बीजेपी का सूपड़ा साफ..जिसे ‘पप्पू’ कहते थे वो ‘फाइटर’ निकला…

कांग्रेस मुक्त भारत अभियान का नारा 5 राज्यों के चुनाव में बीजेपी मुक्त नारे में बदल गया

पांच राज्यों के चुनाव परिणामों में बीजेपी का सूपड़ा साफ हुआ है. .लोकसभा चुनाव के ठीक पहले बीजेपी के लिए ये शुभ संकेत नहीं है. बीजेपी के लिए इस हार के बड़े मायने हैं. क्योंकि सियासत में टाइमिंग की बड़ी कद्र होती है. कांग्रेस कि हिंदी हार्टलैंड के तीन सूबों में कांग्रेस बीजेपी की तमाम कोशिशों के बावजूद कमबैक करने में कामयाब रही. लेकिन वोट परसेंट के हिसाब से ये जीत इतनी बड़ी नहीं है.

रूक गया मोदी-शाह का विजय अभियान, राहुल ने पकड़ लिया अश्वमेघ का घोड़ा

मोदी-शाह के जिस जिताऊ रथ पर बीजेपी सवार थी. उसका हिंदी हार्टलैंड में थम जाना बीजेपी के लिए बड़ी हार है. सवाल सिर्फ चुनाव में उठे स्थानीय मुद्दों का नहीं है. सवाल मोदी सरकार की पॉलिसियों का भी है. जिसका छोटा ही सही ये चुनाव इम्तिहान माने जा रहे थे. और इस इम्तिहान में बीजेपी की शिकस्त हुई है.

हिंदी भाषी राज्यों में क्यों हारी बीजेपी ?

इन तीनों राज्यों में यानी मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में लोकसभा की कुल 65 सीटें हैं. यानी लोकसभा की कुल 545 सीटों का 11 परसेंट. ज़ाहिर है बीजेपी पर असर तो होगा ही. दरअसल आंकड़ों के अलावा चुनाव में जनता के मूड का अपना गणित होता है. बीजेपी अपनी तमाम कोशिशों के बावजूद उसे समझने में नाकाम रही. दरअसल जिन मुद्दों पर बीजेपी ने चुनाव लड़ा वो मुद्दे सिर्फ स्थानीय नहीं थे. उन मुद्दों की धमक दिल्ली तक सुनाई देती है.

किसानों की समस्या

मध्य प्रदेश और राजस्थान में किसान बारबार चेतावनी दे रहे थे कि शिवराज और राजे की सरकार से वो नाराज़ हैं.

एससी-एसटी एक्ट

राजस्थान मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में एससी-एसटी एक्ट के मामले से सवर्ण वोटर्स भी पार्टी से नाराज़ रहे.

बेरोजगारी बड़ा मुद्दा

बेरोजगारी का मुद्दा छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान तीनों राज्यों में उठा.

एंटी इनकंबैंसी फैक्टर

लोग मौजूदा सरकारों से नाराज थे. एंटी इनकंबैंसी फैक्टर सभी सरकारों पर हावी था.

नोटबंदी बना मुद्दा

इन चुनावों में मोदी सरकार की पॉलिसी की भी परीक्षा हुई. नोटबंदी ने भी बीजेपी के विजय रथ को रोकने में बड़ी भूमिका निभाई

जीएसटी का साइड इफेक्ट

राजस्थान और मध्यप्रदेश का व्यापारी वर्ग जीएसटी से नाराज था. और इन चुनावों में जीएसटी के आफ्टर इफेक्ट की परीक्षा हो गई.

इन मुद्दों के अलावा बीजेपी का सबसे बड़ा दांव हिंदुत्व कार्ड भी काम नहीं आया. कांग्रेस ने सॉफ्ट हिंदुत्व अपनाया. राहुल गांधी ने मंदिरों में मत्था टेका. और जनता को मैसेज दिया कि हिंदू हित की बात सिर्फ बीजेपी नहीं कांग्रेस भी करती है.

ज़ाहिर है बीजेपी इस हार की व्याख्या करेगी तो ये तमाम मुद्दे उठेंगे. जिनसे हर हाल में उसे आम चुनाव के पहले पार पाना होगा. वरना इस चुनाव ने ये ज़ाहिर कर दिया है कि कांग्रेस को हल्के में लेना बीजेपी की बड़ी भूल होगी.

