‘अधूरा करवा चौथ’ karwa chauth की कथा से अलग ये भी एक कहानी है…

पैरों में सुर्ख़ लाल महावर , हाथों में गाढ़ी लाल मेहन्दी , माथे पे मोटी सी कुमकुम की लाल बिंदी और मांग में चटक लाल सिन्दूर. ये होती है एक सुहागन की पहचान ‘लाल रंग’ आज करवा चौथ (karwa chauth) है यानी ‘सुहाग का दिन’ हर सुहागन पूरे साल इस ही दिन का इंतज़ार करती है और इस दिन के रूमानी पलों को पूरी ज़िन्दगी के लिए ख़ुद में संजोकर रखना चाहती हैं.

adhura karwa chauth story by pragya mishra
adhura karwa chauth story by pragya mishra

घर में आयी नयी नवेली दुल्हन हो या घर की बूढी अम्मा करवा चौथ पर सोलह श्रृंगार करके अपने ‘चांद’ के लिए पूरा दिन भूखी – प्यासी रहती है. सुबह उठने से लेकर रात चांद निकलने तक घड़ी को टकटकी लगाए निहारतीं रहतीं है ! रंगो का ये दिन पूरी तरह सुहागन औरतों को समर्पित होता है. बाज़ारों से लेकर घर की दीवारों तक रंग और रौशनी से भर दिए जातें हैं, क्यों ये रौशनी रात में छत पर चारों तरफ़ बिखरी चांद की रौशनी के साथ मिलकर और भी ख़ूबसूरत लगने लगती है. हैना !

लेकिन ये रौशनी ये ख़ुशी ये रंग कब तक ? सिर्फ़ तब तक जब तक समाज ने इस ‘लाल रंग’ का अधिकार हमें दिया है ! जिस तरह से मकान मालिक किराया ना दे पाने पर किरायेदार से कमरा छीन लेता है ठीक वैसे ही सुहागन के विधवा होते ही उससे ‘लाल रंग’ का अधिकार भी छीन लिया जाता है और अफ़सोस हम इस बेक़ार के तर्क को सच मानकर आगे बढ़ाते जा रहें हैं.

आज जहां एक घर की बेटी या बहू अपने पति की लम्बी उम्र के लिए चांद को अर्ध्य दे रही होगी वहीं दूसरी तरफ किसी घर की बेटी या बहू किसी कोने में बैठकर पिछले व्रत को याद कर ख़ुद की गलती ढूंढ रही होगी. मेरी नाराज़गी किसी रीति या किसी प्रथा से नहीं मेरी सान्त्वना समाज से बेदख़ल की हुई उन औरतों के लिए है जो भले ही आज का दिन मना नहीं सकतीं लेकिन दूसरों को देखकर ख़ुश होना चाहती हैं.

मुझे दुःख है की ये रौशनी आज उनके नसीब में नहीं होगी जिनकी ज़िन्दगी से रंग छीन लिया गया है , जो ज़बरदस्ती कफ़न जैसे सफ़ेद रंग में क़ैद कर दीं गयीं हैं, जो पहले करवा चौथ के दिन इस लाल रंग को ख़ुद में समेटी रहती होंगी आज उन्हें ‘विधवा’ कहकर हर ख़ुशी से बर्ख़ास्त कर दिया गया है. क्यों क्योंकि हिन्दू समाज के कुछ अगाध ज्ञानियों का कहना है कि सुहागन के त्यौहार में ‘विधवाओं का जाना अशुभ है’

मैं जानना चाहतीं हूँ आखिर किसने बनायीं ऐसी रीति जहाँ रंग और खुशियां सिर्फ पति के रहते ही नसीब हों ? नसीब हो सकती तब जब हम आगे बढ़कर सफ़ेद और लाल रंग के अंतर को हमेशा के लिए ख़त्म करके एक नयी रीति बनाकर अपनी आने वाली पीढ़ियों को ढकोसलों से दूर रखें.