जन्माष्टमी- कृष्ण की 18 अनसुनी कहानियां, क्यों तोड़ी थी बांसुरी, कहां है कान्हा का ससुराल ?

KRISHNA JANMASHTAMI- जन्माष्टमी पर जानिए कृष्ण को..क्या आपको मालूम है कि कृष्ण ने अपनी बांसुरी क्यों हमेशा के लिए तोड़ दी थी..और कृष्ण जहां से रुकमणि को भगाकर लाए थे वो जगह अभी कहां है..और अब भी किस मूर्ति में कृष्ण का दिल धड़क रहा है. जानने के लिए कृष्ण के जन्मदिन पर पढ़िए कृष्ण की 18 अनसुनी कहानियां.
कृष्ण की 18 अनसुनी कहानियां
कृष्ण की 18 अनसुनी कहानियां
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दुनिया की सबसे रहस्यमयी जगहों में से एक निधिवन. जहां आज तक जो भी रात में रुका वो अपनी सुध-हुध खो बैठा.  निधिवन शाम ढ़लते ही बंद हो जाता है. कहते हैं निधिवन के ये हज़ारों पेड़ गोपियों का रुप धारण कर लेते हैं. जिनके साथ कृष्ण रासलीला रचाने आते हैं. ठाकुर जी के लिए रंगमहल मंदिर में बकायदा फूलों की सेज सजाई जाती है. भोग के लिए मिठाइयां रखीं जाती हैं. लेकिन सुबह होते ही नज़ारा बदल जाता है
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KRISHNA ने पहला महारास शरद पूर्णिमा पर रचाया था. हज़ारों रुप धरकर सभी गोपियों संग रास रचाने वाले कृष्ण को कामदेव से चुनौती मिली कि कामदेव ने कहा थी कि वो कृष्ण को वासना के बंधन में बांधकर ही रहेंगे. लेकिन कामदेव छलिया कृष्ण को नहीं बांध पाए. कृष्ण कर्म योगी हैं वो प्रेम और मां बाप के बंधन में भी नहीं बंधे. इसीलिए भगवान कृष्ण को निर्मोही भी कहते हैं.
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बृज के कण-कण में कृष्ण लीलाएं बसी हैं. वृंदावन के कदंब वन में कृष्ण ने कालिया नाग के अहंकार को तोड़ा था. तब उनकी उम्र 7 या 8 साल की होगी.
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औरैया के कुदरकोट कस्बे को भगवान श्रीकृष्ण की ससुराल के तौर पर जाना जाता है. यहां बने मंदिर के बारे में कहा जाता है कि देवी रुक्मिणी यहां हर रोज माता गौरी की पूजा करने आती थीं. कृष्ण को पति बनाने की मनौती मानी थी. क्योंकि देवि रूकमणि की शादी उनके भाई कृष्म की बुआ के बेटे शिशुपाल से सराना चाहते थे. एक दिन जब वो मंदिर में पूजा करने आईं तो भगवान श्रीकृष्ण उनको यहीं से भगा ले गए. कहा जाता है कि उसके बाद माता गौरी की प्रतिमा भी इस मंदिर से गायब हो गई.. तभी से मंदिर को अलोपा देवी के मंदिर के तौर पर जाना जाता है..
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राजस्थान के चित्तौडगढ़ जिले के मंडफिया में विश्व प्रसिद्व कृष्ण धाम भगवान सांवरिया सेठ के मन्दिर के नाम से प्रसिद्ध है.सांवले सलोने कृष्ण को यहां बिज़नेस पार्टनर कन्हैया के नाम से पुकारा जाता है. भगवान श्री कृष्ण के इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि जिन लोगों को व्यापार में नुकसान होता है. वो इस मंदिर में आकर भगवान सांवरिया सेठ को अपना बिजनेस पार्टनर बना लेते हैं. यहां उन लोगों की भीड़ ज़्यादा होती है जिनका व्यापार ठीक से नहीं चल रहा होता है. सांवरिया सेठ को धन और वैभव का प्रतीक माना जाता है.
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कहते हैं कि भगवान श्रीकृष्ण अपनी देह को किसी भी प्रकार का बनाना जानते थे. उनका कोमल शरीर युद्ध के समय बेहद कठोर दिखाई देने लगता था. कालारिपयट्टू विद्या यानी जिसे अब मार्शल आर्ट कहा जाता है, श्रीकृष्ण ने ही उसकी नींव रखी थी. श्रीकृष्ण ने इस विद्या को अपनी ‘नारायणी सेना’ को सीखा रखा था. ये विद्या बाद में बोधिधर्मन से होते हुए आधुनिक मार्शल आर्ट में विकसित हुई. डांडिया रास इसी का एक नृत्य रूप है.
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श्री कृष्ण के गुरु संदीपनि थे, कृष्ण ने अपने गुरु को ऐसी दक्षिणा दी थी जो शायद ही किसी गुरु को मिली हो. श्रीकृष्ण ने संदीपनि को उनका मरा हुआ बेटा गुरु दक्षिणा के रूप में वापस जिंदा कर लौटा दिया था. उज्जैन के सांदिपनी आश्रम में ही श्रीकृष्ण ने ऋषि सांदिपनी से शास्त्रों और वेदों का ज्ञान लिया था.