छत्तीसगढ़ की सीटों और वोटों का गुणा गणित

 

 

रमन सरकार क्यों हारी?
  • 2013 के विधानसभा चुनाव में धान का समर्थन मूल्य 2100 करना और 300 रुपये का बोनस देने का वादा रमन सिंह पूरा नहीं कर पाए. किसानों की खुदकुशी भी उनके खिलाफ गई.
  •  बेलगाम नक्सलवाद रमन सिंह सरकार को भारी पड़ा. कांग्रेस ने इसे नाकामी की तरह भुनाया.
  •  2018 में बनी छत्तीसगढ़ की नई शराब नीति खिलाफ गई, गांव से लेकर शहर तक महिलाओं ने इसका जबर्दस्त विरोध किया.
  •  एससी-एससी एक्ट और आरक्षण पर मोदी सरकार के रुख से सवर्ण नाराज हुए…और कांग्रेस के पाले में आ गए.
  •  रमन सरकार के विकास के दावे मीडिया में ज्यादा चमके, हकीकत में कम…इसलिये 2013 में जिताने वाला विकास का दांव इस बार उल्टा पड़ गया.

 

छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की जीत और बीजेपी की हार के लिये अजीत जोगी बड़ी वजह बने. छत्तीसगढ़ में बीजेपी का सवर्णों के साथ एससी-एसटी में भी बड़ा जनाधार था. अजीत जोगी और बीएसपी के गठबंधन ने इस वोटबैंक को बीजेपी से छीन लिया. जिससे रमन सिंह सरकार की कुर्सी उखड़ गई.

कौन बनेगा छत्तीसगढ़ का मुख्यमंत्री ?

छत्तीसगढ़ कांग्रेस में चार बड़े चेहरे हैं…जिनकी सीएम कुर्सी पर तगड़ी दावेदारी मानी जा रही है.. टीएस सिंहदेव, चरण दास महंत, भूपेश बघेल, ताम्रध्वज साहू.

भूपेश बघेल पर दांव?

छत्तीसगढ़ की कुर्सी पर राज्य कांग्रेस अध्यक्ष भूपेश बघेल का दावा बनता है. वो छत्तीसगढ़ के कद्दावर नेता भी हैं और सूबे में कांग्रेस की वापसी में उनका योगदान भी बड़ा है. छत्तीसगढ़ में सत्ताविरोधी लहर पैदा करने में उनकी बड़ी भूमिका रही. लेकिन पिछले साल हुआ सेक्स सीडी कांड उनके और कुर्सी के बीच में आ रहा है.

सिंहदेव को मिलेगा सिंहासन?

छत्तीसगढ़ विधानसभा में विपक्ष के नेता रहे टीएस सिंहदेव यानी त्रिभुवनेश्वर शरण सिंहदेव भी सीएम पद के तगड़े दावेदार हैं. सरगुजा के राजपरिवार से आने वाले टीएस सिंहदेव 2008 और दो हजार 2013 में भी चुनाव जीतकर अपना दम दिखा चुके हैं. शांत स्वभाव वाले सिंहदेव ने छत्तीसगढ़ कांग्रेस को एकजुट बनाए रखने में अहम भूमिका निभाई.

ताम्रध्वज साहू को मिलेगा ताज?

छत्तीसगढ़ से कांग्रेस के इकलौते सांसद ताम्रध्वज साहू सूबे में कांग्रेस के ओबीसी विंग के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी हैं. इस चुनाव में ओबीसी वोटबैंक को उन्होंने साध कर रखा. अगर कांग्रेस 2019 के आमचुनाव में जीत के लिये ओबीसी का दांव चलती है. तो छत्तीसगढ़ का सिंहासन उनके माथे भी सज सकता है.

चरणदास बनेंगे सियासी ‘महंत ?

छत्तीसगढ़ कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष चरणदास महंत का भी मुख्यमंत्री की कुर्सी के तगड़े दावेदार हैं. इस बार चुनाव संचालन का दारोमदार कांग्रेस ने उन्हें ही सौंपा था, वो मध्य प्रदेश सरकार में गृहमंत्री और यूपीए-2 की सरकार में राज्यमंत्री रहे.

राजस्थान की सीटों का गुणा गणित

राजस्थान में हर पांच साल में सत्ता परिवर्तन का ट्रेंड़ और 25 साल से चली आ रही ये अनोखी सियासी परंपरा राजस्थान की जनता ने बरकरार रखा. और इस बार फिर सूबे की बागडोर बीजेपी से ले कांग्रेस को पकड़ा दी.

आखिर राजस्थान में कांग्रेस की कौन सी रणनीति काम कर गई…वसुंधरा से जनता क्यों नाराज दिखी…

क्यों हारी वसुंधरा ?

