तीनों कृषि कानूनों पर किसानों की परेशानी आसान भाषा में पढ़िए-
पहले की गलती नंबर एक – काला धन बताकर जनता पर नोटबंदी थोप दी..नतीजा क्या हुआ..जितने नोट बैंक के थे सब बैंक पहुंच गए..काला धन कहीं मिला ही नहीं..सैकड़ों लोग लाइन में लगे लगे मर गए..

पहले की गलती नंबर दो – जीएसटी को आर्थिक आजादी कहकर लागू कर दिया..नतीजा क्या हुआ व्यापारी तबाह हो गए..और देश की जीडीपी जमीन चाट गई..
पहले की गलती नंबर तीन – 4 घंटे की मोहलत पर लॉकडाउन थोप दिया बताया कि 21 दिन में कोरोना की चेन तोड़ देंगे..नतीजा क्या हुआ सैकड़ों गरीब रास्ते में मर गए..फिर साहब जी रैलियां करने लगे..कोरोना को ताक पर रख दिया..
अब इतिहास बनाने के नाम पर उद्योगपतियों से सांठगांठ करके कृषि कानून लेकर आ गए हैं..किसान को आजाद करने की बात कह रहे हैं..
कानून नंबर एक- कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य संवर्धन
किसानों का कहना है- पहला कानून मंडियां खत्म करने वाला है..
सरकार कृषि सुधार के नाम पर किसानों को निजी बाजार के हवाले कर रही है..देश के बड़े पूंजीपतियों ने रीटेल ट्रेड में आने की तैयारी कर ली है..सबको मालूम है कि पूंजी से भरे ये लोग एक समानांतर मजबूत बाजार खड़ा कर देंगे. मंडियां इनके प्रभाव के आगे खत्म होने लगेंगी.. ठीक वैसे ही जैसे मजबूत निजी टेलीकॉम कंपनियों के आगे बीएसएनल खत्म हो गई…बिहार में सरकारी मंडी व्यवस्था 2006 में ही खत्म हो गई थी..14 साल बीत गए किसानों की आमदनी कितनी दोगुनी हुई अपनी आंखों से देख लीजिए..मंडी खत्म हो जाएंगी को किसान के पास प्राइवेट सेठजी को फसल बेचने के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं बचेगा..फिर सेठजी की ही मनमानी चलेगी..
कानून नंबर 2 – कॉनट्रैक्ट फार्मिंग
किसानों का कहना है- दूसरा कानून किसान को बंधुआ बनाने वाला है..
कॉन्ट्रैक्ट मार्मिंग वाले कानून में ये है कि खेत किसान का होगा..मर्जी पूंजीपति सेठजी की चलेगी..वो खेत किराए पर भी ले सकता है..अपनी मर्जी से भी फसल उगा सकता है..कानून में है कि सेठ पहले से रेट बताकर किसान से फसल उगाने को कहेगा..लेकिन अगर फसल अच्छी नहीं हुई तो क्या सेठ पहले बताए गए रेट पर ही फसल खरीदेगा..अगर किसान और सेठ जी के बीच विवाद हुआ तो सरकार ने कहा किसान एसडीएम के पास जाए..सेठ और किसान के विवाद में एसडीएम किसान की सुनेगा इसकी क्या गारंटी है..कितने एसडीएम आज की तरीख में किसान को सम्मान देते हैं..किसान बताएं..सरकार ने विवाद का निपटारा कराने के लिए किसानों की कोई कमेटी क्यों नहीं बनाई..
कानून नंबर 3 – आवश्यक वस्तु संशोधन
किसानों का कहना है- तीसरा कानून सौ फीसदी कालाबाजारी को लीगल करने वाला है..
इसमें कह दिया कि आवश्यक वस्तुओं का किसान भंडारण कर सकता है..कितना भी भर ले..ये तो सरकार भी जानती है कि किसान अपनी फसल भरकर नहीं रखेगा..फसल तो पूजीपति ही अपने गोदामों में स्टोर करेगा..जब शॉर्टेज हो जाएगी दाम महंगे हो जाएंगे तो गोदामों के मुंह खोल दिए जाएंगे..सरकार ने इस कानून से कालाबाजारी को लीगल कर दिया है..
किसान क्या चहते हैं…
अभी के मंडी सिस्टम में एक खराबी है कि कुछ आढ़ती या दलाल मिलकर किसान की फसल के दाम तय कर लेते हैं..इस एक खामी को दूर करने के बजाए..किसानों की जमीन दांव पर लगवा देना कौन की अकलमंदी है..आप किसानों का भला चाहते हैं तो बिना कानून की बाध्यता के सेठजी को ट्रक लेकर गांव भेज दीजिए सही कीमत मिलेगी तो किसान सेठजी को फसल बेचेगा सेठजी सही दाम नहीं देंगे तो नहीं बेचेगा..प्राइवेटाइजेशन बिना किसानों को गुलाम बनाए भी हो सकता है..