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गुरु को दक्षिणा ने बेटा जिंदा करके दिय़ा. तो अपने लिए दक्षिणा में सिर का दान मांग लिया. ये भी एक कहानी है खाटू श्याम कृष्ण का ही रुप हैं श्याम मामला महाभारत के समय का था जब युद्ध छिड़ने वाला था तब बर्बरीक कौरवों की तरफ से लड़ने का मन बना चुके थे क्योंकि उनकी आदत थी कि जो हारने वाला वाला होता था उसी की मदद करते थे. श्रीकृष्ण समझ गए थे अगर बरबरीक ने कौरवों का साथ दिया तो अनर्थ हो जाएगा इसीलिए एक लंबे प्लान के तहत बर्बरीक से उनका सिर दक्षिणा में मांग लिया. बर्बरीक को कृष्ण ने श्याम नाम दिया खाटू श्याम
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जो कृष्ण रणछोड़ नाम से प्रसिद्ध हुए, वही समय आने पर युद्ध ना करने का मन बना चुके अर्जुन को युद्ध के लिए प्रेरणा देते हैं. महाभारत के सबसे बड़े नायक कृष्ण अर्जुन के सारथी बने. योगेश्वर कृष्ण ने फिर दुनिया को वो ज्ञान दिया जिसमे जीवन का सार है. अर्जुन के साथ हनुमान जी और संजय ने भी गीता का सार सुना था. जब कृष्ण अर्जुन को गीता का उपदेश सुना रहे थे उस समय हनुमान जी रथ के ध्वज में मौजूद थे और संजय अपनी दिव्य दृष्टि से गीता का सार सुन रहे थे.
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एक तरफ कृष्ण ने अर्जुन को विराट रुप में दर्शन दिए तो दूसरी तरफ अपनी मइया को पूरा ब्रह्मांड ही दिखा डाला. बालकृष्ण की ये लीला. जब मइया यशोदा ने कान्हा का मुंह खोला पूरे बृह्मांड को उनके मुख में देख सुध-बुध खो बैठी थीं
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MATHURA छोड़ श्रीकृष्ण ने द्वारका बसाई और कहलाए द्वारका के राजा द्वारकाधीश. देश के चार धामों में से एक है द्वारकाधीश मंदिर. इस मंदिर का ध्वज कई किलोमीटर दूर से देखा जा सकता है. जहां कभी कृष्ण का प्रसिद्ध हरिमहल था वहां आज ये मंदिर है.
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श्रीकृष्ण की इस नगरी को विश्‍वकर्मा और मयदानव ने मिलकर बनाया था. विश्वकर्मा देवताओं के और मयदानव असुरों के इंजीनियर थे. दोनों राम के काल में भी थे. इतिहासकार मानते हैं कि द्वारिका जल में डूबने से पहले नष्ट की गई थी. किसने नष्ट किया होगा द्वारिका को? ये सवाल आज भी बरकरार है. हालांकि समुद्र के भीतर द्वारिका के अवशेष भी मिले, जो बर्तन मिले, वो 1528 ईसा पूर्व से 3000 ईसा पूर्व के बताए जाते हैं
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कहते हैं श्रीकृष्ण को दो ही चीज़े सबसे ज़्यादा प्रिय थीं. बांसुरी और राधा. राधा के कारण ही कृष्ण बांसुरी को हमेशा अपने पास रखते थे. जिस मुरली की धुन से गोकुल की गोपियां लाज शर्म छोड़ मंत्रमुग्ध होकर दौड़ी चली आती थीं. राधा रानी अपनी सुध खो बैठती थीं. ये मुरली वास्तव में ब्रह्मा जी की मानस पुत्री सरस्वती जी थी. राधा के कृष्ण में विलीन होने के बाद कहते हैं. कृष्ण ने बांसुरी तोड़ दी थी. और फिर कभी नहीं बजाई
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सोलह कलाओं में संपन्न कृष्ण के बारे में अक्सर कहां जाता है कि उनकी 16 हजार पटरानियां थी. लेकिन उनकी 8 पत्नियां थीं. कृष्ण की जिन 16 हजार पटरानियों के बारे में कहा जाता है दरअसल वो सभी भौमासर के यहां बंधक बनाई गई महिलाएं थीं जिन्हें श्रीकृष्‍ण ने मुक्त कराया था
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महाभारत का सबसे महत्वपूर्ण पात्र द्रौपदी. जिन्हें कृष्णा भी कहा जाता है. द्रौपदी के लिए कृष्ण रक्षक बने. वासुदेव ने द्रौपदी की लाज रखी. कृष्ण ने वस्त्रअवतार लिया..और दस हज़ार हाथियों के बलवाला दुशासन साड़ी खींचते खींचते थककर हार गया..
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दोस्ती की मिसाल जब भी दी जाती है..तो कृष्ण और सुदामा का नाम ज़रुर लिया जाता है..द्वारकाधीश कृष्ण ने सुदामा को अपने से भी ज़्यादा धनवान बना दिया था. भगवान कृष्ण ने अपने मित्र सुदामा की गरीबी देखी तो उसके घर पंहुचने से पहले ही उसकी झोंपड़ी की जगह महल बना दिया. इसलिए कहते हैं कि दोस्‍ती कृष्‍ण से करनी सीखनी चा‍हिए…
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भालका तीर्थ भगवान श्रीकृष्ण के आखिरी लम्हों की गवाही देता है. यही वो पावन स्थान है जहां शृष्टि के पालनहार कृष्ण ने अपना शरीर त्यागा था. सोमनाथ मंदिर से महज 5 किमी. दूरी पर इस मंदिर में बनी भगवान श्री कृष्ण की प्रतिमा उनके आखिरी वक्त को बयां करती है.
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दुनिया छोड़ कृष्ण तो बैकुंठ चले गए. लेकिन उनका दिल आज भी एक मूर्ति में सुरक्षित है. जहां जगत के नाथ. भगवान जगननाथ. के रुप में पूजे जाते हैं कृष्ण भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ जहां विराजित हैं कृष्ण. मान्यताओं अनुसार कहते हैं कि इस मूर्ति के भीतर भगवान कृष्ण के दिल का एक पिंड रखा हुआ है जिसमें ब्रह्मा विराजमान हैं