गुर्जरों की आरक्षण की मांग, किसानों की नाराजगी, एससीएसटी एक्ट और मोदी सरकार का आरक्षण समर्थक रुख सवर्ण वोटों को बीजेपी से दूर ले गया. रही सही कसर टिकट बंटवारे में बगावत और पार्टी के भीतरघात ने पूरी कर दी. वसुंधरा सरकार के सारे लोकलुभावन वादे धरे के धरे रह गए. राजस्थान कांग्रेस की हालत भी बीजेपी से अलग नहीं थी. लेकिन समय रहते संभलना राजस्थान कांग्रेस के लिये वरदान बन गया.

क्यों जीती कांग्रेस ?

आरक्षण का समर्थन करने से बीजेपी से नाराज चल रहे सवर्ण वोटबैंक को कांग्रेस ने बहुत समझदारी से अपने पाले में लिया. वहीं बुजुर्ग किसानों को पेंशन, महिलाओं को आजीवन मुफ्त पढ़ाई, किसानों की कर्जमाफी और बेरोजगारों को हर महीने साढ़े तीन हजार बेरोजगारी भत्ता देने के कांग्रेस के घोषणापत्र पर जनता ने यकीन किया. जिसने राजस्थान की बाजी कांग्रेस के नाम कर दी.

मध्य प्रदेश की सीटों का गुणा गणित

 

 

 

 

तेलंगाना के वोट रिजल्ट पर नजर डालिए. योगी ने यहां से बीजेपी की जीत पर ओवैसी को भगा देने का दावा किया था.. देखिए  उस तेलंगाना में बीजेपी एक सीट पर सिमट गई..

 

 

 

पांचवे चुनावी राज्य मिजोरम के वोट वाले गुणा गणित को भी देखिए..

 

 

2019 में मोदी मैजिक का मुक़ाबला संभव है

विधानसभा चुनाव के नतीजों ने विरोधियों में वो विश्वास भरा है. जिससे उनमें भरोसा जगा है कि पीएम मोदी का चुनाव में मुकाबला संभव है.

योगी के बढ़ते क़द पर सवाल

बीजेपी ने यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ का इन चुनाव में बखूबी इस्तेमाल किया. लेकिन पहले भगवान हनुमान पर उनके बयान पर बवाल मचा तो अब नतीजे बता रहे हैं कि उनकी कैंपेनिंग हारी बाजी को जीत में बदलने वाली साबित नहीं हुई.

अमित शाह की रणनीति पर सवाल

बीजेपी के लिए चुनावी चाणक्य. उनके राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह को इस बार मुंह की खानी पड़ी है. उनके बूथ मैनजमेंट से लेकर मुद्दों और उम्मीदवारों के सेलेक्शन पर भी सवाल उठेंगे.

बीजेपी के भीतर मुखर होंगी विरोध की आवाज़ें

बीजेपी के भीतर बीते कुछ सालों से उन आवाजों को तरजीह नहीं मिली जिन्होंने मोदी-शाह से अलग राय रखी. इन नतीजों से ऐसे नेता मुखर होंगे. संभव है कि पार्टी के भीतर और भी नेता सिर उठाएंगे.

काम नहीं आया राम मंदिर का मुद्दा

चुनाव के बीच में राम मंदिर के मुद्दे को बीजेपी और आरएसएस ने पुरजोर तरीके से उठाया. हिंदी हार्टलैंड में आए नतीजे बताते हैं कि मतदाता ने राम मंदिर के मुद्दे को चुनावी मुद्दे की तरह नहीं लिया.

मजबूत हुए लीडर राहुल गांधी

तीन राज्य. छत्तीसगढ़. राजस्थान और मध्य प्रदेश में बीजेपी को नाको चने चबवाने वाले कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी का कद अचानक से बढ़ गया है. पार्टी के भीतर भी और पार्टी के बाहर भी. लगातार चुनाव हारने का ठप्पा पहली बार हटते दिखा

रीजनल नेताओं की आवाज़ होगी बुलंद

पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी. तेलंगाना में केसीआर. बिहार में तेजस्वी और उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव सरीखे नेताओं की आवाज और भी तेज होगी. वो उत्साह से बीजेपी का मुकाबला करने के लिए तैयार होंगे.

कांग्रेस करेगी महागठबंधन की अगुआई

बीजेपी के विरोध में देश में अगर महागठबंधन की गाड़ी आगे बढ़ती है. तो इन चुनावों के फैसले ने ये साबित कर दिया कि उस गाड़ी की ड्राइविंग सीट पर कांग्रेस ही बैठेगी.

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(((नोट- राहुल गांधी ने खुद संसद में खुद को पप्पू कहा था राहुल को पप्पू लिखने का मतलब किसी को ठेस पहुंचाना नहीं है)))