान हो सकती है.
2014 के लोकसभा चुनाव की बात करें तो बीजेपी ने यूपी की कुल 80 सीटों में से 71 सीटों पर जीत हासिल की थी. वहीं सपा ने 5 सीटें जीती थीं. बसपा एक भी सीट नहीं जीत पायी थी. कांग्रेस भी बड़ी मुश्किल से दो सीटें जीत पायी थी. कांग्रेस के खाते में अमेठी (राहुल गांधी) और रायबरेली (सोनिया गांधी) की सीटें गयी थीं. आजमगढ़ लोकसभा क्षेत्र में पांच विधानसभा क्षेत्र आते हैं, जिनमें गोपालपुर, सगड़ी, मुबारकपुर, आजमगढ़ और मेहनगर शामिल है.
आजमगढ़ में दो लोकसभा की सीटें हैं. जिसमें आजमगढ़ सदर से तो अखिलेश यादव ही प्रत्याशी है तो वहीं दूसरी सीट लालगंज संसदीय क्षेत्र से बसपा के मंडल प्रभारी घनश्याम खरवार ने संगीता आजाद को बसपा का प्रत्याशी घोषित कर दिया है. संगीता आजाद के पति लालगंज विधानसभा सीट से बसपा के विधायक भी हैं.
दूसरी तरफ अखिलेश यादव के चाचा शिवपाल सिंह यादव ने अपनी पार्टी प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (प्रसपा) से सपा के ही नेता हेमराज पासवान को अपनी पार्टी से आजमगढ़ का प्रत्याशी घोषित कर दिया है. उधर बीजेपी ने भी आजमगढ़ से भोजपुरी अभिनेता दिनेश लाल यादव ‘निरहुआ’ को उतारने की तैयारी में है.
आजमगढ़ सदर सीट से मुलायम सिंह यादव भले ही चुनाव में विजयी रहे लेकिन जीत सुनिश्चित करने के लिए उनका पूरा कुनबा लगा हुआ था. पार्टी के सभी विंग व कद्दावार नेताओं को अपना खूब पसीना बहाना पड़ा था. यूपी में सपा सरकार होने के बावजूद बीजेपी के उम्मीदवार रमाकांत यादव मुलायम को मज़बूत टक्कर दे रहे थे. क्युकी रमाकांत यादव पहले सपा में ही थे.
पिछले चुनाव में मुलायम को 3,40,306 (35.4′) वोट मिले थे जबकि रमाकांत को 277,102 (28.9′) वोट से ही संतोष करना पड़ा था. अब अगर इस बार भी बीजेपी ने रमाकांत यादव पर अपना दांव खेल दिया तो अखिलेश के लिए भी चुनावी राह आसान नहीं होगी. क्युकी अखिलेश के पास न तो पूरी समाजवादी पार्टी है और न ही मुलायम के दमदार साथी.
लोकसभा सीटों के बाद अगर आजमगढ़ की 5 विधानसभा सीटों की बात करें तो तीन सीट यानी गोपालपुर, आजमगढ़ सदर व मेंहनगर सुरक्षित समाजवादी पार्टी के खाते में है. और वहीं सगड़ी, मुबारकपुर विधानसभा सीट बसपा के हिस्से में है. अब ऐसे में कहा जा सकता है कि इन क्षेत्रों में विकास कार्य और विधायकों का जनता से जुड़ाव सपा के लिए संजीवनी साबित हो सकती है.
जो भी हो पर सीधी टक्कर सपा और बीजेपी की बीच ही देखने को मिलेगी.