नागपंचमी पर प्यारी गुड़िया के चीथड़े क्यों उड़ाए जाते हैं ?

  • मैने सुना आज लड़कियों का त्योहार है क्या वाकई ?
  • आज के दिन प्यारी गुड़ियों के चीथड़े उड़ाए जाते हैं ?

NAGPANCHAMI= GUDIYA FESTIVAL – आज जब हर चौराहे पर गुड़ीयों कि धज्जियां उड़ी देखी, बेचारी कोई यहां कोई वहां पड़ी देखीं  तब समझ आ गया कि ‘औरतों को पीट-पीटकर उनकी धज्जियां उड़ाने वाले जेंटलमेंस के पास ये अद्भुत कला आख़िर आती कहां से होगी !… मैंने देखा माँ बाप ज़ो अपने बच्चो को साथ लाये थे वो बड़े प्यार से लड़कों को समझा रहे थे ‘अरे ज़रा तेज से मारो , दम लगा के मारो कुछ खाये नहीं हो का , सीधे गुड़ीया पर लाठी मारो ना ! हां जे बात.. बिलकुल सही ! वाह ….

” इन सब में लड़कियां अपने हाथों से बनायी प्यारी – प्यारी गुड़ीयों को निस्तेंनाबूत होते बस देखीं जा रहीं और लड़के जो गुड़ीयों की मासूमियत देखे बिना ही बस बुरी तरह पीटते चले जा रहे थे…( काश ! कोई उन्हें उस वक्त उन प्यारी सी गुड़ीयों की तरफ बस एक प्यार भरी नजर से देखने को भी बोल देता, तो शायद बचपन से ही उन्हें इंसान और कपड़े की गुड़ीयां में अंतर पता होता ! ) खैर बड़े अजीब से रिवाज़ है हमारे यहां ! पहले हाथों से गुड़ीया बनाओ ,सजाओ एक डोलची में रखो और फिर उनकी धज्जियां उड़ाने को झोंक आओ,  बिल्कुल वैसे ही जैसे अपनी गुड़ीया सी बेटी को प्यार से बड़ा करो ,दुल्हन बनाओ ,डोली में बिठाओ फिर किसी और को सौप आओ बस इसके बाद ही गुड़ीया का पति उसका सब कुछ ! अब वो चाहे ज़ो करे …

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जिसकी लाठी उसकी ‘ गुड़िया ‘ खैर अगर थोड़ा समय हो तो एक बार जरूर सोचिएगा क्या आप जानते हैं,  क्यों पिटती हैं गुड़ीया ? आखिर किसने बनायी होगी ऐसी रीति ज़िसमे गुड़ीयां (स्त्री) को ही पीटा जाये गुडडा (पुरुष) को क्यों नहीं ? या पीटना ही क्यों ज़रूरी है ? और किस ग्रंथ में लिखा है कि ये मेंडेट्री हैं कि लड़को के हाथों ही गुड़ीया पिटवाओ ? और अगर लिखा ही नहीं तो सब मनाते क्यों है….. ख़ैर ज़ो भी है मेरी इन बातों से आप अपना वक्त क्यों खराब करेंगे ! आप तो किसी की गुड़िया को अपना खिलौना समझकर खेलने में व्यस्त हो ना.. हैना ?

((((प्रज्ञा की कलम से..))))

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