जय-वीरू थे अटल और आडवाणी.. कैसे अटल महात्मा गांधी के बराबर हो गए ?
अटल बिहारी वाजपेयी और लाल कृष्ण आडवाणी दोनों शोले फिल्म की जय-वीरू की तरह थे. हर चीज साथ साथ करते थे. दोनों के विचार नहीं मिलते थे. लेकिन रहते दोनों साथ साथ ही थे. और एक दूसरी की सहमति के बिना कोई काम नहीं करते थे.
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अटल-आडवाणी एक दूसरे से अलग-अलग फिर भी एक
अटल और आडवाणी में अटल हिंदी भाषी थे और आडवाणी पाकिस्तान से आए थे. अटल अपने भाषण से लाखों लोगों को मोहित कर देते थे. और आडवाणी भाषण देने में हिचकते थे. आडवाणी आरएसएस संगठन के महारथी थे. अटल संगठन के बंधन में बंध कर रहना नहीं चाहते थे. एक शुद्ध शाकाहारी तो दूसरे मांसाहारी थे. अटल और आडवाणी दोनों की आदतें बिल्कुल नहीं मिलती थीं. तमाम आदतों में अलगाव होते हुए भी. दोनों एक दूसरे को बहुत बारीकी से समझते थे.
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शोले के जय-वीरू थे अटल बिहारी वाजपेयी
कोई भी फैसला करने से पहले आडवाणी अटल से पूछते और अटल कहते जैसा आप सही समझें कर लीजिए. आडवाणी ऐसा कोई फैसला नहीं करते थे जो अटल को ठीक ना लगे. वैसे तो अटल की चुप्पी को ही उनकी सहमती समझा जाता था. लेकिन अगर किसी बात पर अटल सवाल उठा देते थे तो आडवाणी उस बात को वहीं खत्म कर देते थे. दोनों एक दूसरे से हमेशा सलाह मशवरा करते थे लेकिन अटल का नाम प्रधानमंत्री पद के लिए आगे बढ़ाने में आडवाणी ने कभी अटल से नहीं पूछा और आडवाणी को उप प्रधानमंत्री बनाने के लिए अटल ने कभी किसी से नहीं पूछा नहीं पूछा
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अटल की अंतिम यात्रा में पैदल चले मोदी-शाह
अटल बिहारी वाजपेयी की अंतिम यात्रा दिल्ली में बीजेपी कार्यालय से स्मृति स्थल तक निकाली गई इस दौरान रास्ते में लाखों लोगों का जन सैलाब उनको श्रद्धांजलि देने के लिए उमड़ा. लगभग 5 किमी की इस इस अंतिम यात्रा में नरेंद्र मोदी और अमित शाह पैदल चल रहे थे. आडवाणी को अटल के शव के आगे चल रही गाड़ी में बिठाया गया था.
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महात्मा गांधी और अटल की अंतिम यात्रा में समानता
अटल और गांधी जी अंतिम यात्रा कई मायनों में समान थी. गांधी जी अंतिम यात्रा में पार्थिव शरीर सेना के टैंक व्हीकल पर ले जाया गया था. और अटल का पार्थिव शरीर भी उसी तरह की बनी ट्रॉली पर ले जाया गया. गांधी जी की अंतिम यात्रा में उस समय के प्रधान मंत्री नेहरू और सरदार पटेल पैदल चले थे. और अटल की अंतिम यात्रा में भी प्रधानमंत्री मोदी और अमित शाह और कई मंत्री पैदल चल रहे थे.