गुटखा प्रेमी की गुहार मेट्रो में पीकदान रखवा दो यार- व्यंग्य
एक गुटखा प्रेमी का दर्द क्या होता है जानते हैं
जब उससे गुटखा रखवा लिया जाता है तब वो कितना पीड़ित होता है जानते हैं
चेकिंग में गुटखा निकालकर फेंक दिया जाता है तब वो कितनी बेइज्जती महसूस करता है
जब उसे मेट्रो में पीकदान नहीं मिलता तो वो क्या महसूस करता है
गुटखा प्रेमी की गुहार मेट्रो में पीकदान रखवा दो यार…..
बताओं इतनी बेइज्जती. आज तक कभी नहीं हुई..साला हमारी कोई इज्जत ही नहीं है. हिंदूओं का वोटबैंक हैं..मुसलमानों का वोट बैंक हैं.अहीर…गड़रिया..तेली…धानुक..कहार…लोहार..बांभन..ठाकुर पंडित..सबके वोट बैंक हैं..लेकिन गुटखा खाने वालों का आजतक वोटबैंक बन ही नहीं पाया..साला आदमी को आदमी से सुहागरात मनाने का अधिकार मिल गया लेकन यूपी में 21 करोड़ आबादी में हम 10 करोड़ लोगों की मौलिक पसंद गुटखा है…लेकन हमारे कोई अधिकार ही नहीं हैं..
अब तक शान से..जहां पाते थे पिच्च से पीक मार देते थे…बताओ साला हमारी आजादी पर पहरा लगा दिया है..कहते हैं मेट्रो में गुटखा नहीं खा सकते…खाना तो दूर ले जाने नहीं देते हैं..इतनी बेइज्जती..इतनी बेइज्जी..हमने तो अपने ब्याह में फेरे लेते समय भी चार ठो पीक इधर उधर मार ही दिए थे..मेट्रो नहीं बना दिए हैं..ताजमहल बना दिए हैं..बताओ मेट्रो स्टेशन पर एक-एक दिन में..हजारों गुटखा प्रेमियों का अनादर हो रहा है..गुटखा प्रेमी अपमानित महसूत कर रहे हैं..जब जानते थे कि यूपी के लोगों में पानदान और राजनीति में खानदान चलता ही है तो..मेट्रो के भीतर चार ठौ..पीकदान रखवा देते तो..कौन सा तुम्हारी सरकार गिर जाती…
हम दोचार बार थूक लेते तौ कौन सी तुम्हारी इज्जत कम हो जाती…आखिर हम भी तो वोट देते हैं..हमारी सुख सुविधाओं का कोई ध्यान ही नहीं है..कहते हो लखनऊ मेट्रो में आपका स्वागत है घंटा स्वागत है…हम आते हैं तो तलाशी लेते हो बेइज्जत करते हो..ढूंढ ढूंढ के जेब से गुटखा निकालते हो..दूसरे दिन अखबार में छपवाते हो कि 20 किलो गुटखा पकड़ा 20 किलो…घंटा पकड़ा..तुम निर्लज्जों की तरह बंदूक दिखाकर जेब से निकालते हो..कहते हो स्वागत है..
ये सब गुटखा चबाऊ संगठन ना होने का नतीजा है..अगली बार वोट लेने आना..मुंह पर ना थूक दिया तो..एक ब्रांड का गुटखा खाने वाले की औलाद नहीं..एक बात और सुनो गुटखा खाते है..अस्पतालों की ऑक्सीजन नहीं खाते जो हमारा अपमान किए जा रहे हो..कहीं हम बौरा गये तो..पहले मरेंगे फिर मार मार कर मार देंगे..
हमने दांत लाल कर लिए..जिदगी गुटखे के नाम कर दी..वो करते हैं मेंट्रो में गुटखा छोड़ दो..हमने गुटखा को सामाजिक प्रतिष्ठा का प्रमाणपत्र बना लिया..अब वो कहते हैं मेट्रो में गुटखा छोड़ दो..हमने बीजेपी के स्वच्छा अभियान की जड़ें हिला दीं वो कहते हैं मेट्रो में गुटखा छोड़ दो..ध्वनि प्रदूषण रोकने के लिए हमने पीढ़ियां लगा दीं..वो कहते हैं मेट्रो में मसाला छोड़ दो..हमने शौचालय से सचिवालय तक थूक थूककर ऊंच नीच खत्म कर दी वो कहते हैं मेट्रो में मसाला छोड़ दो..तुम्हारी मेट्रो जिंदाबाद है इससे हमें कोई दिक्कत नहीं..लेकिन हमारा गुटखा जिंदाबाद था जिंदाबाद है और जिंदाबाद रहेगा..समझे…
गुटखा प्रेमी की गुहार मेट्रो में पीकदान रखवा दो यार…..