पराजित दल तब तक पराजित नहीं होता जब तक वो अपनी संस्कृति और मूल्यों की रक्षा करता है
अनुभव कहता है कि पराजित मन, पराजित राज्य और पराजित राष्ट्र हमेश विजेता की संस्कृति और संस्कारों को स्वीकार करते हैं. और समाजवादी पार्टी ने भी विजयी भारतीय जनता पार्टी में राष्ट्रवाद की नई आंधी और मोदी नाम के ब्रांड को स्वीकार कर लिया है. लेकिन इसका ये मतबल बिल्कुल नहीं है कि बीजेपी अजेय है. पराजित पार्टी तब तक पराजित नहीं होती जब तक वो अपनी संस्कृति और मूल्यों की रक्षा करती हैं. सामाजिक बदलाव के इस दौर में अगर अखिलेश यादव ने अपनी सांस्कृतिक विरासत को छोड़ा तो पार्टी का पतन निश्चित है. और पार्टी की सांस्कृतिक विरासत है. क्षेत्रियता रीजनलता.
अगर बीजेपी को उत्तर प्रदेश में स्थिर होना है तो उन्हें क्षेत्रीय पार्टियों को खत्म करना होगा. और वो कर रहे हैं. करेंगे. अगर छोटे दल सावधान नहीं हुए तो. अगर क्षेत्रीय पार्टियों ने घर घर तक लोकल लेवल तक अपनी पहुंच को छोड़ा तो उनका पतन निश्चित है. क्षेत्रीय पार्टी को क्षेत्रीय कहा क्यों गया था. क्योंकि उसकी अपने राज्य की जनता से सीधा संवाद था. उसके नेता कल्लू बबलू और ननकू को नाम से जानते थे. लोग अपने क्षेत्रीय नेता से सीधा मिल सकते थे.
चाहे समाजवादी पार्टी हो या बहुजन समाज पार्टी सबने जनता से सीधा संवाद खत्म कर दिया. जनता के लिए जैसे देश के प्रधानमंत्री मोदी हैं. जैसे राष्ट्रपति हैं. जैसे भगवान हैं. वैसे ही अखिलेश हो गए थे. मिलना किसी से संभव नहीं था. और संभव अभी भी नहीं है. क्योंकि अब अखिलेश और उनके सलाहकारों को लगता है भइया मुख्यमंत्री रह चुके हैं जनता के मुद्दों पर धरना देंगे. या सड़क पर उतरेंगे तो उनके खिलाफ कोई अप्रिय घटना घट सकती है. प्रिकॉशन्स जिस दिन ये प्रिकॉशन्स हट गए अखिलेश फिर से चाटुकारों के नहीं जनता के भइया बन गए उस दिन क्षेत्रीय राजनीति की परिधि में अखिलेश को फिर से कोई नहीं हरा सकता लेकिन उससे पहले अखिलेश को आम होना होगा..
आप क्षेत्रीय नेता हैं. सहज होईये सिर्फ गाड़ी रोककर भुट्टा खाने से काम नहीं चलेगा. मोदी जितनी सिक्योरिटी लेकर घूमिए लेकिन मोदी की तरह सुरक्षा घेरा तोड़कर बच्चों के बीच जाने की हिम्मत भी रखिए. जब एक आदमी अपने घर गांव या ड्योढ़ी पर ये बताता है कि अखिलेश से मिलने गए थे उनके गार्डों ने बंदूक की बट से ठेल दिया तो अखिलश उतने ही बुरे हो जाते हैं जिनता रावण.
राजनीति कभी ना खत्म होने वाली नीति है. नंबर गेम सत्ता से बाहर करता है. समाज से नहीं. लोगों के बीच से नहीं. लाख लाख वोट से ही प्रत्याशी हाते जीतते हैं. जो 5-5 लाख वोट हर सीट से मिलते हैं एक हार के बाद आप अपने उन 5 लाख लोगों को भूल जाते हो. गायब हो जाते हो. ठीक है मायावती ने अपनी तरफ से सारे हथकंडे अपना लिए. मायावती को अलग होना ही था. उसमें कोई दो राय नहीं है. लेकन अखिलेश का गायब हो जाना. अखिलेश की टूटी हुई कमर की गवाही देता है. पूरा आम का सीजन बीत गया. आप कहां कहां आम खाने गए.

- हार के बाद संगठन को खड़ा करने के लिए आपने क्या किया ?
- क्या आपके पास ऐसा मैकैनिज्म है जो अपने कार्यकर्ताओं को रोज काम पर लगाए
- क्या आपके कार्यकर्ताओं से रोज आपकी कॉन्फ्रेंसिंग होती है
- संवादहीनता आपकी सबसे बड़ी कमजोरी है
- आपके पास ऐसा मैकैनिज्म है ही नहीं जिससे ये पता चले आपका चाटुकार कार्यकर्ता क्षेत्र में क्या कर रहा है
- जो जवानी कुर्बान गैंग आपके सामने अपनी जवानी कुर्बान करती है जो जमीन पर क्या करती है
- उसका अपने क्षेत्र की जनता के बीच कैसे व्यहवार है
- संगठन मेहनत से खड़ा होता है. आप लोगों के दुख में खड़े होते हैं तब लोगआपके खड़े किए हुए को वोट देने के लिए लाइन में खड़े होते हैं.
- मायावती के साथ गठबंधन का फैसला गलत नहीं था. आप हारे कोई बात नहीं हिम्मत करिए मैदान में आइये
- जनता के लिए 2022 तक पसीना बहाइये. जनता से संवाद खत्म करेंगे तो खत्म हो जाएंगे
- आप क्षेत्रीय पार्टी हैं तो उसका मतलब समझिए. जैमर लगी गाड़ी को कुछ दिन किनारे करिए
- सड़क नाली खड़ंजा बिजली पानी शिक्षा कानून व्यवस्था गांव किसान के लिए लड़िए.
- ट्वीटर से नीचे आइये. अपने टारगेट पर सिस्टम के सताए हुए समाज को रखिए
अखिलेश को व्यक्ति से व्यक्ति को जोड़ने वाले अभियान का नेतृत्व स्वंय करना चाहिए. अखिलेश को ऐसा करने में तनिक भी संकोच नहीं करना चाहिए. आगे बढना चाहिए. अगर अखिलेश योग्य होंगे तो योग्यता अपने स्वामी का वरण करने में तनिक भी देर नहीं लगाती.
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