सपा के खिलाफ शिवपाल ने ‘खोला मोर्चा’ फिर भी अखिलेश कुछ नहीं कर सकते
पिछले दो साल से अपनी खड़ी की गई समाजवादी पार्टी से अलग थलग कर दिए गए समाजवादी प्रार्टी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष पूर्व लोकनिर्माण मंत्री, पूर्व सिंचाई मंत्री शिवपाल यादव ने समाजवादी पार्टी से अलग अपना अलग समाजवादी सेक्यूलर मोर्चा बना लिया.
शिवपाल ने कहा कि समाजवादी पार्टी में मेरी उपेक्षा हुई है. हम पार्टी से उपेक्षित लोगों को मोर्चे से जोड़ेंगे. आगे शिवपाल यादव ने कहा कि
”मैंने समाजवादी सेक्यूलर मोर्चा का गठन किया है. समाजवादी पार्टी में मेरी अवहेलना हो रही थी और मैंने दो साल इंतजार किया. पार्टी के कार्यक्रमों के बारे में ना तो मुझे सूचना दी गई और ना ही कोई आमंत्रण. मुझे कोई जिम्मेदारी भी नहीं दी गई है”
शिवपाल यादव को समाजवादी पार्टी के किसी भी आधिकारिक कार्यक्रम में नहीं बुलाया जाता था. यहां तक कि हालत ये थे कि जहां अखिलेश यादव होते थे वहां शिवपाल यादव बिल्कुल नहीं जाते थे. 15 अगस्त और 26 जनवरी के कार्यक्रमों में भी शिवपाल नहीं जाते थे. अखिलेश ने समाजवादी पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष नरेश उत्तम पटेल को बना दिया था. जिसके बाद शिवपाल यादव ने सपा कार्यालय भी जाना छोड़ दिया था.शिवपाल के नए मोर्चे पर समाजवादी पार्टी केअध्यक्ष अखिलेश यादव ने कहा कि
“मैं भी नाराज हूं, मैं कहां चला जाऊं. जैसे-जैसे लोकसभा चुनाव नजदीक आएगा, आप और भी चीजें होती हुई देखेंगे. चाचा के पीछे भाजपा है, ऐसा मैं नहीं कहता, पर आज और कल की बात को देख लें तो शक तो जाएगा ही. सपा आगे बढ़ेगी, चाहे जो भी हो”
समाजवादी पार्टी के इर्द गिर्द बीते 4 दिन से हलचल चल रही है. पहले अमर सिंह ने आजम खान के सहारे अखिलेश यादव को नमाजवादी पार्टी का अध्यक्ष कहा. फिर अखिलेश यादव को अपना पाला हुआ सांप करार दिया. खुलासा किया कि शिवपाल यादव बीजेपी में जाने वाले थे लेकिन बाद में नहीं गए. उसके बाद सपा प्रवक्ता पंखुड़ी पाठक का इस्तीफा. और अब शिवपाल का सपा से अलग मोर्चा बनाना.

जिस तरह से शिवपाल यादव की पार्टी के भीतर उपेक्षा हो रही थी. उस हिसाब के शिवपाल यादव का समाजवादी पार्टी से अलग होना चौकाता नहीं है. बल्कि ये शिवपाल यादव का देर से उठाया गया कदम है. समाजवादी पार्टी की युवा टीम चाहती ही यही थी कि शिवपाल यादव पार्टी से अलग हो जाएं. शिवपाल यादव को सिर्फ पारिवारिक कारणों से मर्यादाओं में बंधे होने के कारण पार्टी से बाहर का रास्ता नहीं दिखा रहे थे. लेकिन टेक्निकली अभी भी शिवपाल यादव समाजवादी पार्टी से अलग नहीं हुए हैं. ना ही अखिलेश यादव शिवपाल यादव के खिलाफ अनुशासन हीनता की कार्रवाई कर सकते हैं.

शिवपाल यादव ने अपना अलग मोर्चा बनाया है पार्टी का गठन नहीं किया है. वो ये कह रहे हैं कि समाज के और समाजवादी पार्टा के उपेक्षित लोग समाजवादी सेक्युलर मोर्चे से जुड़ सकते हैं और सांप्रदायिक शक्तियों के खिलाफ लड़ाई में उनके साथ आ सकते हैं. शिवपाल ने अपने इस दांव से अभी भी अखिलेश को सोचने का एक आखिरी मौका और दिया है. शिवपाल पार्टी में पद चाहते हैं. और अखिलेश जानते हैं शिवपाल को पद देने का मतलब है पार्टी के भीतर सत्ता के दो केंद्र. क्योंकि शिवपाल पद के मुताबिक वही करेंगे जो उनको अच्छा लगता है. शिवपाल के पास समाजावदी सेक्युलर मोर्चे के लिए कोई दफ्तर नहीं है. इसीलिए कुछ दिनों के लिए अपने घर को ही दफ्तर घोषित किया है.

शिवपाल यादव के साथ आशु मलिक जैसे लोग ही जा सकते हैं जिन्होंने अखिलेश से सीधा बैर लिया है. बाकी समाजवादी पार्टी के भीतर ऐसा कोई बहुत बड़ा चेहरा नहीं है जो अखिलेश को छोड़कर जाएगा. क्योंकि समाजवादी पार्टी का भविष्य अखिलेश ही हैं. और दुनिया उगते सूरज को ही सलाम करती है. अखिलेश फिलहाल उग रहे हैं. एक दो चुनाव के बाद उनका तेज पता चलेगा. चाचा शिवपाल यादव खुलकर अखिलेश से अलग हो जाएं या पार्टी के भीतर रहें. दरार इतनी बड़ी हो चुकी है कि ना तो अखिलेश समर्थक शिवपाल समर्थकों के चेहरे देखना चाहते हैं ना ही चाच भतीजे.
डेढ़ साल बाद भी शिवपाल को नहीं मिला सम्मान, ‘अब भी पद के इंतजार में हूं’
ग्राउंड पर तो रियालिटी ये है कि अखिलेश समर्थक और शिवपाल समर्थक रात के अंधेर में एक दूसरे से बात करते हैं. चाचा-भतीजे दोनों विरोधी गुटों के समर्थक ऐसी जगह पर एक दूसरे से मिलते हैं जहां कोई उनको देख ना पाए. क्योंकि दोनो तरफ के लोग डरे रहते हैं कि उन पर गद्दारी का ठप्पा न लग जाए.