अवैध रूप से चल रहे क्लीनिक में हो रहे भ्रूण हत्या का कौन है दोषी शासन या फिर प्रशासन..

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मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के मिशन शक्ति के तहत कस्बों व शहरों में जगह जगह जाकर महिला पुलिस द्वारा महिलाओं को जागरूक करने का काम किया जा रहा हो या फिर अवैध रूप से बने अस्पताल (Feticide Case) बंद करने का काम स्वास्थ्य विभाग की ओर से किया जा रहा हो यह सब बेकार होता दिखाई दे रहा है ऐसा हम इसलिए बोल रहे हैं ऐसा ही एक मामला बहेड़ी के मुड़िया नबीबबख्श का सामने आया है जिसमें भावना नाम की लड़की ने अपना क्लीनिक खोलकर बैठी है मजे की बात तो यह है ना तो उसके पास कोई डिग्री है ना ही उसके पास डिप्लोमा है या

फिर ना ही उसके पास लाइसेंस है है तो सिर्फ उसके पास हाथ की सफाई जिसके कारण उसके पास दूर दरिया से लोग उसके पास आकर 2 महीने 3 महीने में 6 महीने के बच्चों का अबॉर्शन करा कर चले जाते हैं भावना नाम की लड़की दवाई लगाकर व अन्य औजारों के माध्यम से इस कार्य को बड़ी चतुराई से अंजाम (Feticide Case) देती है ना तो इसे शासन का डर है ना ही इसे प्रशासन का डर है मानो सबको अपनी जेब में लेकर घूमती हो..

निजी अस्पतालों में ऐसे बनाती हैं घुसपैठ

  • किसी निजी अस्पताल में जब कोई गर्भवती महिला अनचाहे गर्भ के लिए एबॉर्शन के लिए आती हैं तो गर्भपात कराने वाली पेशेवर नर्स या उनकी कोई प्रतिनिधि महिला वहां मरीज बनकर पहुंच जाती हैं।
  • डॉक्टर कक्ष के बाहर अपनी बारी का इंतजार कर रही किसी गर्भवती महिला के पास बैठ जाती हैं। बातों-बातों में उसकी मंशा पता कर लेती हैं।
  • जो महिला एबॉर्शन कराना चाहती है उसे प्रलोभन देती हैं कि अस्पताल में तुम्हें 20-25 हजार रुपए खर्च आ जाएगा। हम बाहर बहुत सस्ते में ये काम कर देंगे।
  • कई गर्भवतियां या उनके परिजन इस चक्कर में आकर अवैध तरीके से गर्भपात कराने वाली इन महिलाओं के बताए स्थान पर पहुंच जाते हैं।
  • यहां लापरवाह स्वास्थ्य विभाग
    आरसीएच पोर्टल पर दर्ज नहीं हो रही गर्भवतियों की जानकारी

भारत सरकार ने गर्भवतियों की सेहत और सुरक्षित प्रसूति के लिए स्वास्थ्य प्रोग्राम चला रखा है। इनकी जानकारी इकट्ठा करने के लिए एक पोर्टल बनाया गया है। पहले ये आंकड़े मेटरनल एंड चाइल्ड हेल्थ एमसीएच पोर्टल (Feticide Case) पर दर्ज होते थे, लेकिन अब नए रिप्रोडक्टिव चाइल्ड हेल्थ आरसीएच पोर्टल पर दर्ज करने होते हैं। हर जिले में इसकी जिम्मेदारी स्वास्थ्य विभाग को दे रखी है। मुख्य चिकित्सा और स्वास्थ्य अधिकारी सीएमएचओ को ये जानकारी एकत्रित करवानी होती है।

इसके लिए एएनएम, डॉक्टर और बीएमओ आदि की जिम्मेदारी तय की गई है लेकिन बरेली जिले में गर्भवतियों की जानकारी ही इकट्ठा नहीं की जा रही है। ऐसे में कभी पता नहीं चल पाएगा कि जिले व शहर में कितनी महिलाएं गर्भवती (Feticide Case) हैं। यदि गर्भवतियों की जानकारी हो तो न केवल उनकी सेहत पर ध्यान दिया जा सकता है, बल्कि लिंग परीक्षण और अवैध गर्भपात कराने के मामलों की निगरानी आसान हो सकती है।